बंगाली सदन में थप्पड़-घूंसे

दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि पश्चिम बंगाल की विधानसभा में थप्पड़-घूंसे चले

Update: 2022-03-30 05:45 GMT
By: divyahimachal
दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि पश्चिम बंगाल की विधानसभा में थप्पड़-घूंसे चले। हाथापाई ऐसी हुई कि विधायकों के कपड़े ही फाड़ डाले। भाजपा के 7 और तृणमूल कांग्रेस का एक विधायक चोटिल हुए। तृणमूल विधायक असित मजूमदार को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह नौबत आपसी असहिष्णुता के कारण आई। सदन की गरिमा खंडित हुई। सदस्यों ने मर्यादाएं तार-तार कर दीं और लोकतंत्र, संविधान का मंदिर अपमानित किया गया। यह भारतीय गणतंत्र और विधानमंडल की पहली घटना नहीं है। तमिलनाडु के सदन में जयललिता की साड़ी फाड़ने की 'दुशासनी' कोशिश की गई थी। कुछ अशोभनीय दृश्य देश की संसद तक में देखे गए हैं। सदनों को 'अखाड़ा' क्यों बनाया जा रहा है? सत्ता और विपक्ष के बीच विरोधाभास तो होते ही हैं। संसद के दोनों सदनों तक में विपक्षी सांसद सभापति या स्पीकर के आसन के करीब तक आकर हुड़दंग मचाते हैं। नियमों की किताब तक फाड़ देते हैं और अध्यक्षीय आसन के माइक तोड़ने की कोशिश करते हैं।
विडंबना है कि संसदीय प्रणाली और परंपरा से हमारे जन-प्रतिनिधियों ने ऐसे ही सबक सीखे हैं। बंगाल विधानसभा में भी आपसी आक्रोश और प्रतिरोध इस हद तक पहुंच गए हैं कि मारपीट शुरू कर दी गई। कोई संवैधानिक कानून है कि सीसीटीवी के जरिए हिंसा के वे चित्र देखकर दोषी विधायकों को दंडित किया जा सके। विधानसभा अध्यक्ष ने नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी समेत पांच भाजपा विधायकों को 2022 के सभी सत्रों के लिए निलंबित किया है। यह पूर्वाग्रही और एकांगी निर्णय है, क्योंकि मारपीट, धक्कामुक्की या पूर्ण हिंसा में दो पक्ष जरूर होते हैं। चूंकि भाजपा विधायक भी घायल हुए हैं, लिहाजा प्रतिद्वंद्वी ने ही प्रहार किया होगा! भाजपा अदालत में अध्यक्ष के फैसले को चुनौती देती है अथवा नहीं, यह पार्टी को तय करना है, लेकिन बंगाल में विधानमंडल के भीतर और बाहर जैसी राजनीतिक हिंसा की विरासत कायम कर दी गई है, उससे बंगाल की सभ्यता और संस्कृति ही 'दाग़दार' हो रही हैं। राजनीतिक हिंसा ही नहीं, बंगाल में नरसंहार भी किए जा रहे हैं। ताज़ा मामला बीरभूम जिले का है, जिसमें हत्यारों ने 10 इनसानों को जि़ंदा जलाकर मार डाला था। 10 मकान भी फूंक दिए थे।
सैकड़ों लोगों को वहां से भागकर कहीं और शरण लेनी पड़ी है। मरने वालों में दो मासूम बच्चे भी थे। हालांकि जांच सीबीआई के हाथों में है, लेकिन विपक्षी विधायक सदन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वक्तव्य की मांग कर रहे थे। विपक्ष संसद में भी अक्सर प्रधानमंत्री मोदी के स्पष्टीकरण या बयान की मांग करता रहा है। उसकी प्रतिक्रिया अथवा सत्ता-पक्ष की जवाबदेही यह नहीं है कि विपक्षी सदस्यों पर ही पिल पड़े। मारपीट वहां की गई है, जहां भाजपा विधायकों की सीटें हैं। क्या ममता सरकार 9 मुसलमानों की मौत का सच छिपाना चाहती है? यदि सच बेनकाब हो गया, तो 'राजनीतिक खेला' हो जाएगा? दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि जब बंगाल में हिंसा औा हत्याआंे की घटनाएं सामने आती हैं, तो मुख्यमंत्री समेत तृणमूल के प्रवक्ता उप्र, बिहार, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों के पुराने अध्याय खोलने लगते हैं। खासकर हाथरस, उन्नाव, लखीमपुर खीरी आदि का जि़क्र करते हुए बेरोज़गारी, महंगाई पर सवाल करने लगते हैं। ऐसी 'सियासी खिचड़ी' तैयार कर पीएम मोदी को गालियां दी जाने लगती हैं। बेहद हास्यास्पद और घृणात्मक है ऐसी सियासत। बंगाल के अलावा यूपी, बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी यह हिंसक संसदीय संस्कृति देखी गई है। क्या इस दिन के लिए भारत गणतंत्र देश बना था? जनप्रतिनिधियों के इस तरह के व्यवहार को रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। पक्ष तथा विपक्ष दोनों का दायित्व है कि वे इस तरह के व्यवहार से दूर रहें तथा जनकल्याण के लिए समर्पित रहें।
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