स्थानांतरणों की परेड

वर्दी में रहने व होने के अर्थ को मजबूत करते कई पुलिस अधिकारी या जवान नजीर बना देते हैं

Update: 2021-08-19 19:01 GMT

दिव्याहिमाचल। वर्दी में रहने व होने के अर्थ को मजबूत करते कई पुलिस अधिकारी या जवान नजीर बना देते हैं। हाल फिलहाल ऐसे मामले भी सामने आए जब मुख्यमंत्री का सुरक्षादल ही कुल्लू के थप्पड़ कांड का प्रत्यक्ष गवाह बन गया, लेकिन जिन्हें जनता कबूल करती है वे तमाम कार्रवाइयां पलकों पर सवार हो जाती हैं। हिमाचल में आठ जिलों के एसपी अगर स्थानांतरित होते हैं, तो यह महज कवायद नहीं, बल्कि सरकार की आंखों का नूर बनने की सौगात है। लगभग पूरा हिमाचल इन स्थानांतरणों की परेड में शिरकत करता हुआ यह विश्लेषण जरूर करेगा कि क्या खोजा-क्या पाया। जिला पुलिस प्रमुखों के अलावा 29 पुलिस अधिकारियों का काफिला, कानून-व्यवस्था की पहरेदारी में सत्ता का शगुन या ईमानदारी का वजन बनकर चलेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल हम एक ऐसे पुलिस अधिकारी के नाम का उल्लेख करेंगे जो अब तक बिलासपुर जिला का एसपी था और आगे डरोह पुलिस ट्रेनिंग सेंटर की बागडोर थामेगा।

एसपी दिवाकर शर्मा अपने विदाई नोट में एक ऐसे कांस्टेबल को बर्खास्त करने का सख्त आदेश करते हैं, जो नलबाड़ी मेले में चिट्टा बेचता पकड़ा जाता है। अंततः जांच की कड़ी कलम से दिवाकर शर्मा, अपनी वर्दी का रुतबा कायम करते हैं। इससे पूर्व ऊना के पुलिस कप्तान रहते हुए दिवाकर शर्मा ने सर्वप्रथम अपने मातहत वर्दी के अनुशासन में पुलिस जवानों के नैतिक आचरण को ऊंचा किया, रात के अंधेरे में चौकसी की दीवारों के भीतर पलती अनुशासनहीनता को दरकिनार किया। ऐसे अधिकारी पुलिस बल के लिए मानक और मानदंड स्थापित करते हुए नजीर पेश करते हैं। दुर्भाग्यवश अब ऐसे उदाहरण विरले ही देखने को मिलते हैं। उदाहरण की परंपराओं से प्रशासन, पुलिस या अफसरशाही कतराने लगी है। ऐसे पद ज्यादातर राजनीतिक सामंजस्य में जीना चाहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि स्थानांतरण अब संदेश है, किसी तरह की आचार संहिता नहीं। इसलिए सरकारी तामझाम में नगीना बनने का हुनर सत्ता का करीबी होता जा रहा है। अब तो जनता भी अनुमान लगा लेती है कि किस राजनीतिक दल की सत्ता, किन अधिकारियों को आगे करेगी। आश्चर्य यह कि सरकारों का प्रशासनिक हिसाब, राजनीतिक दबाव में बह जाता है।
सचिवालय की फाइलों का रिसाव देखा नहीं जाता। कमोबेश हर सरकार अपने कामकाज को सियासी उधेड़बुन में इतना पेचीदा बना देती है कि दफ्तरों पर टंगे बोर्ड सिर्फ अधिकारियों का नाम बदलते रहते हैं। पुलिस महकमे में अदला-बदली का वर्तमान दौर, सरकार की परिपक्वता को कितना पुख्ता करता है, यह अगले साल के चुनावी परिदृश्य तक का कयास है। आश्चर्य यह कि स्थानांतरणों के सिलसिले के बीच प्रशासनिक सुधारों की बात नहीं हो पाती और शेखचिल्ली बने जनप्रतिनिधि इस मिजाज में अपना रुतबा मांजते हैं। हुक्मरानों को निजी हुक्म की तामील के लिए मोहरे चाहिएं। कुछ मिल जाते हैं, कुछ की तलाश जारी रहती है। पुलिस विभाग के लिए सबसे बड़ा चार्टर तो वीआईपी ड्यूटी है। कानून-व्यवस्था के लिए जो हाथ चाहिएं, अगर वे सेल्यूट में मशगूल रहें, तो आम नागरिक के लिए तो औचित्यहीन होती व्यवस्था ही रह जाएगी। पुलिस में दिवाकर शर्मा जैसे उदाहरण घट रहे हैं, लेकिन जो हैं काबिलेतारीफ हैं। हिमाचल पुलिस में सुधारों की गुंजाइश के बजाय टोपियां बदली जा रही हैं। क्या किसी शहर की सड़कों पर अवैध पार्किंग या अतिक्रमण के खिलाफ इस बल को सशक्त किया जाएगा। क्या अवैध खनन, नशा माफिया या प्रदेश में सत्ता के दम पर पनपते माफिया पर पुलिस बिना दखल सख्ती से हाथ डाल पाएगी। बेशक वीआईपी माहौल में पुलिस दिखाई देती है, लेकिन आम जनता से जुड़े विषयों में यह विभाग अपनी कार्यप्रणाली नहीं सुधार पा रहा है, भले ही ट्रांसफरों में बार-बार अधिकारी फेंट दिए जाएं।


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