By NI Editorial
बेंगलुरू की बाढ़ से सिर्फ प्रीमियम गाड़ियों को ही 100 करोड़ का नुकसान हुआ है। बाकी संपत्तियों का नुकसान अलग है। इस तरह की घटनाओं का शिकार होने के मामले में भारत अकेला नहीं है।
कोरोना महामारी का प्रकोप जब कुछ घटा, तो भारत में स्वास्थ्य बीमा कराने वाले लोगों को एक नया झटका लगा। उन्हें बताया गया कि बीमा कंपनियों ने पॉलिसी की रेट में भारी इजाफा कर दिया है। ये बढ़ोतरी एक चौथाई तक देखी गई। नतीजतन, ऐसी खबरें भी आईं कि बहुत से लोगों ने अपनी पॉलिसी एक्सपायर हो जाने दी है। अब ऐसा ही झटका जेनरल बीमा कराने वाले लोगों को लगने वाला है। इसकी वजह जलवायु परिवर्तन की बढ़ती मार को बताया जा रहा है। खबर है कि बंगलुरू की हालिया बाढ़ से हुए नुकसान के कारण बीमा कंपनियों के पास क्लेम की भरमार लग गई है। इसी महीने तीन दिन की भारी बारिश ने भारत की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बंगलुरू महानगर को बाढ़ में डुबो दिया था। इस बारिश ने बंगलुरू की लचर अर्बन प्लानिंग को उजागर कर दिया। पॉश इलाके और दिग्गज आईटी कंपनियों के कॉरिडोर भी बाढ़ से नहीं बच सके। चूंकि यह घटना अकेली नहीं है- यानी बीते कुछ वर्षों में ऐसा ही नजारा चेन्नई और मुंबई सहित कई शहरों में उपस्थित हुआ है, इसलिए अब समझा जा रहा है कि ऐसी आपदाएं अब आम हो गई हैं।
बीमा कंपनियों का कहना है कि बंगलुरू में उनके पास क्लेम की सैकड़ों रिक्वेस्ट आ चुकी हैं। प्रीमियम सेगमेंट के वाहन जैसे, बीएमडब्लू, मर्सिडीज और ऑडी जैसी गाड़ियों के हाई वैल्यू क्लेम भी आए हैं। 13 सितंबर तक आए क्लेम के आधार पर लगाए गए अनुमान के मुताबिक बेंगलुरू की बाढ़ से सिर्फ प्रीमियम गाड़ियों को ही 100 करोड़ का नुकसान हुआ है। बाकी संपत्तियों का नुकसान अलग है। लेकिन इस तरह की घटनाओं का शिकार होने के मामले में भारत अकेला नहीं है। इसके पहले स्विट्जरलैंड की बीमा कंपनियों ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान लगातार बढ़ता जा रहा है। 2021 में जर्मनी के कुछ इलाकों में भीषण बाढ़ आई। जर्मनी की सबसे बड़ी बीमा कंपनियों के मुताबिक 2021 में दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 280 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। तो बीमा कराना महंगा हो जाएगा। जो लोग ये कीमत चुकाने की स्थिति में होगे, उन्हें गहराते जोखिम के साये में जीना होगा।