विपक्षी एकता की बाधाएं, सिर्फ मोदी हटाओ के नारे से नहीं बनने वाली है बात
इस पर हैरत नहीं कि भाजपा विरोधी दलों को नए सिरे से एकजुट करने की कोशिश तेज हो गई है
सोर्स- Jagran
इस पर हैरत नहीं कि भाजपा विरोधी दलों को नए सिरे से एकजुट करने की कोशिश तेज हो गई है। इन दिनों इसकी कमान नीतीश कुमार अपने हाथ में लेते दिख रहे हैं। उनका दावा है कि यदि सभी विपक्षी दल एक हो जाएं तो आगामी आम चुनाव में भाजपा 50 सीटों पर सिमट सकती है, लेकिन फिलहाल तो ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा। नीतीश कुमार का इससे नाराज होना स्वाभाविक है कि मणिपुर के उनके छह विधायकों में से पांच भाजपा में चले गए, लेकिन आखिर यह भी तो एक तथ्य है कि चंद दिनों पहले वह खुद भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ चले गए थे।
नीतीश कुमार ने जबसे महागठबंधन से हाथ मिलाया है, तबसे उनके सहयोगी और समर्थक उन्हें प्रधानमंत्री पद का उपयुक्त प्रत्याशी बताने में लगे हुए हैं। इसमें हर्ज नहीं, लेकिन मुश्किल यह है कि अन्य विपक्षी दल पीएम प्रत्याशी के रूप में उनका नाम आगे बढ़ाने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं।
पिछले दिनों उनसे मुलाकात करने पटना गए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने भी पीएम प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम आगे करने में हिचक दिखाई। आश्चर्य नहीं कि इसके पीछे उनकी यह आकांक्षा हो कि वह स्वयं पीएम पद के दावेदार बनें। वह एक अर्से से विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कुछ समय पहले तक ऐसी ही कोशिश ममता बनर्जी कर रही थीं। इसके पहले ऐसी ही कोशिश शरद पवार और कुछ अन्य नेता भी कर चुके हैं।
कुछ विपक्षी नेता कांग्रेस को साथ लेकर एकजुट होना चाहते हैं तो कुछ उसके बगैर। कांग्रेस को साथ लिए बगैर विपक्षी दलों का कोई मोर्चा तो बन सकता है, लेकिन वह बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं बन सकता। इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस विपक्ष दलों को एकजुट करने की मुहिम में तभी शामिल हो सकती है, जब शेष दल राहुल गांधी को पीएम पद के प्रत्याशी के तौर पर स्वीकार करें। इसके आसार कम ही दिखते हैं।
चूंकि 2024 के आम चुनाव में अभी देर है, इसलिए यह कहना कठिन है कि विपक्षी एकता की क्या सूरत बनेगी, लेकिन अभी तक का अनुभव यही बताता है कि विपक्ष एकजुट होने की चाहे जितनी कोशिश करे, वह नाकाम ही अधिक रहता है। विपक्षी एका के लिए आवश्यक केवल यह नहीं है कि भाजपा विरोधी दल पीएम पद के दावेदार को लेकर एकमत हों, बल्कि यह भी है कि वे कोई ऐसा न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करें, जो देश की जनता को आकर्षित कर सके। अभी तक ऐसा कोई कार्यक्रम अथवा विमर्श दूर-दूर तक नजर नहीं आता। यदि कुछ नजर आता है तो केवल मोदी हटाओ का नारा। इससे बात बनने वाली नहीं।