अग्निपथ योजना के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव, अनुचित परंपरा को बढ़ावा
सेना में भर्ती के लिए लाई गई जिस अग्निपथ योजना में अकेले वायुसेना को करीब साढ़े सात लाख आवेदन मिले हों, उसके खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित होना हास्यास्पद ही है
सोर्स- जागरण
सेना में भर्ती के लिए लाई गई जिस अग्निपथ योजना में अकेले वायुसेना को करीब साढ़े सात लाख आवेदन मिले हों, उसके खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित होना हास्यास्पद ही है। इस योजना के तहत रिकार्ड संख्या में आवेदन मिलना यही बताता है कि देश के युवा सेना में अपनी सेवाएं देने के लिए प्रतिबद्ध हैं और वे यह समझ चुके हैं कि यदि चार साल बाद सैनिक के रूप में उनकी सेवाएं जारी नहीं रहतीं तो भी वे अपने लिए रोजगार की तलाश करने में समर्थ होंगे।
इसका एक कारण तो यह है कि इसके लिए केंद्र सरकार ने कुछ विशेष प्रविधान किए हैं और दूसरा यह कि कई राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र ने भी अपने-अपने स्तर पर सकारात्मक पहल की है। जब अपेक्षा यह की जा रही थी कि सभी राज्य सरकारें अग्निपथ योजना में शामिल होने वाले युवाओं यानी अग्निवीरों के लिए कुछ सकारात्मक घोषणाएं करतीं, तब उनमें से कुछ ने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से नकारात्मक रवैया अपनाना पसंद किया।
समस्या केवल यह नहीं कि पंजाब सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव लाकर अग्निपथ योजना का विरोध किया, बल्कि यह भी है कि कांग्रेस ने भी उसका साथ देना उचित समझा। इससे यही पता चलता है कि राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर कांग्रेस का रवैया भी क्षेत्रीय दलों सरीखा होता जा रहा है।
कांग्रेस ने पंजाब सरकार की ओर से लाए गए प्रस्ताव का जिस तरह समर्थन किया, उसे देखते हुए हैरानी नहीं कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारें भी इसी राह पर चलें। इसका अंदेशा इसलिए भी है, क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून के मामले में ऐसा ही किया गया था। एक के बाद एक राज्य सरकारों ने नागरिकता कानून के विरोध में विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए थे, जबकि राज्यों का इस कानून से कोई लेना-देना ही नहीं था। जैसे राज्य सरकारों को किसी को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार नहीं, वैसे ही यह तय करने में भी उनकी कोई भूमिका नहीं कि सेना में भर्ती के तौर-तरीके क्या होने चाहिए
नि:संदेह यह एक गलत परंपरा है कि राज्य सरकारें उन मामलों में भी विधानसभा से प्रस्ताव कराएं, जिनमें उनका कोई अधिकार ही नहीं। अग्निपथ योजना से राजनीतिक दलों की असहमति हो सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसे व्यक्त करने के लिए वे विधानसभाओं का अनुचित इस्तेमाल करें। दुर्भाग्य से ऐसा ही हो रहा है। केंद्र सरकार के फैसलों के खिलाफ विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कराना संघीय ढांचे की मूल भावना के खिलाफ है। यह विडंबना ही है कि जो राज्य संघीय ढांचे के खिलाफ काम कर रहे हैं, वही अक्सर इस ढांचे को कमजोर किए जाने का रोना रोते हैं।