By: divyahimachal
उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विधानसभा में हुंकार हमें आज भी याद है, जब उन्होंने कहा था कि माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। जान के लाले पड़ जाएंगे। माफिया या तो जेल में होगा अथवा उप्र से भाग जाएगा। आज अतीक अहमद की नियति यही लग रही है। अतीक लोकसभा सांसद और कई बार विधायक चुने गए। ऐसे शख्स को माफिया करार देना अजीब लगता है, लेकिन उसका असली चरित्र माफिया का ही रहा है। उसकी कड़ी में मुख्तार अंसारी भी हैं। कुछ और भी होंगे, लेकिन जिस तरह उप्र की स्पेशल टास्क फोर्स ने मुठभेड़ में अतीक के बेटे असद और उसके शूटर गुलाम को ढेर किया है, अतीक जेल की सलाखों के पीछे रह-रह कर रो रहा है, कुनबे की बर्बादी के लिए खुद को कसूरवार मान रहा है, उससे साफ है कि उप्र में ‘बाबा की सरकार’ माफिया को मिट्टी में मिला कर ही दम लेगी! असद-गुलाम पर 5-5 लाख रुपए के इनाम घोषित थे। प्रयागराज में उमेश पाल की दिनदहाड़े, सरेआम हत्या के संदर्भ में वे वांछित थे। उमेश बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के इकलौते चश्मदीद गवाह थे। अब असद की मां शाइस्ता परवीन पर भी शक की सुई केंद्रित है। अभी तक वह ृफरार रही है। यदि असद के जनाजे में वह आई, तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है। अतीक और उसके छोटे भाई अशरफ पर साजिश रचने के आरोप हैं। अतीक के दोनों बड़े बेटे लखनऊ जेल में बंद हैं। असद सुपुर्द-ए-खाक किया जा चुका है। छोटे दोनों बेटे सुधार-गृह में बंद हैं। कुछ गुर्गे आज भी फरार हैं। अतीक और उसके करीबियों के महलनुमा मकानों पर बुलडोजर चलाकर, उन्हें जमींदोज किया जा चुका है। अतीक के अपराध, खौफ, यातनाओं के ठिकाने सार्वजनिक हो चुके हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 200 से अधिक बैंक खातों, 100 से ज्यादा बेनामी और अवैध संपत्तियों और 75 लाख रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद की है। माफिया का संपूर्ण चक्रव्यूह चिंदी-चिंदी बिखर रहा है।
ये तथ्य भी सामने आए हैं कि अतीक के तार पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े थे। उसके लश्कर-ए-तैयबा सरीखे आतंकी संगठन से भी नापाक जुड़ाव थे। अतीक ने पाकिस्तान और हमारे पंजाब के रास्ते विदेशी हथियार और फंडिंग आदि प्राप्त किए थे। क्या यह माफिया भारत-विरोधी भी रहा है? असद और गुलाम करीब 49 दिनों तक पुलिस और खुफिया टीम की आंखों में धूल झोंकते रहे, लेकिन नियति मुठभेड़ की तय थी। अतीक ने मात्र 17 साल की उम्र में ही अपराध को कबूल कर लिया था। जब उसे माफिया माना गया, तो सरकार के बड़े अधिकारी, पुलिसवाले और यहां तक कि नेता भी खौफ खाते थे। उसके आतंक से आतंकित थे। माफिया को ‘शेर’ मानने की भी गलतफहमियां जारी रहीं, लेकिन आज उसका साम्राज्य वाकई ‘मिट्टी’ हो चुका है। अब इस माफिया के मिट्टीकरण पर सियासत भी शुरू हो गई है। अतीक मुलायम सिंह यादव और मायावती के करीब और संरक्षण में रहा है, लिहाजा सपा-बसपा के नेताओं ने मुठभेड़ और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। चूंकि ओवैसी ‘मुस्लिमवादी’ सियासत करते हैं, लिहाजा वह चिंघाड़ रहे हैं कि पुलिस ही मुठभेड़ में मारती रहेगी, तो अदालतें और जज क्या करेंगे? अदालतों पर ताले लटका देने चाहिए। किसी भी अपराध की सजा सरकार और पुलिस नहीं, न्यायपालिका तय करती है। उप्र में बीते छह साल से भाजपा की योगी सरकार है, लिहाजा आंकड़े गिनाए जा रहे हैं कि इस दौरान कितनी मुठभेड़ें की गईं और उन्हें कोई भी इंसाफ नहीं मिला। हम भी इसी सोच के पक्षधर हैं कि अंतिम न्यायवादी निर्णय अदालत का ही होना चाहिए, लेकिन अतीक जैसे माफिया को अदालतें सजा ही नहीं सुना पा रही हैं, तो सरकार और पुलिस क्या करे? क्या माफियागीरी को जिंदा रहने दें, फलने-फूलने दें? इस पहलू पर भी विचार किया जाना चाहिए।