तो इसलिए जबलपुर में जनजातीय समाज के कार्यक्रम में पहुंचे थे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह

मध्य प्रदेश के जबलपुर में आज जनजातीय समाज के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस में शामिल होने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे

Update: 2021-09-18 14:57 GMT

प्रवीण दुबे। मध्य प्रदेश के जबलपुर में आज जनजातीय समाज के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस में शामिल होने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे. सबसे पहले बात राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह की. आज ही के दिन यानी 18 सितम्बर 1857 को अंग्रेजों ने इन्हें और इनके बेटे को तोप के मुहाने पर बांधकर उड़ा दिया था. इनकी शहादत के बारे में कहा जाता है कि उस समय अंग्रेजों की हुकूमत की 52 वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत क्रूर था और छोटे राजाओं पर बहुत जुल्म किया करता था. गोंडवाना के शासक रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ़ लोगों को जोड़ना शुरू किया..अपनी मुहिम को वे कविता के माध्यम से चला रहे थे. वे खुद कवि थे और अपना मंतव्य पद्य में लिखकर अपने सहयोगियों को भेजते थे. क्लार्क को पता चल गया कि अंग्रेजों के खिलाफ साजिश हो रही है. कहा जाता है कि उन्होंने कुछ गुप्तचर साधु (या फ़कीर) के वेश में रघुनाथ शाह के पास भेजे. राजा को लगा कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने में कोई बुराई नहीं है,तो उन्होंने अपना एजेंडा उन गुप्तचरों के सामने भी पेश कर दिया. उन गुप्तचरों ने राजा की योजना क्लार्क को जाकर बता दी, तो उन्होंने दोनों पिता पुत्र के खिलाफ मुक़दमा चलाया, उन्हें बंदी बनाया और बाद में तोप के मुहाने पर बांधकर मौत की सजा सुनाई.

आज अमित शाह की मौजूदगी में जो लघु फिल्म वहां दिखाई गई, उसमें गुप्तचर मुस्लिम फ़कीरों के वेश में दिखाए गए थे. बहरहाल, जबलपुर में इनके नाम का शहीद स्मारक बना तो है लेकिन इतिहास की किताबों में उन्हें उस वीर बलिदानी के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया गया, जैसा किया जाना चाहिए था. आज अपने भाषण में अमित शाह ने कहा भी कि जो इतिहास लिखा गया उसमें कई वीर बलिदानियों का नाम नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया है कि ऐसे वीर बलिदानियों की गाथा लोगों को सुनाई जाए. उन्होंने कहा कि प्रधानमन्त्री मोदी ने तय किया है कि देशभर में 200 करोड़ रूपये के बजट से जनजातीय संग्रहालय बनवाए जाएंगे जिनमें एक एमपी में भी छिंदवाड़ा में भी बनेगा.
जबलपुर में आयोजन की वज़ह
यूं तो शंकर शाह और रघुनाथ शाह का बलिदान जबलपुर में हुआ, लिहाज़ा ये जगह सबसे मुफीद थी लेकिन इसके सियासी निहितार्थ भी हैं. महाकौशल इलाके के आस-पास के लगभग दस जिले आदिवासी बहुल जिले हैं. एमपी में कुल 47 सीटें जनजातियों के आरक्षित हैं जिनमे से पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 32 सीटें गईं थीं. बाद में बिसाहू लाल के भाजपा में आ जाने पर 31 बचीं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ 15 गईं, जो बाद में 16 हो गईं. लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा ने एक तरह से एमपी में क्लीन स्वीप किया लेकिन कई जनजातीय बहुल विधानसभाओं में उसे उम्मीद से कम वोट मिले,जिसने भाजपा की फ़िक्र को और बढ़ाया है. एमपी में 2011 की जनगणना के मुताबिक़ 153.16 लाख आबादी जनजाति समाज की है. यानी सूबे लगभग हर पांचवा-छठवा व्यक्ति इसी समुदाय से आता है. लगभग 89 विकास खंड जनजाति समुदाय के बाहुल्य वाले हैं. भाजपा के लिए इस जाति को साधना बहुत मुश्किल भरा रहा है. इस जनजाति के लिए आज कई घोषणाएं की गईं और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये भी बताया कि कांग्रेस ने सिर्फ इस जनजाति का इस्तेमाल वोट बैंक की तरह किया. उन्होंने कहा कि मुझे पता है मेरे जाते ही कांग्रेस प्रेस कांफ्रेंस करेगी. मैं कुछ तथ्य देता हूं, उसका जवाब दें कांग्रेसी. जनजाति कल्याण विभाग किस पार्टी की सरकार ने बनाया. इनके विकास के लिए पहले की सरकार में बजट कितना था. पीएम मोदी ने कितना बढ़ाया. उन्होंने आंकड़े भी दिए.
उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकारें चाहे केंद्र में हों या राज्यों में जनजाति कल्याण के लिए ही काम करती हैं. गौर करने वाली एक बात के साथ अमित शाह ने अपना भाषण ख़त्म किया. उन्होंने कहा, "अलग-अलग नाम से जो जनजातीय समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं, उनके प्रयास को आपको सफल नहीं होने देना है." दरअसल, ये आरोप लगता है कि कांग्रेस ने जनजातीय समाज को जय युवा आदिवासी संघठन, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और अलग-अलग नाम से खड़ा किया. इनका अपने अपने इलाकों में अच्छा प्रभाव है. कहा जाता है कि जहां जनजाति वर्ग के बीच भाजपा मजबूत दिखती है, वहां इन छोटे दलों के उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया जाता है,जो खुद नहीं जीत पाते लेकिन भाजपा को हारने में भूमिका अदा कर देते हैं. इन्हीं सब मसलों को ठीक से एड्रेस करने अमित शाह एमपी आये थे.
केवल प्रदेश के नेताओं के होने से क्या असर पड़ता, जबलपुर में हुए कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ढेर सारे ऐलान इस वर्ग के लिए किये. इनमें जनजातीय समाज के लोगों को घर तक अनाज पहुंचाने की सुविधा. पेसा एक्ट को चरणबध्द तरीके से लागू करना, ग्रामसभाओं को ताकतवर बनाना, सामुदायिक वन समितियों को अधिकारसम्प्पन बनाना शामिल था.


एमपी सरकार चाहती तो ये आयोजन अपने बूते कर सकती थी लेकिन उससे जनजातीय समाज पर शायद वो प्रभाव नहीं पड़ता,जो अमित शाह के आने से पड़ा. उनकी पहचान कुशल संगठनकर्ता और बेहतर रणनीतिकार के तौर पर है, लिहाज़ा उनके आ जाने से पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्त्ता लगभग रट लेने की हद तक समझ चुका है कि आदिवासी वर्ग को जोड़ने के लिए अब करना क्या-क्या है? ये असर संभवतः सिर्फ प्रदेश भाजपा के आयोजन से नहीं पड़ता. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी अपने कई सारे अभियान इन जनजातीय इलाकों में चला रहा है, उनको भी एक नई लाइन पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की मिल गई.


कुल मिलाकर भाजपा का पूरा फोकस इस वर्ग को अगले चुनाव में अपने पक्ष में करने का है. अमित शाह इतने बड़े कद के नेता हैं कि जब जबलपुर से आदिवासियों के लिए केंद्र और भाजपा के प्रयासों को गिना रहे थे तो वो सिर्फ जबलपुर या एमपी में नहीं सुना जा रहा था बल्कि देश के उन राज्यों में जहां चुनाव हैं, वहां भी इस वर्ग के लोगों के द्वारा सुना जा रहा था. अपने भाषण के अंत में उन्होंने एक जिम्मेदारी प्रदेश सरकार और संगठन के मुखिया को दे दी. उन्होंने कहा, "मुझे भरोसा है कि शिवराज जी जो कहते हैं, उसे पूरा भी करते हैं. आज जो घोषणा उन्होंने की है, उसे ज़मीन तक पहुचाएं." इसका आशय साफ़ है कि आने वाले दिनों में एमपी सरकार की प्राथमिकता भी उन्होंने स्पष्ट कर दी. भाजपा के ये प्रयास कितने रंग लाते हैं, ये तब तय होगा जब सूबे में पहले विधानसभा और बाद में लोकसभा के चुनाव होंगे.


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