Russia Ukraine War : यूक्रेन के हवाई क्षेत्र को बंद करना बहुत बड़ी गलती होगी, पुतिन यही तो चाहते हैं
यूक्रेन के हवाई क्षेत्र को बंद करना बहुत बड़ी गलती होगी, पुतिन यही तो चाहते हैं
के वी रमेश
यदि आप कुछ करते हैं तो भी दिक्कत और कुछ नहीं करते हैं तो भी समस्या. व्लोदिमीर जेलेंस्की (volodymyr zelensky) द्वारा यूक्रेन (Ukraine) को नो-फ्लाई जोन घोषित किए जाने की मांग ने उसके पश्चिमी सहयोगियों को पसोपेश में डाल दिया है. यदि वे यूक्रेन को नो-फ्लाई जोन घोषित करते हैं तो इससे युद्ध के और तीव्र होने और इसके विस्तार होने की मजबूत संभावना है. ब्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) यहीं चाहेंगे क्योंकि वह ऐसी ही मौके की ताक में हैं.
अभी, पूरी दुनिया की नजर रूसी सेना पर है जो यूक्रेन के शहरों का विनाश कर रही है और आम नागरिकों को निशाना बना रही है, जिसकी वजह से मानवीय त्रासदी के हालात बने हुए हैं. इससे पुतिन और रूस की दुनिया भर में बदनामी हो रही है और ऐसे में नाटो का इस युद्ध में शामिल होने से यह बदनामी फीकी पड़ सकती है. रूस में किसी भी नजरिए से यूक्रेन युद्ध को बहुत वाजिब नहीं माना जा रहा है और क्रेमलिन (रूसी सरकार का प्रतीक) इसे महज एक 'सैन्य कार्रवाई' बता रहा है. ऐसे हालात में यदि नाटो कोई आक्रामक कदम उठाता है तो पुतिन को पश्चिमी देशों के खिलाफ संपूर्ण युद्ध घोषित करने का बहाना मिल जाएगा और इसके जरिए वे रूसी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर देश की जनता को अपने पाले में ला सकते हैं.
नो-फ्लाई जोन की घोषणा से युद्ध और तेज हो सकता है
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन यूक्रेन को नो-फ्लाई जोन घोषित करने की मांग ठुकरा चुके हैं, क्योंकि इस कदम के दूसरे प्रभाव भी हो सकते हैं. नो-फ्लाई जोन की घोषणा से युद्ध की तीव्रता बढ़ सकती है और इससे नाटो की वायु सेना और रूसी वायु सेना आमने-सामने आ सकती है. इसके परिणामस्वरूप जो महायुद्ध होगा, वह इतना भयानक होगा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. सैन्य साजो सामान, रक्षात्मक और साइबर वारफेयर की क्षमता के लिहाज से दोनों ही पक्ष बराबरी में हैं.
एलाइड एयर कमांड का मुख्यालय जर्मनी के रैमस्टीन एयर बेस में है और इसकी अगुवाई जनरल जेफ्री हैरीजियन करते हैं, जबकि ओवरऑल कमांडर टॉड डी वोल्टर्स हैं. वोल्टर्स, नाटो के सुप्रीम अलाइड कमांडर यूरोप (SACEUR) के मुखिया हैं और नो-फ्लाई जोन लागू करने की जिम्मेदारी इन्हीं पर होगी. हालांकि, इसके पास AWACS (Airborne Warning and Control Systems) एयरक्राफ्ट के बेड़े को छोड़कर स्वयं की वायु सेना नहीं है, लेकिन यह अपने 30 सदस्य देशों से हजारों एयरक्राफ्ट बुला सकता है. अकेले अमेरिकी वायु सेना के पास 13,000 से अधिक एयरक्राफ्ट हैं, जो नाटो के सदस्य देशों के सभी लड़ाकू विमानों से अधिक है, इसमें दुनिया के कुछ सबसे घातक हमले वाले एयरक्राफ्ट भी शामिल हैं.
रूसी वायु सेना के पास करीब 1,500 एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें सुखोई श्रेणी के सुखोई-30 और सुखोई-35, मिग-35 वगैरह शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर सोवियत संघ दौर वाले 80 के दशक मिग और सुखोई विमान हैं. इसके एकमात्र मल्टी-रोल एयरक्राफ्ट Su-57 हैं, जो अमेरिका के उन्नत लड़ाकू विमान F-22 Raptor और F-35 Lightning का सामना कर सकते हैं. रूसी सेना के पास इसका सिर्फ एक स्क्वॉड्रन मौजूद है, भले ही इसने 71 ऐसे विमानों का ऑर्डर कर रखा है. 2008 में जॉर्जिया के साथ युद्ध के बाद से माना जाता है कि रूसी सेना हर साल करीब 150 बिलियन डॉलर का सैन्य खर्च करती है, क्योंकि पुतिन रूसी सेना को उतनी ही ताकतवर बनाने की कोशिश में हैं जितनी वह 70 और 80 के दशकों में हुआ करती थी. कहा जा रहा है कि रूस ने अपने लड़ाकू विमानों के दर्जनों स्क्वॉड्रन को यूक्रेनी सीमा और बेलारूस की सीमा पर तैनात कर रखा है.
पुतिन के पास यूक्रेन पर आक्रमण का कोई वाजिब कारण नहीं है
नो-फ्लाई जोन के समर्थकों का कहना है कि नाटो द्वारा एयर पेट्रोलिंग करने से यूक्रेनी लड़ाकू विमानों (जिसमें नाटो के दोस्त या दुश्मन की पहचान होगी) को आजादी से आसमान में उड़ान भरने की सुविधा मिलेगी और इससे ये विमान, रूसी सेना और बख्तरबंद गाड़ियों को सुरक्षा दे रहे हेलीकॉप्टर पर हमला कर सकेंगे. यह तर्क बेहद आसान लगता है, जबकि इसके परिणाम बहुत घातक हो सकते हैं. यह तय है कि पुतिन इस कदम को नाटो देशों द्वारा युद्ध की घोषणा के तौर पर देखेंगे और संभव है कि वह इसके जवाब में पोलैंड और बाल्टिक देशों – एस्तोनिया, लातविया और लिथुवानिया – पर हमला कर दें. किसी भी तरह के उकसावे से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल आशंका बढ़ जाएगी, क्योंकि क्रेमलिन पहले से ही अपनी रणनीतिक परमाणु सेनाओं को अलर्ट पर रख चुका है. यही वह डर है जिसकी वजह से पश्चिमी देश दुविधा में हैं.
पश्चिमी देश के नेताओं को उम्मीद है कि आर्थिक पाबंदियों के असर का सामना करने में रूसी अर्थव्यवस्था अक्षम साबित होगी और यही पुतिन को हराने का अहम जरिया होगा. पश्चिमी देशों का अगला कदम रूस से ऑयल और गैस की खरीद को पूरी तरह से बंद करने का हो सकता है, लेकिन यूरोप को भी इससे उतना ही नुकसान होगा जितना रूस को. इन देशों में इनकी कीमतें पहले ही 14 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं, फिर इस कदम से ये कीमतें आसमान छू सकती हैं और यूरोपीय देशों समेत अमेरिका में लोगों के बीच अशांति फैल सकती है. इन हालातों को न्यूक्लियर MAD (Mutually Assured Aestruction) – ऐसे स्थिति जहां परमाणु युद्ध के कारण हमला करने वाले और रक्षा करने वाले दोनों ही पक्षों को पूर्ण विनाश का सामना करना पड़ता है – के बराबर ही माना जा सकता है.
ये विषम हालात हैं. पुतिन के पास यूक्रेन पर आक्रमण का कोई वाजिब कारण नहीं है, लेकिन वे इसे किसी भी स्तर तक ले जाने के लिए तैयार हैं. पश्चिमी देशों के पास यूक्रेन में हस्तक्षेप करने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते और करेंगे भी नहीं. यह ऐसी परिस्थिति है, जिसे पश्चिमी देश जारी नहीं रखना चाहते, लेकिन वे नो-फ्लाई जोन का कदम तब तक नहीं उठा सकते जब तक पुतिन कोई अगला नहीं उठाते यानि यूक्रेन में अपने लड़ाकू विमानों को नहीं ले जाते. इन हालातों में किसी भी एक निश्चित परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती.