बढ़ती कीमतों के मायने

लोगों का ध्यान वे चीजें खींच रही हैं, जिनकी कीमतों में आए दिन इजाफा हो रहा है

Update: 2021-10-21 09:09 GMT

लोगों का ध्यान वे चीजें खींच रही हैं, जिनकी कीमतों में आए दिन इजाफा हो रहा है। इन दिनों विशेष रूप से टमाटर पर ज्यादा फोकस है, क्योंकि उसकी कीमत कुछ जगहों पर 100 रुपये के करीब पहुंच गई है। त्योहार के मौसम में फल थोड़े सस्ते हैं, जबकि सब्जियों के दाम आसमान चढ़ रहे हैं। आम तौर पर इस मौसम में एक लोकप्रिय सब्जी फूलगोभी के भाव घट जाते थे, लेकिन अभी भी 80 रुपये के आसपास हैं और कई जगह 100 रुपये किलो भी। गरीब की थाली में सब्जियों की मात्रा घट गई है। प्याज के भाव भी चढ़े हुए हैं। कुल मिलाकर, सब्जी बाजार में तनाव है और विक्रेता भी दबाव महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अंतत: उन्हें भी अपने उपभोग के लिए सब्जियों की खरीदारी करनी पड़ती है। नवरात्र के दौरान ही टमाटर महंगा होने लगा था, लेकिन नवरात्र के खत्म होने के बाद भी निरंतर महंगा हो रहा है। जब कई जगह थोक बाजार में ही टमाटर 60-70 रुपये किलो बिक रहा हो, तब खुदरा बाजार में क्या स्थिति होगी, अनुमान लगाया जा सकता है।

सब्जियों पर एक तो मौसम की मार है। देश के अनेक इलाकों में बाद तक बारिश होती रही है, इससे भी फसल पर असर पड़ा है। सब्जी बोने वाले किसान बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे। अनुमान है कि दो महीने के अंदर ही टमाटर और सब्जियों के भाव में गिरावट आएगी। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों से भी फसल आने वाली है। भारत में टमाटर की खपत भी ज्यादा है और उत्पादन भी। नेशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के मुताबिक, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक भारत ही है। भारत 7.89 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 25.05 टन प्रति हेक्टेयर की औसत उपज के साथ लगभग 19.75 मिलियन टन टमाटर का उत्पादन करता है। हमें गौर करना चाहिए कि क्या टमाटर का उपयोग प्रसंस्करण के लिए बढ़ा है? क्या हमारे पास घरेलू खपत के अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को आपूर्ति के लिए पर्याप्त उत्पादन है? क्या हमने सब्जियों का उत्पादन बढ़ती मांग और समय के अनुरूप बढ़ाने के पर्याप्त उपाय किए हैं? क्या किसानों का सब्जियों के उत्पादन के प्रति लगाव बढ़ा है? यह विषय बहुत गंभीर है, क्योंकि इस क्षेत्र पर अगर हम गौर नहीं करेंगे, तो सब्जियों कीमतों को काबू में रखने में कामयाब नहीं होंगे।
ऐसा लगता है कि महंगाई के प्रति हमारी राजनीतिक पार्टियों में उदासीनता आ गई है। तभी तो पेट्रोल 100 रुपये के पार भी बढ़ता चला जा रहा है। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमत के साथ-साथ परिवहन भी महंगा हो रहा है, जिसका असर लगभग सभी उत्पादों की कीमत पर पड़ रहा है। सब्जियों के साथ-साथ रसोई गैस के बढ़ते दाम ने भी तनाव बढ़ाने का क्रम जारी रखा है। पेट्रोल-डीजल से आखिर हमारी सरकारों को कितना धन अर्जित करना है? इस महंगाई की कोई तो सीमा तय हो। बेशक, देश को धन की जरूरत है, लेकिन सारा बोझ पेट्रोल व डीजल पर ही क्यों पड़ना चाहिए? हमें टमाटर और सब्जियों की बढ़ती कीमतों के पीछे के इस सच को भी जानना चाहिए कि वास्तव में सब्जियां उगाने वाले किसानों की जेब तक कितना धन पहुंच रहा होगा? क्या सब्जियां उगाने वाले किसान खुश हैं? आज हमें स्वीकार करना चाहिए, तार्किक या वाजिब महंगाई कम चुभती है।

क्रेडिट बाय हिंदुस्तान 

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