Rajya Sabha Election: पत्नी के नामांकन के बदले पप्पू यादव बिहार चुनाव में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर सकते हैं?
राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election) के लिए कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने रविवार को 10 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें पार्टी के कई ऐसे नेताओं के नाम है
अजय झा |
राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election) के लिए कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने रविवार को 10 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें पार्टी के कई ऐसे नेताओं के नाम है जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. इसमें छत्तीसगढ़ से उम्मीदवार के रूप में एक नाम रंजीत रंजन का भी है. जिन्हें लोग पप्पू यादव की पत्नी के नाम से भी जानते हैं. पप्पू यादव को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पूर्व शिष्य के रूप में भी जाना जाता है. रंजीत रंजन एक पूर्व लोकसभा सांसद हैं, उन्होंने 2004 के चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से सहरसा की सीट जीती थी. 2014 में वह कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से भी उम्मीदवार थीं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं को छोड़कर रंजीत रंजन को तरजीह दिए जाने के बाद लोगों की भौहें चढ़ गई है. कांग्रेस पार्टी का राज्यसभा नामांकन भारतीय राजनीति में उसकी कमजोर स्थिति को बेहतर दिखाने का एक मात्र बेशकीमती अधिकार बच गया है. दरअसल, इस पार्टी के पास अपने खास सदस्यों को पुरस्कृत करने के लिए अब सीमित विकल्प मौजूद हैं, जिनमें से एक राज्यसभा की सीट भी है. समान परिस्थितियों में नामांकन या तो वरिष्ठ नेताओं के पास जाता है या फिर जिन्होंने लंबे समय तक पार्टी या गांधी परिवार की सेवा की है, उनके पास जाता है. जैसे कि रणदीप सिंह सुरजेवाला जिनको राजस्थान से नामांकित किया गया. अजय माकन जिन्हें हरियाणा से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया और राजीव शुक्ला जिन्हें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया.
रंजीत रंजन इन दोनों मापदंडों में खरी नहीं उतरती हैं. फिर भी वह कई अन्य योग्य नेताओं से आगे जाकर कांग्रेस का नामांकन हासिल करने में सफल रहती हैं. यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए उनका नामांकन एक सौदे का हिस्सा है. हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी उस पप्पू यादव का आगे के चुनावों में साथ चाहती हो, जो कभी बिहार में डर का दूसरा रूप माना जाता था. हाथ में एके-47 असॉल्ट राइफल लिए गाड़ी चलाते हुए पप्पू यादव की तस्वीर आज भी लोगों के जेहन में ताजा है.
पप्पू यादव तब सुर्खियों में आए थे जब लालू प्रसाद यादव ने बिहार में अपराधियों का राजनीतिकरण शुरू किया था, ताकि अगर लोग उन्हें अपनी पसंद से वोट ना दें तो फिर शहाबुद्दीन और पप्पू यादव जैसे अपराधियों के भय से लोग आरजेडी को वोट दें. शहाबुद्दीन की मृत्यु 2021 में हो गई है, शहाबुद्दीन साल 2007 से ही जेल में था और जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई. वहीं पप्पू यादव को 1998 के सीपीएम नेता अजीत सरकार की हत्या के मामले में 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. हालांकि 2013 में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया था. लेकिन इसके बावजूद भी पप्पू यादव आज भी बाहुबली राजनेताओं में शुमार हैं. हालांकि, लालू प्रसाद यादव का साथ उन्हें ज्यादा समय तक नहीं मिला और साल 2015 में लालू यादव और पप्पू यादव के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि लालू प्रसाद यादव ने उन्हें आरजेडी से निष्कासित कर दिया. जिसके बाद पप्पू यादव ने अपनी खुद की जन अधिकार पार्टी बनाई.
लेकिन इसके बावजूद भी उनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस में बनी रहीं. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही थी तो उस समय पप्पू यादव ने खुलकर बड़े पैमाने पर अपनी पत्नी के लिए प्रचार भी किया था. हालांकि वह अपने प्रतिद्वंदी जेडीयू के दिलेश्वर कामत से हार गईं. इस हार के बाद आरजेडी और कांग्रेस के बीच कड़वाहट भी आई और आरजेडी पर आरोप लगे कि उसने रंजीत रंजन के विरोध में प्रचार किया था.
बिहार से आ रही खबरों से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी ने आरजेडी के साथ अपने अस्थिर संबंध को तोड़ने और बिहार की राजनीति में अपनी जड़े फिर से स्थापित करने की कोशिश का मन बना लिया है. ऐसा ही सुझाव चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी दिया था. आरजेडी में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के हार की वजह कांग्रेस पार्टी को बताया था क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने 70 सीटों में से सिर्फ 19 सीटें ही जीती थीं. जबकि आरजेडी ने 144 सीटों में से 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी. महागठबंधन सरकार बनाने से महज 12 सीटों से चूक गया था. बाद में कुशेश्वरस्थान और तारापुर सीट के लिए 2021 में विधानसभा उपचुनाव हुए जहां आरजेडी और कांग्रेस के उम्मीदवार एक दूसरे के खिलाफ खड़े थे. दरअसल 2020 के चुनाव में इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और वह दूसरे नंबर भी थी. लेकिन जब उपचुनाव की बारी आई तो आरजेडी ने दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया.
कांग्रेस पार्टी को यह फैसला मंजूर नहीं था और उसने इसका प्रतिकार करते हुए इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतार दिए. दोनों पार्टियों की आपस में भिड़ंत होने की वजह से इसका फायदा जेडीयू को मिला और यह दोनों सीटें जेडीयू जीतने में कामयाब रही. अब तक यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि छत्तीसगढ़ से रंजीत रंजन का राज्यसभा नामांकन बिहार के लिए कांग्रेस पार्टी के भविष्य की रणनीति का एक हिस्सा है. इस रणनीति के तहत बिहार में कांग्रेस पार्टी पप्पू यादव पर निर्भर रहेगी और राज्य में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने में उनकी मदद लेगी. पीछे मुड़कर देखें तो 1990 के बाद कांग्रेस पार्टी इस राज्य में कभी भी शासन में नहीं रही. इस बात की प्रबल संभावना है कि पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दें और 2024 में लोकसभा चुनाव और 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का बिहार में चेहरा बने.
सोर्स- tv9hindi.com