इस साल गर्मी के मौसम में बहुत अधिक तापमान होने की भारतीय मौसम विभाग की चेतावनी सही साबित होती दिख रही है. उत्तर भारत और पूर्वोत्तर के साथ-साथ पश्चिम भारत में भी पारा तेजी से चढ़ने लगा है. बीते कई वर्षों से मौसम के मिजाज में बदलाव दिख रहा है और विशेषज्ञों का कहना है कि 2050 तक अत्यधिक गर्म दिन और रात की संख्या में दो से चार गुना बढ़ोतरी हो सकती है.
लू को लेकर भी इसी तरह की आशंकाएं जतायी जा रही हैं. उल्लेखनीय है कि पिछले और इस साल जनवरी से मार्च के महीनों में सामान्य से अधिक तापमान रहा, जिसका नकारात्मक असर पैदावार की मात्रा और पानी की उपलब्धता पर पड़ा है. जलवायु परिवर्तन के कारण 1901 और 2018 के बीच हमारे देश में औसत तापमान में 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है. बढ़ती गर्मी से जहां खेती प्रभावित हो रही है और जल स्रोतों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, वहीं इससे लोगों की मौत भी हो रही है.
अध्ययन बताते हैं कि 2000-2004 और 2017-2021 के बीच बहुत अधिक गर्मी से होने वाली मौतों की तादाद में 55 प्रतिशत की चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है. हमारे देश में अधिकतर कामगार ऐसी स्थितियों में काम करते हैं, जहां गर्मी से बचाव के उपाय कम होते हैं. इससे काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है. स्वाभाविक रूप से इससे अर्थव्यवस्था को भारी क्षति होती है. जानकारों की मानें, तो 2021 में गर्मी के कहर से 167.2 अरब कार्य घंटों का नुकसान हुआ था, जिससे सकल घरेलू उत्पाद को 5.4 प्रतिशत का झटका लगा था.
इस हिसाब में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों, जैसे- स्वच्छ पेयजल का अभाव, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण आदि, के असर को जोड़ दें, तो आर्थिक क्षति बहुत अधिक हो जाती है. विकास आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अर्थव्यवस्था की गति को तेज बनाये रखना जरूरी है. इसलिए अत्यधिक गर्मी और लू के प्रभाव को कैसे कम किया जाए, यह हमारी चिंता का एक प्रमुख विषय होना चाहिए.
गर्मी बढ़ने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का एक अन्य खतरनाक नतीजा प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जाने का भी है. अनेक अध्ययनों में रेखांकित किया जा चुका है कि जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप सर्वाधिक होगा, उनमें भारत भी एक है. एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि भारत के 14 राज्यों- बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश- में 2050 तक प्राकृतिक आपदाओं का संकट बहुत अधिक बढ़ जायेगा. हमें युद्ध स्तर पर तैयारी करने की आवश्यकता है.
SORCE: prabhatkhabar