सोर्स- अमृत विचार
मंगलवार को देश के छह राज्यों में एक बार फिर से इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के विभिन्न ठिकानों पर कार्रवाई की गई। इस दौरान 170 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। इससे पहले 22 सितंबर को केंद्र सरकार ने पीएफआई के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी कार्रवाई शुरू की, जिसे 'ऑपरेशन ऑक्टोपस' नाम दिया गया। एनआईए की अगुवाई वाली कई एजेंसियों की टीमों ने गुरुवार को 93 स्थानों पर छापे के बाद पीएफआई के 106 से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया था। पीएफआई का दावा है कि वह मुस्लिम कल्याण के साथ-साथ मानवाधिकारों के लिए भी काम करता है।
दूसरी तरफ एजेंसियों का कहना है कि यह सिर्फ दिखावा है। 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के मामले में पीएफआई का नाम आया था। सीएए के खिलाफ हुए आंदोलनों में भी पीएफआई का हाथ होने की बात उत्तर प्रदेश पुलिस ने कही थी। भाजपा नेता नूपुर शर्मा के बयान के बाद कानपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में भी पीएफआई का नाम सामने आया था। 2006 में गठित पीएफआई, भारत के हाशिए के वर्गों के सशक्तिकरण के लिए एक नव-सामाजिक आंदोलन के लिए प्रयास करने का दावा करता है और अक्सर कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है।
पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों में यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव के वक्त एक दूसरे पर मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन पाने के लिए पीएफआई की मदद लेने का भी आरोप लगाती हैं। बिहार में एनआईए ने जब इस संगठन पर कार्रवाई की थी, तो कई खुलासे हुए थे। फुलवारी शरीफ में स्थित पीएफआई कार्यालय में आतंकी ट्रेनिंग कैंप चलने का पता लगा था।
भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने जैसी साजिश सामने आई थी। साक्ष्य मिलने के बाद एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ जांच का दायरा बढ़ा दिया था। इस कार्रवाई पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल नजर रख रहे हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं। साथ ही संगठन पर लगातार प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है। ऐसे संगठनों पर तुरंत पाबंदी लगाई जानी चाहिए।a