मौन सब कहने में समर्थ है
जहां मुंह से निकले शब्द असर ना करें, वहां मौन काफी काम आता है
रेखा गर्ग जहां मुंह से निकले शब्द असर ना करें, वहां मौन काफी काम आता है. मौन रहकर तो देखिए, आपके मौन से हर कोई आपकी भाषा को समझने के लिए लालायित रहेगा. किसी लड़ने वाले से आनंद उसके साथ लड़ने में नहीं है. उसके हाव-भाव को जानिए क्रोध में उसके व्यवहार से शिक्षा लीजिए कितना हास्यस्पद हो जाता है उसका व्यक्तित्व, जब वह आक्रोशित होता है. आप उस पर मौन रहकर ऐसा प्रहार कर सकते हैं कि वह कई दिन तक उठ भी नहीं सकता. आत्म-घुटन का प्रहार, आत्म-ग्लानि की चोट, अपने आप को समाज से अलग होने की कसक.
स्वयं को परखने की नजर रखकर उसके क्रोधी स्वभाव का मूल्यांकन कीजिए, आप अपने मौन से उसके क्रोधी स्वभाव में ना केवल बदलाव कर सकते हैं, बल्कि अपने व्यक्तित्व के आगे उसे बौना भी सिद्ध कर सकते हैं. मौन का प्रभाव इतना बलशाली होता है कि अंगुलिमाल जैसा डाकू भी विरक्त मन वाला साधु बन जाता है. आपका मौन आपके क्रोधी साथियों को बेचैन कर सकता है जो आपके शब्दों की गरिमा नहीं जानते, आपकी कीमत नहीं समझते, जो आपके अन्दर खामियां ढूंढते हैं, जो आपके शांत स्वभाव को आपकी मजबूरी समझते हैं.
आप उनसे दूरियां बना लीजिए, फिर देखिए वे कैसे विचलित होते हैं. आपके आगे-पीछे कोई ना कोई प्रश्न लिए घूमते रहेंगे, आपका मौन आपको भी अपना व्यक्तित्व पहचानने में आप की मदद करेगा, आप अपने को गहराई से जान सकेंगे. जिंदगी भर दूसरों को कुछ बुरा ना लग जाए, इस ही बात की चिंता करते रहें, अच्छाई का प्रमाण-पत्र पाने की दौड़ लगाते रहे. बुराई के आगे आपके गुणों की अच्छाई फीकी ही रहेगी. मुस्कराइए, शब्दों में क्या रखा है, शब्दों के बाणों से घायल और आहत होने से अच्छा है मौन रहकर स्वयं से साक्षात्कार कीजिए बहुत हो चुकी दुनियादारी.
अपनी सोच व रुचि दोनों बदल दीजिए, लोगों को अपनी जिंदगी में झांकने का अवसर ही मत दीजिए, आपने देखा होगा जहां तर्क होता है, बहस होती है, वहां दूरियां बढ़ जाती हैं. शांत रहना आपके स्वास्थ्य को ठीक रखेगा और आपको तनाव से दूर भी रखेगा. किसी लेखक ने कहा भी है, मौन का व्याख्यान बहुत संभाषणीय होता है. मस्तिष्क के विचार ज्यादा बोलने से अपनी गरिमा खो देते हैं. इधर-उधर की व्यर्थ बातें आपके समय और सामर्थ्य दोनों को प्रभावित करती हैं. राग, द्वेष, घमण्ड, क्रोध जैसे अवगुणों को त्यागकर ईष्यालु व्यक्ति से दूर रहने में ही भलाई है.
अपने को साबित करने की जरुरत ही नहीं है, जो व्यक्ति सामने से चापलूस और पीछे जड़ काटने वाले होते हैं, उन्हें अपनी जिंदगी से निकाल फेंकिए. मौन की भाषा ना समझने वाले निंदक व्यक्ति समाज में बहुतों की उपेक्षा के पात्र होतें हैं, उन्हें कोई नहीं चाहता वे किसी के हो ही नहीं सकते. अपने सामाजिक दायरे में, आस-पड़ोस में निगाह डालिए, कितने ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपने क्रूरतम शब्दों से आपको बोलने के लिए विवश कर सकतें हैं. किंतु, शब्दों की मर्यादा का ध्यान रखकर आप अपना नैतिक स्तर बनाए रखे.
आपका मौन हर कदम आपका संबल बनकर आपको गिरने से रोक सकता है, आपके जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, शिक्षा का, व्यवसाय का या सामाजिकता का, आप सहज स्वाभाविक भाव से, सस्मित मुस्कान से, शब्दों के वजन को तोलकर, अपने विचारों को दूसरों के सन्मुख प्रस्तुत कर सकते हैं. आपके व्यक्तित्व की परिभाषा स्वयं परिलक्षित होगी. मौन शाश्वत है, चिरंतर है. आंदोलित क्षणों में जब आप घिर जातें हैं, आपका मौन रहना ही आपके वक्तव्य को प्रकट करेगा, आपकी निगाहें वो सब कह देंगी जो आपकी जुबान कहने में असमर्थ रहेगी.
शब्दों के तीखे प्रहारों से घायल होने और करने से बेहतर मौन का प्रहार करें, जिससे सामने वाला बेदम हो जाए. सौ सुनार की एक लुहार की चोट वाला फार्मूला अपनाएं, जहां अपशब्दों का बाजार गरम हो, वहां शांति से अपना वजूद कायम रखें. आपका शांत व्यक्तित्व आपको समाज में सर्वत्र सम्मान दिलाएगा. आपका मन, मस्तिष्क जितनी शांति की भाषा समझता है उतनी कलह, झगड़े या कटुता की नहीं. उन कंटीली झाड़ियों से बचकर चलिए जो अनायास आपसे उलझ जाती है. अपने रास्ते और पगडंडियां खुद बनाइए, आपका मार्ग स्वयं प्रशस्त होता जाएगा.
ये वही मौन है जो दादा की झांकती आंखों मे होता है, जो मां की क्रोध भरी पैनी दृष्टि में होता है, जो शिशुओं के अनबोले शब्दों में होता है, जिसे सभी समझ जाते हैं. संतान के कम नंबर आने पर जो मौन पिता धारण कर लेते हैं, वह किसी व्याख्यान से कम नहीं होता. मौन कभी छिपकर कभी मुखर होकर आपके सामने आता है, वह भाव भंगिमाओं के सहारे भी बहुत कुछ कह जाता है, इसलिए शब्दों की कैंची चलाने से बेहतर है मौन की आवाज को ही अपनी आवाज बनाया जाए. मौन के अपने शब्द भी होते हैं, कटु वाक्य भी होते हैं, बस सही वक्त और सही व्यक्ति पर उन्हें प्रयोग में लाकर आप अपने को अन्य से अलग सि़द्ध कर सकते हैं.
मौन के शब्दों से ना केवल क्रोधी बल्कि ईष्यालु, झगड़ालु व कुटिल व्यक्ति को भी वश में किया जा सकता है. मौन वशीकरण की वह परम औषधी है, जो बड़े-बड़े रोगों का निदान करने में भी समर्थ है. संभवत: जो गुण वैद्य और डॉक्टर के पास भी नहीं हैं, वह गुण मौन के पास हैं. शांति सबको प्रिय होती है, शांत निश्छल जीवन का आनंद ही कुछ और है. अपने को समृ़द्ध बनाने के लिए मौन का मार्ग अपनाइए, वह आपको हर कदम पर विजयी बनाएगा. मौन का उद्गम दिल की गहराइयों से होता है, जो आपके अंतस से निकलकर आपको और सामने वालों को आपकी विशेषताओं सहित स्वीकार्य होता है.
आपका कद उँचा हो जाता है, बिना किसी प्रयास के ही आप अपने गंतव्य तक पहुंचने में सफल हो जाते हैं. मौन आपका अभिन्न मित्र है, जो सदैव आपका साथ निभाने को तत्पर है. आप जब भी बोले शब्दों को तोले, व्यर्थ संभाषण व्यक्तित्व को रसातल में खींच लेता है. निश्छल हृदय मधुर मुस्कान के दरवाजे खोलकर रखें, खुशियां आपके कदम चूमेंगी, कोई भी आपका बाल बांका नहीं कर सकता, आप निश्चित रुप से विजयी होंगे.