प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: भारत की कृषि उन्नति विकसित देशों को चुभ रही, कई देशों ने कृषि सब्सिडी का किया विरोध

भारत की कृषि उन्नति विकसित देशों को चुभ रही, कई देशों ने कृषि सब्सिडी का किया विरोध

Update: 2022-06-25 17:45 GMT


By लोकमत समाचार सम्पादकीय
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की 12 से 15 जून 2022 तक जिनेवा में हुई तीन दिन की बैठक में अमेरिका और अन्य विकसित यूरोपीय देशों ने भारतीय किसानों को दी जाने वाली कृषि सब्सिडी का जबर्दस्त विरोध किया है. ये देश चाहते हैं कि किसानों को जो सालाना छह हजार रुपए की आर्थिक मदद और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज खरीदने की सुविधा दी जा रही है, भारत उसे तत्काल बंद करे.
गेहूं और चावल पर भी जताई गई आपत्ति
यही नहीं, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देशभर के 81 करोड़ लोगों को 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल जो मिलते हैं, उस पर भी आपत्ति जताई है. देश की करीब 67 फीसदी आबादी को रियायती दर पर अनाज मिलता है अर्थात करीब 81 करोड़ लोगों को यह सुविधा उपलब्ध है.
इस कल्याणकारी योजना पर 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपए का खर्च सब्सिडी के रूप में प्रति वर्ष होता है. परंतु भारत ने अपने किसान और गरीब आबादी के हितों से समझौता करने से साफ इंकार कर दिया.
अमेरिका के 28 सांसदों ने भारत पर क्या लगाया आरोप
दरअसल जिनेवा में चली इस बैठक के पहले ही अमेरिका के 28 सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि भारत डब्ल्यूटीओ के तय नियमों का खुला उल्लंघन कर रहा है, नियमानुसार अनाजों के उत्पादन मूल्य पर 10 प्रतिशत से ज्यादा सब्सिडी नहीं दी जा सकती है, जबकि भारत इससे कई गुना ज्यादा सब्सिडी देता है.
164 सदस्यीय देशों वाले डब्ल्यूटीओ के जी-33 समूह के 47 देशों के मंत्रियों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया, जिसमें भारत की ओर से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भागीदारी की थी. इस बैठक में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव लाने की तैयारी की गई.
एक, कृषि सब्सिडी खत्म करना, दो, मछली पकड़ने पर अंतरराष्ट्रीय कानून बनाना और तीन, कोविड वैक्सीन पेटेंट के लिए नए नियम तैयार करना.
कृषि सब्सिडी को बन्द नहीं करेगा भारत
अमेरिका, यूरोप और दूसरे ताकतवर देश इन तीनों ही मुद्दों पर लाए जाने वाले प्रस्ताव के समर्थन में थे, जबकि भारत ने इन तीनों ही प्रस्तावों का दृढ़ता के साथ विरोध किया और देश के किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को बंद करने के सिलसिले में विकसित देशों को अंगूठा दिखा दिया.
इस मामले में भारत को चीन समेत अस्सी देशों का साथ मिला है, नतीजतन विकसित देश नाराज तो हैं, किंतु भारत को आंख दिखाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. विकसित देशों की कृषि सब्सिडी संबंधी नीतियां दोगली हैं.
पश्चिमी देश भारत के कृषि सब्सिडी पर ऐतराज क्यों कर रहे
भारत और कीनिया, जहां कृषि पर केवल 451 और 206 डॉलर की सब्सिडी किसानों को देते हैं, वहीं स्विट्जरलैंड, कनाडा, अमेरिका और चीन क्रमशः 37,952, 26,850, 24,714 और 1208डॉलर की सब्सिडी अपने किसानों को देते हैं. इसके बावजूद पश्चिमी देशों का भारत द्वारा किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी पर ऐतराज किसलिए?
दरअसल इन देशों का मानना है कि सब्सिडी की वजह से ही भारतीय किसान चावल और गेहूं का भरपूर उत्पादन करने में सक्षम हुए हैं. इसी का परिणाम है कि भारत गेहूं व चावल के निर्यात में अग्रणी देश बन गया है.
भारत में वर्ष 2021-22 में कुल खाद्यान्न 316.06 मिलियन टन पैदा हुआ है. इनमें चावल 127.93 और गेहूं 111.32 मिलियन टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है. नतीजतन चालू वित्त वर्ष 2022-23 तक भारत करीब 45 लाख मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात कर देगा.
जबकि अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2021 से जून 2022 तक 12 महीनों में भारत से गेहूं का निर्यात करीब 10 मिलियन मीट्रिक टन हुआ है.
भारत 150 देशों से चावल करता है निर्यात
बांग्लादेश भारतीय गेहूं सबसे ज्यादा मात्रा में खरीदता है. श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, फिलीपींस और नेपाल के अलावा 68 देश भारत से गेहूं आयात करते हैं. भारत दुनिया के कुल 150 देशों को चावल का निर्यात करता है.
वित्त वर्ष 2021-22 के पहले सात महीनों में भारत से चावल का 33 प्रतिशत निर्यात बढ़ा है. इस दौरान 150 देशों को 11.79 मिलियन टन निर्यात हो चुका है. चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 20 मिलियन टन चावल का निर्यात हो जाने की उम्मीद है.
जिनेवा बैठक में इनके दबाव में था भारत
जिनेवा में भारत पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और आस्ट्रेलिया का दबाव था कि इन देशों के व्यापारिक हितों के लिए भारत अपने गरीबों के हित की बलि चढ़ा दे. विकसित देश चाहते थे कि विकासशील देश समुचित व्यापार अनुबंध की सभी शर्तों को जस का तस मानें.
जबकि इस अनुबंध की खाद्य सुरक्षा संबंधी शर्त भारत के हितों के विपरीत है. दिसंबर 2013 में भी इन्हीं विषयों को लेकर इंडोनेशिया के बाली शहर में डब्ल्यूटीओ की बैठक हुई थी, तब संप्रग सरकार के पूर्व वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.
महंगाई के कारण भी पड़ा है असर
दरअसल सकल फसल उत्पाद मूल्य की 10 फीसदी सब्सिडी का निर्धारण 1986-88 की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर किया गया था. इन बीते साढ़े तीन दशक में महंगाई ने कई गुना छलांग लगाई है. इसलिए इस सीमा का भी पुनर्निर्धारण जरूरी है.
भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता पश्चिमी देशों को फूटी आंख नहीं सुहा रही है. दरअसल डब्ल्यूटीओ का विधान बहुमत को मान्यता नहीं देता, बल्कि इसमें प्रावधान है कि किसी भी एक सदस्य देश की आपत्ति नए बदलाव में बाधा है. भारत के समर्थन में तो अस्सी देश आ खड़े हुए हैं. लिहाजा प्रस्तावों पर मंजूरी की मुहर नहीं लग पाई.


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