संसद असफल न हो !
लोकतन्त्र में यह कभी संभव नहीं है कि इसकी सर्वोच्च संस्था संसद को ही ‘असंगत’ बना दिया जाये और इसमें बैठने वाले जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को सड़कों पर चीखने-चिल्लाने के लिए छोड़ दिया जाये।
लोकतन्त्र में यह कभी संभव नहीं है कि इसकी सर्वोच्च संस्था संसद को ही 'असंगत' बना दिया जाये और इसमें बैठने वाले जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को सड़कों पर चीखने-चिल्लाने के लिए छोड़ दिया जाये। भारत ने जब संसदीय चुनाव प्रणाली का चुनाव किया था तो इस देश में ब्रिटिश राज था और ब्रिटेन की संसद ही इसका भाग्य लिखा करती थी। परन्तु 1935 में जब अंग्रेजों ने 'भारत सरकार कानून' लागू किया तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में साफ कर दिया गया कि भारत संसदीय प्रणाली को अपनाएगा उस पर ब्रिटिश संसद के उच्च सदन 'हाऊस आफ लार्डस' में लम्बी बहस चली और अंग्रेज विद्वानों ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि भारत ने एक एेसे अंधे कुएं में छलांग लगा दी है जिसके बारे में कुछ अता-पता नहीं है। तब बापू ने कहा था कि भारत के लोगों के सुजान पर उन्हें पूरा भरोसा है और भारत इस दिशा में सफलता प्राप्त करेगा। भारत सरकार कानून के तहत ही तब चुनिन्दा मताधिकार के आधार पर प्रान्तीय एसेम्बलियों के 1936 में चुनाव हुए थे और भारत के राजनीतिक दलों की सरकारें ही गठित हुई थीं। जाहिर है कि तब पूरे देश में कांग्रेस का ही बोलबाला था।