पूर्वोत्तर उदय के बाद दक्षिण विजय?
केरल की निवासी ‘उड़नपरी’ पीटी उषा, तमिलनाडु के रहवासी ख्यात संगीतकार इलैयाराजा, कर्नाटक की आध्यात्मिक शख्सियत वीरेंद्र हेगड़े, आंध्र प्रदेश के मशहूर पटकथा लेखक-निर्देशक वी
by Lagatar News
Dr. Santosh Manav
केरल की निवासी 'उड़नपरी' पीटी उषा, तमिलनाडु के रहवासी ख्यात संगीतकार इलैयाराजा, कर्नाटक की आध्यात्मिक शख्सियत वीरेंद्र हेगड़े, आंध्र प्रदेश के मशहूर पटकथा लेखक-निर्देशक वी. विजयेंद्र प्रसाद पिछले सप्ताह राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए, तो कोई विवाद नहीं हुआ. होना भी नहीं था. चारों बड़े कद के लोग हैं. ये राज्यसभा में रहेंगे, तो राज्यसभा की गरिमा बढ़ेगी. लेकिन सवाल तो उठना ही था. उठा भी. कुछ ने पूछा कि सब दक्षिण से क्यों? पूर्व, पश्चिम, उत्तर से एक भी नहीं! जवाब आसान नहीं है. समझना पड़ेगा. दरअसल, राजनीति में कुछ भी अकारण नहीं होता. हर कदम के पीछे कुछ सोचा-समझा होता है. जटिल गणित होता है. इन चारों शख्सियतों पर सवाल न खड़ा करते हुए, हम समझेंगे कि मामला क्या है? पीछे चलते हैं-
1984 – देश की लोकप्रिय नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. सहानुभूति लहर पर सवार कांग्रेस को बंपर जीत मिली. 'टुअरा' राजीव गांधी को ऐतिहासिक विजय मिली.'कांग्रेस का कचरा' भी चुनाव की वैतरणी पार हो गया. अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव हार गए. भारतीय जनसंघ का नया अवतार भारतीय जनता पार्टी दो सीटें जीत पाई. वह भी किसी हिंदी प्रदेश में नहीं. एक गुजरात और दूसरा आंध्र प्रदेश में. आंध्र के हनामकोंडा से चंदूपाटिया जंगा रेड्डी और गुजरात के मेहसाणा से ए.के.पटेल. तब भाजपाइयों के लटके और मुरझाए चेहरों पर लोग हंसते थे. यह कल्पनातीत था कि महज 12 साल बाद यह पार्टी केंद्र की सत्ता में आ जाएगी. पर वह आ गई. पार्टी के पहले अध्यक्ष, 6 अप्रैल 1980 को बनी पार्टी के पहले अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी 16 जून 1996 में प्रधानमंत्री बने. पहले तेरह दिन. फिर सवा साल का प्रधानमंत्री. उन्होंने तीन बार शपथ ली. मार्च 99 में शपथ ली, तो पूरे पांच साल प्रधानमंत्री रहे. अब उसी पार्टी के दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी लगातार दूसरी बार पीएम हैं और प्रशांत किशोर जैसे चुनाव विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आगामी तीस-चालीस साल तक बीजेपी का भविष्य उज्जवल है. क्यों है ऐसा? वह है संगठन के स्तर पर लगातार मेहनत और इनोवेशन यानी नए मुद्दों की खोज. नए रास्तों की तलाश. राज्य के अनुकूल मुद्दे तलाशना. हर बार, हर दम नई जमीन फोड़ना.