बॉलीवुड के बादशाह के तौर पर मशहूर शख्स के युवा बेटे का रेव पार्टी में पकड़े जाना अखबारी सुर्खियों का हिस्सा है। रेव पार्टी का शाब्दिक अर्थ है मौज मस्ती की पार्टी। रेव पार्टी शराब, ड्रग्स, म्यूजिक, नाच गाना और सेक्स का कॉकटेल होता है। ये पार्टियां बड़े गुपचुप तरीके से आयोजित की जाती हैं। जिनको बुलाया जाता है, वे सर्किट के बाहर के लोगों को जरा भी भनक नहीं लगने देते। नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए ये रेव पार्टियां धंधे की सबसे मुफीद जगह बन गई हैं। रेव पार्टियों में शामिल युवाओं को 'मस्ती' करने की पूरी छूट होती है। एंट्री के लिए भी अच्छी-खासी रकम लगती है। भीतर हजारों वाट के संगीत पर थिरकते युवा होते हैं। कोकीन, हशीश, चरस, एलएसडी, मेफेड्रोन, एक्सटसी जैसे ड्रग्स लिए जाते हैं। अधिकतर रेव पार्टियों में ड्रग्स उपलब्ध करने का जिम्मा ऑर्गनाइजर्स का होता है। कुछ रेव पार्टियों में 'चिल रूम्स' भी होते हैं जहां खुलेआम सेक्स चलता है। कई क्लब्स में ड्रग्स के कुछ साइड इफेक्ट्स जैसे डिहाड्रेशन और हाइपरथर्मिया को कम करने के लिए पानी और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स भी उपलब्ध कराई जाती हैं। रेब या फिर रेव का मतलब बड़बड़ाना कहा जा सकता है। यह एक नाइट क्लब, आउटडोर उत्सव, गोदाम या अन्य निजी संपत्ति में एक संगठित नृत्य पार्टी है जिसमें आमतौर पर डीजे द्वारा प्रदर्शन की विशेषता होती है, जो इलेक्ट्रॉनिक नृत्य संगीत का सहज प्रवाह खेलती है। संगीत अक्सर लेजर लाइट शो, रंगीन चित्रों, दृश्य प्रभावों और कोहरे मशीनों के साथ होता है। म्यूजिक की हर बीट के साथ शरीर में थिरकन पैदा करता संगीत, धीमे-धीमे रगों में घुलता नशा और अय्याशी की पूरी आजादी के साथ अधिकतर रेव पार्टियों में कमोबेश यही नजारा दिखता है। अनेक मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि म्यूजिक, ड्रग्स और सेक्स की इस नामुराद दुनिया में आने के लिए जेब में माल और 'कॉन्टैक्ट्स' होना जरूरी है। इन पार्टियों में रईसजादों का मजमा लगता है।
80 और 90 के दशक में दुनिया बड़ी तेजी से रेव पार्टियों से वाकिफ हुई। हालांकि ऐसी पार्टियों की शुरुआत उससे करीब 20-30 साल पहले हो चुकी थी। लंदन में होने वाली बेहद जोशीली पार्टियों को 'रेव' कहा जाता है। अमेरिकी न्याय विभाग का एक दस्तावेज बताता है कि 1980 की डांस पार्टियों से ही रेव का चलन निकला। जैसे-जैसे तकनीक और ड्रग्स का जाल फैला, रेव पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। भारत में रेव पार्टियों का चलन हिप्पियों ने गोवा में शुरू किया। इसके बाद देश के कई शहरों में रेव पार्टियों का ट्रेंड बढ़ा। भारत में गोवा के अलावा अनेक राज्य अपनी रेव पार्टियों के लिए मशहूर है। बेंगलुरू भी रेव हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है। पुणे, मुंबई समेत कई अन्य टियर-1 शहरों में भी रेव पार्टियां पकड़ी गई हैं। मार्च 2007 में पुणे में एक रेव पार्टी से 280 लोग गिरफ्तार किए गए थे। पुलिस सादे कपड़ों में रेव पार्टियों पर छापे मारती है। वहां मिले लोगों पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक्स सबस्टेंसेज एक्ट 1985 और इंडियन पीनल कोड के तहत कार्रवाई होती है। एक रिसर्च पेपर के अनुसार गंभीर मामलों में मौत आम है। दुनियाभर की रेव पार्टियों में ड्रग्स ओवरडोज से मौतों की सैकड़ों रिपोर्ट्स उपलब्ध हैं। साल 2017 में एक अमेरिकी अखबार ने रेव पार्टियों में जाने वाले 29 लोगों की कहानियां छापीं जो ड्रग्स ओवरडोज से मारे गए। यह तथ्य है कि जो लोग हानिकारक एडिक्शन के आदि हैं वे न केवल अपने शारीरिक स्वास्थ्य को दांव पर लगा रहे हैं बल्कि गंभीर मानसिक मुद्दों को भी झेल सकते हैं। इन पार्टियों में गैर कानूनी व प्रतिबंधित ड्रग्स का इस्तेमाल होता है। आज महानगरों के युवक-युवतियों में रेव के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है। ड्रग्स लेने के बाद युवा लगातार 8 घंटे तक डांस कर सकते हैं। ये ड्रग्स उनमें लगातार नाचने का जुनून पैदा करते हैं। नाचते हुए इश्क ने जोर मारा तो कई रेव पार्टियों में उसकी व्यवस्था भी रहती है। रेव वेन्यू पर उसके लिए हट बनने लगे हैं। इसमें भाग लेने वाले बिंदास युवकों के लिए सेक्स और प्यार की नैतिकता कोई मायने नहीं रखती। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रेव अब धंधा नहीं रहा। अब यह सिर्फ करीबी दोस्तों के बीच का सर्किट बन चुका है। वे आपस में पैसे जमा करते हैं। फिर अय्याशी होती है। इन पार्टियों में मॉडल, सेलिब्रिटी, राजनेताओं के बच्चे और उनके दोस्त होते हैं।
दिल्ली में ज्यादातर स्टूडेंट्स, अमीरों के बेटे-बेटियां और इंडस्ट्रियलिस्ट के बच्चे होते हैं। रेविए ने बताया कि फार्महाउस और बड़े-बड़े बंगलों को इसलिए चुना जाता है कि वहां आसानी से सब चारदीवारी में मैनेज हो जाता है। इसलिए घर जैसी लोकेशन को चुना जाता है। जहां स्वीमिंग पूल हो और बड़ा गार्डन। रेविए ने बताया कि एक सच्चा रेविया बड़ा 'घाग' होता है। पार्टी के बारे में वे 'सर्किट' के बाहर के लोगों को जरा भी भनक नहीं लगने देते। इन पार्टियों में आम लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। धनकुबेरों के आवारा लड़के-लड़कियों की कुत्सित वासनाएं पूरा करने के लिए रात के अंधेरों में इन पार्टियों का आयोजन किया जाता है। मॉडल लड़के-लड़कियां तो इन पार्टियों में अकसर देखे जाते हैं। हम भले ही लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या में कमी होने का रोना रोते हों, लेकिन इन रेव पार्टियों के मामले में लड़कियों ने लड़कों को काफी पीछे छोड़ दिया है। सौ रेवियों में लड़कियों की संख्या 60 होती ही है। मेट्रो सिटीज से निकल अब रेव पार्टियां पहाड़ी राज्यों तक पहुंच गई हैं। लेकिन नशे के घालमेल ने रेव पार्टी का उसूल बदल दिया है। पहले यह खुले में होता था, अब छिपकर होने लगा है। नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए ये रेव पार्टियां धंधे की सबसे मुफीद जगह बन गई हैं। पुलिस की अधिक चौकसी की वजह से मेट्रो सिटीज के रेव पार्टियों के मतवालों को दूर जाकर अपना यह शगल पूरा करना पड़ रहा है। दिल्ली जैसे शहरों के लगभग सभी डीजे इन रेव पार्टियों की वजह से मालामाल हो रहे हैं। महरौली व गुड़गांव के एकांत फार्म हाउस में ये डीजे ही उनकी नाइट लाइफ को रंगीन बनाते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स से पता लगता है कि रेविए इसराइल, ईरान और फ्रांस की फिरंगी सर्किट में अधिक जाते हैं। सुना जा रहा है कि रेव अब धंधा नहीं रहा।
अब यह सिर्फ करीबी दोस्तों के बीच का शगल रह गया है। वे आपस में पैसे पूल (जमा) करते हैं, फिर मस्ती करते हैं। रेव पार्टियों में नए सदस्यों का आना एकदम बंद है। ये नए लोग ही गड़बड़ करते हैं। अपनी शान बघारने के लिए किसी को बता देते हैं। इन पार्टियों में मॉडल, सेलिब्रिटी एवं राजनेताओं के बच्चे जाते हैं। दिल्ली के छिपे हुए कोनों में स्थित फार्महाउस रेव पार्टियों के लिए पसंदीदा अड्डे हैं। ड्रग्स और अन्य गैरकानूनी गतिविधियां इन फार्महाउस में होने वाली रेव पार्टियों में की जाती हैं। महरौली के फतेहपुर बेरी, छतरपुर और भाटी माइंस गांव में स्थित सैकड़ों फार्महाउस, कापसहेड़ा बॉर्डर पर बने फार्महाउस, यमुना किनारे कुछ जगहें और आउटर दिल्ली या जीटी रोड पर बने रिजॉर्ट्स आमतौर पर इन अवैध रेव, कैसीनो, निजी और हाई प्रोफाइल पार्टियों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इन पार्टियों के कई ऐसे राज होते हैं जो छापों के बाद खुलते हैं जिसके बाद हर कोई हैरान रह जाता है। रेव पार्टी कल्चर आज समृद्ध भारतीय संस्कृति के लिए चुनौती बन कर सामने आ रही है। मैं यह मानता हंू कि यह भारतीय युवाओं को दी जा रही मूल्य-विहीन शिक्षा का नतीजा है। हमारे युवाओं के आदर्श अब विवेकानंद जी नहीं रहे, भगत सिंह जी इत्यादि नहीं रहे हैं, बल्कि बॉलीवुड के बिगड़े शहजादे हैं। यह समाज के लिए चिंता का विषय है। मां-बाप अपने युवाओं के क्रियाकलापों पर नजर रखें। यदि समय रहते सार्थक कदम नहीं उठाए जाते तो इसके बड़े शहरों और गांवों तक पहुंचते देर नहीं लगेगी।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com