गैर-जरूरी गिरफ्तारी

देश की सर्वोच्च अदालत ने एक और प्रशंसनीय व्यवस्था देते हुए पुलिस को कहा है कि लोगों को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार न करें, क्योंकि आप कर सकते हैं

Update: 2021-08-20 18:42 GMT

देश की सर्वोच्च अदालत ने एक और प्रशंसनीय व्यवस्था देते हुए पुलिस को कहा है कि लोगों को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार न करें, क्योंकि आप कर सकते हैं, या सिर्फ इसलिए गिरफ्तार न करें, क्योंकि आपको आरोप पत्र दाखिल करना है। यह स्वाभाविक बात है कि गिरफ्तारी से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को अपूरणीय क्षति पहुंच सकती है। पुलिस के पास गिरफ्तारी का अधिकार है,पर जरूरी नहीं कि हर बार गिरफ्तारी अनिवार्य हो। यह छिपी हुई बात नहीं है कि पुलिस द्वारा की गई बहुत सारी गिरफ्तारियां गैर-जरूरी होती हैं, लेकिन किसी आम सभ्य आदमी के लिए गिरफ्तारी जीवन भर का सदमा होती है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने आपराधिक मामलों में लोगों को गिरफ्तार करने की प्रथा को खारिज करते हुए जोर दिया है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमारे सांविधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है। वाकई, पुलिस को केवल उन्हीं मामलों में गिरफ्तारी करनी चाहिए, जो जघन्य अपराध से जुड़े हों, जिनमें आरोपी के फरार होने, साक्ष्य नष्ट किए जाने या गवाहों को प्रभावित करने की आशंका हो।

अदालत ने यथोचित कहा है कि गिरफ्तारी की शक्ति के अस्तित्व और इस शक्ति के इस्तेमाल के औचित्य के बीच अंतर किया जाना चाहिए। प्रस्तुत मामला एक आरोपी द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने से जुड़ा है। 2014 में उत्तर प्रदेश में दर्ज धोखाधड़ी और जालसाजी के एक मामले में 83 अन्य लोगों के साथ यह आरोपी भी नामजद है। पुलिस ने उसे सात वर्ष तक गिरफ्तार नहीं किया, पर जब आरोप पत्र दाखिल करने की बारी आई, तो पुलिस गिरफ्तार करने चल पड़ी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस आरोपी को गिरफ्तारी से राहत देने से इनकार कर दिया, तब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि महज आरोपपत्र दाखिल होने के लिए आरोपी को गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं है। अब न केवल आरोपी बेवजह गिरफ्तारी से बच सकेंगे, बल्कि पुलिस और जेलों का बोझ भी घटेगा। गिरफ्तारी बहुत गंभीर मामला है। इसी साल मार्च में एक अन्य मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज होते ही मनमानी गिरफ्तारी व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन है। ऐसी गिरफ्तारी भ्रष्टाचार का भी स्रोत होती है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार में कटौती की मनमानी छूट नहीं दी जा सकती। जहां अपराधी को पूछताछ के लिए अभिरक्षा में लेना जरूरी हो, गिरफ्तारी उसी में होनी चाहिए। मतलब गिरफ्तारी अंतिम विकल्प है। पर हमारी पुलिस को ज्यादातर इस अंतिम विकल्प को पहला विकल्प मानते देखा जाता है। पुलिस और गिरफ्तारी का आतंक ऐसा है कि लोग गिरफ्तारी से बचने के लिए न जाने कैसे-कैसे अपराध को अंजाम देते हैं। अदालतों ने यह भी देखा है कि दहेज उत्पीड़न के 60 फीसदी मामले अनावश्यक व अनुचित होते हैं। अनावश्यक गिरफ्तारी के कारण जेल की 43.2 फीसदी सुविधाएं बेकार चली जाती हैं। अत: पुलिस को विशेष स्थिति में जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी करनी चाहिए। आज के समय में पुलिस के अधिकारों को स्पष्ट करना भी बहुत जरूरी है। निचली अदालतों को इस मामले में ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए, पर उससे भी ज्यादा जरूरी है कि गैर-जरूरी गिरफ्तारी की गुंजाइश को कानूनी रूप से खत्म किया जाए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान  

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