हास्य व्यंग्य: सावन में शरारत करती बारिश, उफनाती नदी-नालों की खौफनाक हारर फिल्म

Update: 2023-07-16 13:29 GMT
कमल किशोर सक्सेना: कवि कहता है-कोढ़ सरीखी मूसलधार बारिश में खाज बनी बाढ़ ने पिछले सारे रिकार्ड के साथ-साथ घर का गेट, बाउंड्री वाल, कार का बोनट और भी न जाने क्या-क्या तोड़ डाला है। सावन पहले झूला, कजरी-मल्हार और मदमस्त मौसम लेकर आता था, पर अब कीचड़, जलजमाव और बर्बादी लेकर आता है। बरसात अब रिमझिम के तराने नहीं सुनाती, बल्कि उफनाती नदी-नालों की खौफनाक हारर फिल्म दिखाती है, जिसे देख मन मयूर नाचने के बजाये जान हथेली पर लेकर भागने लगता है।
 
लगातार बारिश से बिजली भी गुल है। घर में लगे वाईफाई के डिब्बे में पानी भर गया है। न इंटरनेट चल रहा है और न मोबाइल चार्ज हो पा रहा है। एक बार को अपने पेट में कुछ पड़ा हो या न पड़ा हो, लेकिन मोबाइल की बैटरी का पेट भरा होना चाहिए। ऐसी जालिम परिस्थितियों में आशिक सबसे ज्यादा बेचैन है। उसकी महबूबा सात सेक्टर पार की सोसायटी में निवास करती है। उसे वह अपना पैगाम कैसे भेजे। हाथ से खत लिखने का भी अभ्यास छूट गया है। आखिर वह प्लास्टिक की एक शीशी में गुलाब का फूल रखता है और इस प्रार्थना के साथ बहा देता है कि ‘हे मैनहोल, इस भयानक मौसम में अब तुम्हीं मेरे लिए दूत बन जाओ! तुम्हें नगर निगम की खस्ताहाल कार्यप्रणाली की कसम...यह संदेश सीवर लाइन के जरिये मेरी प्रेमिका तक पहुंचा देना।’
कवि कहता है कि महाकवि कालिदास का जमाना होता तो मेघों को दूत बनाकर वह अपना संदेश भेज सकता था, किंतु इस मिलावटी दौर के खालिस कलियुग में मेघ भी विश्वसनीय नहीं रह गए हैं। कई बार काली घटाएं देखकर गृहणियां बेसन घोलकर पकौड़ी बनाने की तैयारियां करती हैं, लेकिन चूल्हे पर चढ़ी कड़ाही में तेल गरम होने से पहले ही घटाएं आगे बढ़ जाती हैं। ऐसी हृदय जलाऊ स्थितियों में नीरज जी की पंक्तियां बरबस याद आती हैं-अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।
जल संस्थान की पाइपलाइन छोड़कर, शहर में चारों ओर जल ही जल है। दीवार पर सरकारी विज्ञापन में लिखा है, ‘जल ही जीवन है’, लेकिन ठीक उसके नीचे खुला मैनहोल है, जो किसी को नहीं दिख रहा है। पिछले दो दिनों में कई लोग उसमें जीवन की संभावनाओं को खोजते-खोजते जल समाधि ले चुके हैं। एक खुशकिस्मत भीतर ही भीतर बहकर दूसरे मोहल्ले के नाले से बरामद हुआ। उसने बताया कि मैनहोल के अंदर निगम का एक बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है-इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, दीवार-ओ-दर को गौर से पहचान लीजिए।
नगर निगम की एक सड़क दूसरी से पूछती है-सखी सड़क! तुम्हारा तो अभी तीन महीने पहले ही गौना हुआ था। सुहागन की तरह सोलह शृंगार किए शहर की सेज पर पधारी थीं। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि बरसात की पहली ही फुहार में तुम उजड़ा चमन नजर आने लगीं! सड़क जवाब देती है-बहन, सब कमीशन का खेल है। इसके लिए भी वही ठेकेदार और इंजीनियर जिम्मेदार हैं, जिनकी काली करतूतों से तुम दर्जनों गड्ढों की बिन ब्याही मां बन गईं। उसी कमीने कमीशन ने मेरी मांग के सिंदूर पर बुलडोजर चला दिया।
कवि एक सवाल करता है-कौन कहता है कि नेता लोग सच नहीं बोलते। देश की राजधानी इस जुलाई में ही ‘इटली का वेनिस’ नजर आने लगी है। वहां के मुख्यमंत्री का वादा था कि दिल्ली के कोने-कोने तक पानी पहुंचा देंगे। देखिए पहुंचा दिया या नहीं। कहा था कि उसे झीलों का शहर बना देंगे। बना तो दिया। आज सावन के अंधे को चारों ओर हरा-हरा भले न दिखे, लेकिन हलाहल पानी जरूर दिख जाएगा। आप एक स्विमिंग पूल की बात करते हैं...पूरी दिल्ली आज तरणताल बन गई है। तैरकर आफिस जाइए, तैरकर बाजार जाइए, तैरते हुए मीटिंग कीजिए। और, व्यवस्था को कोस-कोस कर जब थक जाइए तो इसी पानी से चुल्लू भर लेकर जिम्मेदारों को दे आइए।
BY JAGRAN NEWS

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