सियासी धंधा

यह शायद भारत में ही संभव है कि संवैधानिक सदनों में धनबल के मार्फत आसानी से पहुंचा जा सकता है

Update: 2022-08-02 18:56 GMT

By: divyahimachal 

यह शायद भारत में ही संभव है कि संवैधानिक सदनों में धनबल के मार्फत आसानी से पहुंचा जा सकता है। नतीजतन देश में ऐसे जालसाजों के गिरोह वजूद में आ गए हैं जो राज्यपाल व राज्यसभा सदस्य बनवाने के लिए ग्राहक तलाश रहे थे। इन संवैधानिक पदों की कीमत सौ करोड़ रुपए थी। ठगों की यह कोशिश किसी परिणाम तक पहुंचती, इसके पहले गिरोह केंद्रीय जांच ब्यूरो के फंदे में आ गया। ये ठग खुद को सीबीआई के अधिकारी बताकर बड़े पूंजीपतियों, भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों को झांसे में लेने की तैयारी में थे। ये केंद्रीय मंत्रालयों के अधीन विभागों के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति करा देने का प्रलोभन भी दे रहे थे। हालांकि इनकी कारगुजारी की भनक देश की शीर्ष एजेंसी को लग गई और उन्होंने जाल बिछाकर इस गिरोह के सरगना समेत चार लोगों को हिरासत में ले लिया। एजाज खान नाम का व्यक्ति सीबीआई के अधिकारी पर हमला कर फरार हो गया। अन्य के नाम महाराष्ट्र के प्रेमकुमार बंदगर, कर्नाटक के रविंद्र विठ्ठल नाइक और दिल्ली एनसीआर के महेंद्र पाल अरोरा हैं। इससे पता चलता है कि जालसाजी का दायरा व्यापक होने के साथ लाभदायी रहा होगा। संभव है, इस धंधे में ये लोग पहले से लगे रहे हों और आंशिक रूप से सफल भी हो चुके हों। सांसद और विधायकों का अल्पमत सरकारों को 'नोट फॉर वोट' के जरिए बहुमत में बदलने और सांसदों द्वारा धन लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले देखने में आए हैं। कुछ समय पहले हरियाणा के दो बड़े व्यापारियों को मोटी रकम लेकर आम आदमी पार्टी द्वारा राज्यसभा सदस्य बनवाए जाने का मामला भी सडक़ से लेकर संसद तक था। शराब कारोबारी विजय माल्या को भी रुपए लेकर सांसद बनाने के चर्चे खूब हुए हैं। लेकिन ऐसा कभी देखने-सुनने में नहीं आया कि किसी राज्य का राज्यपाल धन लेकर बना हो। हालांकि अभी तक नौकरी लगवाने यूपीएससी और एमबीबीएस की परीक्षा में पास करवाने और विवादित मामले निपटाने के मामले सामने आते रहे हैं। मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला तो इतना बड़ा था कि पचास से ज्यादा युवक अवसाद के चलते आत्मघात के शिकार हुए। अतएव यह कहना सत्य है कि सरकारी क्षेत्र में पद व नौकरी हासिल करने में धन का खूब बोलबाला है।
इसलिए संवैधानिक पद प्राप्त करने के लिए गलत तरीके अपनाए जाने पर हैरान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस मामले का भंडाफोड़ तब हुआ, जब ठगों के जाल में फंसे एक व्यक्ति को गिरोह के लोगों पर शंका हुई और उसने सीबीआई में शिकायत दर्ज करा दी। संसद के जिस ऊपरी सदन राज्यसभा का अस्तित्व संविधान निर्माताओं ने बनाया था, उसके पीछे यह पवित्र भावना थी कि जो विषय विशेषज्ञ चुनकर संसद में नहीं पहुंच पाते, उन्हें संसद में पहुंचाने के लिए राज्यसभा जैसे सदन को माध्यम बनाया जाए, जिससे नई योजनाओं के स्वरूप विस्तार में भागीदारी के साथ आम आदमी की बुनियादी जरूरतें भी संसद में निरपेक्ष भाव से पहुंच सकें। लेकिन आजादी के बाद कुछ समय तक तो इस परंपरा का निर्वाह हुआ, किंतु फिर उन रास्तों को बंद किए जाने का सिलसिला शुरू हो गया, जो राज्यों की जानी-मानी प्रतिभाओं को संसद के गलियारों तक ले जाती थीं। पिछले तीन दशकों से तो राज्यसभा और विधान परिषदों में शारीरिक और मानसिक रूप से चुक चुके नेताओं और धनबल के जरिए चालाक व्यापारियों को इन सदनों में पहुंचाने का काम सुनियोजित ढंग से हो रहा है। राजनेताओं और कारोबारियों को संवैधानिक गरिमा दिलाने की दृष्टि से वह सब विकल्प खुले हैं, जिन्हें ऊंची पहुंच और धनबल से हासिल किया जा सकता है। यह विडंबना है कि इन पतली गलियों से उम्रदराज और जनता द्वारा नकार दिए जाने वाले नेता भी इस ऊपरी सदन में संवैधानिक उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हो जाते हैं। सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के अनुचित रास्तों पर विराम लगाने का दायित्व संसद को ही निभाना चाहिए।

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