संसद सत्र का लाइव टेलिकास्ट देखते हुए अचानक सवाल ने पूछा, ''पापड़ी चाट बड़ी या अधिनियम?'' जवाब उसे घूरते हुए बोला, ''मर्यादा में रहो। तुम इस तरह लोकतंत्र के मंदिर का अपमान नहीं कर सकते। क्या तुम्हें पता नहीं प्रधान सेवक ने पहली बार इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले संसद की चौखट पर माथा टेका था। कम से कम उनका ़खयाल तो करो।'' यह सुनते ही सवाल भड़क उठा, ''मैं जब भी तुमसे प्रश्न पूछता हूं, तुम उत्तर देने की बजाय मुझे उलझाना शुरू कर देते हो। लगता है 'सवाल चने, जवाब गंदम' कहावत को बदलने का समय आ गया है। अब कहना चाहिए, 'सवाल चने, जवाब चूना'। वैसे आज जो सत्ताधीश संसदीय गरिमा की बात कर रहे हैं, विपक्ष में रहते हुए वे इसी तरह संसद और संसद के बाहर पापड़ी चाट बेचते थे।'' जवाब हंसते हुए बोला, ''काहे प्रश्नों में उलझ रहे हो? वास्तव में संसद और विधानसभाएं ही लोकतंत्र के मंदिर हैं। बेचारा लोक तो इन मंदिरों के बाहर बैठा हुआ भिखारी है।
माननीयों को जब पापड़ी चाट बेचने से फुर्सत मिलती है तो इन ़गरीबों की बात भी कर लेते हैं। नहीं तो जो सत्ता में होता है, वह लोक को बताता है कि देखो, इधर हम तुम्हारी चिंता में टुनटुन की तरह दुबले हुए जा रहे हैं और विपक्ष हमारी चिंता को बाधित कर एक मिनट की संसदीय कार्यवाही पर ़खर्च होने वाले लाखों रुपए बरबाद कर रहा है। इतने पैसे में तो प्रधान सेवक कितने मोरों को दाना खिला सकते थे। लेकिन चिंता मत करो। मैं प्रधान सेवक की तरह भागूंगा नहीं या सवाल पूछने पर तुम्हें सत्ताई िफश कढ़ी नहीं खिलाऊंगा। लोकतंत्रीय मंदिर का क्या? ठेला फासीवाद का लगे या पापड़ी चाट का, लोक तो भिखारी ही रहेगा। हो सकता है किसी दिन प्रधान सेवक देश के सभी गंदे नालों को आपस में जोड़ने के लिए 'मन की बात' में किसी राष्ट्रव्यापी स्मार्ट योजना की घोषणा कर दें। नालों को आपस में जोड़ने के बाद योजना के तहत सभी घरों में 'घर-घर नाली, घर-घर गैस' सुनिश्चित की जाएगी। इसके बाद हम विश्वगुरू होने की रणभेरी बजाते हुए देश से गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार को समूल उखाड़ने की सगर्व उद्घोषणा के बाद घर-घर पकौड़े तलने-बेचने का उपक्रम शुरू करेंगे। सरकार लोगों को 'पकौड़ा बिक्री केंद्र' के विज्ञापन वाले बोर्ड, लेक्स और होर्डिंग मु़फ्त उपलब्ध करवाएगी। जिस पर कोरोना वैक्सीन सर्टिफिकेट की तरह प्रधान सेवक के 'बढ़ती का नाम दाढ़ी' वाले आदम़कद फोटो चिपके होंगे।
भविष्य में जब पकौड़ा बेचने का व्यवसाय ़खानदानी हो जाएगा तो यह दिन पर दिन परिष्कृत होता जाएगा। लोग इसे समृद्ध बनाने के लिए नए-नए आविष्कार करते रहेंगे। इस तरह लोगों में नई वैज्ञानिक चेतना का उदय होगा। हो सकता है किसी दिन गोमूत्र और गोबर की गुणवत्ता के मद्देनज़र कोई पकौड़ा वैज्ञानिक बाज़ार में ऐसा गोबर पकौड़ा उतार दे, जो गोमूत्र में तला गया हो। लोकतंत्र के इस दौर में जब पापड़ी चाट का कद खली की तरह ऊंचा हो गया है, तो अधिनियम किसी भी गली, चौबारे या चौराहे पर पलक झपकते ही पास किए जा सकते हैं। जब मंत्री ़िफश कढ़ी की बातें कर रहे हों तो ज़ाहिर है, मछलियां भी यहीं बिकती होंगी। अब टीवी स्क्रीन पर संसद मछली बाज़ार से कम नहीं लगती। लेकिन बोलने पर हो सकता है तुम गद्दार कहलाओ। यह बात दीगर है कि गद्दारों को गोली मारने की बात करने वाले कहीं भी ठुमके लगाते हुए मंत्री बन सकते हैं। हो सकता है किसी दिन सरकार संसद की पवित्रता ़कायम रखने का हवाला देते हुए संसदीय सत्र का लाइव बंद करवा दे। मुझे लगता है अब तुम खुद ही अंदाज़ा लगा लोगे कि पापड़ी चाट बड़ी या अधिनियम।''
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं