रामायण के वानरों से सीखें अपने भीतर की पॉजिटिविटी को कैसे बनाए रखें

भीड़ को साथ लेकर चलने वाला ईश्वर भी मिलता एकांत में ही है

Update: 2022-01-04 17:17 GMT

पं. विजयशंकर मेहता। भीड़ को साथ लेकर चलने वाला ईश्वर भी मिलता एकांत में ही है, लेकिन चूंकि हम सब उसके बच्चे हैं, इसलिए बड़ी संख्या में हमें साथ भी रख लेता है। वह तो बस यह देखता है कि इनके भीतर कितनी ललक है मेरे साथ रहने की। श्रीराम ने जब वानरों को आज्ञा दी कि अब सब अपने घर जाओ तो वे उनसे कुछ कह नहीं पा रहे थे। बस, प्रेमवश जलभरे नेत्रों से टकटकी लगाए उन्हें देख रहे थे।

कहा भी जाता है कि प्रेम में जुबां काम करे न करे, आंखें जरूर बोल जाती हैं। वानर जो कहना चाह रहे थे, राम तुरंत समझ गए। यहां तुलसीदासजी ने लिखा- 'अतिसय प्रीति देखि रघुराई। लीन्हे सकल बिमान चढ़ाई।' राम ने उनका अत्यधिक प्रेम देखकर सबको अपने साथ विमान पर चढ़ा लिया और चल दिए अयोध्या की ओर। यहां पूरा वातावरण सकारात्मक हो गया था। परमात्मा हमारे भीतर की पॉजिटिविटी को लगातार वॉच करता है।
जो सकारात्मकता वानरों में थी, वैसी हमारे भीतर भी उतर सकती है। इसके लिए बस पांच काम करते रहिए। आशावादी रहें, दृढ़ निश्चय करें, कृतघ्र हों, स्वभाव में लचीलापन रखें और डूबकर काम करें। विपरीत समय में अवसर ढूंढ लेना और मन पसंद काम करते रहना वानरों की खूबी थी तो राम ने अपने साथ विमान में बैठा लिया। इससे बड़ा मान और क्या हो सकता था। इन वानरों से हम भी सीखें अपने भीतर की पॉजिटिविटी को कैसे बनाए रखें।


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