आश्चर्य यह कि एक मार्च के दिन जब उनकी जयंती को यादगार बनाते हुए कांगड़ा की सियासत में पिछड़ा वर्ग अपनी नब्ज तथा हैसियत को अंगीकार कर सकता है, चौधरी हरिराम की विरासत को जिंदा रखने की कोई कोशिश नहीं होती। यह दीगर है कि पंजाब सरकार ने अपने स्वर्ण जयंती समारोह में इस शख्सियत को सम्मानित किया, क्योंकि वह संयुक्त पंजाब में भी कांगड़ा की नुमाइंदगी करते हुए मंत्री रहे थे, लेकिन हिमाचल की यादें उनके नाम आज भी नहीं लिखी जा रही हैं। ऐसे नेता की उपेक्षा में एक बहुत बड़े राजनीतिक अध्याय और अन्य पिछड़ा वर्ग के समीकरणों की उपेक्षा भी हो रही है। आखिर कांगड़ा की चौधरी बिरादरी के संकल्प क्यों एक सर्वमान्य छत और बड़े नेताओं के आशीर्वाद और विरासत के नीचे समाहित नहीं हो रहे। कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना और सोलन-सिरमौर तक ओबीसी के राजनीतिक सामर्थ्य में घिरथ, बाहती व चांहग को एक खास वरदहस्त हासिल है, लेकिन इसका गुणात्मक योगदान प्रदेश की सियासत में नहीं चमका। हर पार्टी में कुछ चेहरे जरूर चुने जाते हैं, लेकिन ओबीसी पहचान में राज्य की राजनीतिक ताकत सामने नहीं आई। कांगड़ा व हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण व राजपूत विरोधाभास के बीच ओबीसी समाज ने अपनी मिट्टी बटोरने के बजाय दूसरी जातियों के समीकरणों को ही धराशायी किया है। नतीजतन कांगड़ा की लीडरशिप हमेशा लंगड़ी या कमजोर दिखाई दी। ब्राह्मण बनाम ओबीसी के सामाजिक व राजनीतिक दुष्परिणाम सामने आए हैं, लेकिन इसका लाभ अन्य जातियों और वर्गों को मिला यानी कांगड़ा में राजपूत और गद्दी नेता हावी हो गए।
आज के संदर्भ में भी ओबीसी सामर्थ्य से राजनीति का सकारात्मक रुख सामने आने के बजाय इसके नकारात्मक पहलुओं ने गद्दी व राजपूत नेताओं को काफी आगे पहुंचा दिया है। पंचायती चुनावों में यह पाया गया कि ओबीसी बहुल इलाकों में भी गद्दी उम्मीदवारों को सफलता मिली है। इतना ही नहीं, धर्मशाला व पालमपुर नगर निगमों में तीन वार्ड जनजातीय तौर पर आरक्षित हुए, लेकिन ओबीसी वर्ग के नाम पर कोई स्थान आरक्षित नहीं हुआ। ऐसे में सामाजिक तौर पर राजनीतिक उत्थान के मायने चौधरी हरिराम, चौधरी हरिदयाल व सरवण कुमार की विरासत से ही मिलेंगे। कद्दावर नेताओं को भूल कर कोई भी समाज अपने प्रतीक खड़े नहीं कर सकता। दूसरी ओर चौधरी हरिराम जैसी शख्सियत का देश की आजादी के इतिहास से रहा नाता, कांग्रेस की परंपराओं को पल्लवित करता है, तो इनकी जयंती को विस्मृत करना घोर अपराध होगा। यह समाज की समरसता, राष्ट्रीय मूल्यों और आपसी सद्भावना की अनिवार्यता है कि हिमाचल चौधरी हरिराम की जयंती को राज्य के फलक पर सम्मानजनक तरीके से मनाए।