सोहबत की लक्ष्मणरेखा

बोलती कांग्रेस के बीच बहुत दिनों बाद कांग्रेस प्रचार-प्रकाशन समिति के अध्यक्ष एवं पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सुधीर शर्मा को भी बोलना पड़ा

Update: 2022-07-08 19:16 GMT

सोर्स- divyahimachal  

बोलती कांग्रेस के बीच बहुत दिनों बाद कांग्रेस प्रचार-प्रकाशन समिति के अध्यक्ष एवं पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सुधीर शर्मा को भी बोलना पड़ा, तो यह चुनाव की मर्यादा में ढलने का नया दस्तूर भी है। फंूक-फूंक कर कदम रख रही पार्टी के वजूद पर नेताओं का वर्चस्व हमेशा हावी रहा है। इसके लिए परिवारवाद, जातिवाद और दिल्ली दरबार काफी हद तक एक परंपरा में बंधा रहा, लेकिन अब कस्में और वादे बदल रहे हैं। प्रदेश की नई कार्यकारिणी अपने आप में संयम, संयोग और संतुलन पैदा करने एक सफल कसरत रही है। इसके सदके पार्टी का विरोध सड़कों पर आया है तथा नेताओं को एकसाथ मंच पर आने की सोहबत सिखाई जा रही है। इस बार प्रदेश की जनता एक अलग मुआयने के तहत कांग्रेस को परख रही है और इसलिए पार्टी की संभावनाओं को हर नेता की जुबान और कार्यक्रमों की मचान पर देखा जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू व पार्टी अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के अनेकों बयानों के बाद पहली बार सुधीर शर्मा बोले हैं, तो यह शब्द चुने हुए और भुने हुए भी हैं। सुधीर शर्मा ने नेताओं द्वारा अलग-अलग खिचड़ी पकाने तथा चुनावी अभियान में खुद को प्रोमोट करने की सामग्री चिपकाने पर सीधी रोक का आहवान किया है। यह ऐलान यूं ही नहीं आ रहा, बल्कि सलवटें बताती हैं कि सीमाओं का उल्लंघन धड़ल्ले से हो रहा है। हालांकि यह बीमारी भाजपा के नेताओं में देखी गई, जब किसी न किसी बहाने होर्डिंग्स या दीवारों पर बाकायदा अपने-अपने नाम का ब्रश चलाया गया। विडंबना यह भी कि कांग्रेस पार्टी के स्लोगन चुराकर नेताओं ने खुद को बड़े से बड़े योद्धा के रूप में पेश किया। दरअसल मात्रात्मक दृष्टि से पदाधिकारियों की संख्या अपनी शुमारी में यह नहीं बता पा रही कि किस नेता का कितना वजन है और इसलिए स्वकेंद्रित प्रचार फ्रेम से बाहर हो रहा है। अभी तक कांग्रेस के होर्डिंग्स प्रतिभा सिंह, सुखविंदर सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री के बीच बंटे हुए थे, लेकिन इन्हीं के आधार पर हर विधानसभा क्षेत्र भी कांग्रेस वीर तैयार कर रहा है। सुधीर शर्मा का तात्पर्य कितना महत्त्वपूर्ण व प्रभावी होता है, यह अभी परीक्षण पर माना जाएगा, लेकिन आधिकारिक तौर पर वह यह करवाने में कामयाब हुए तो पार्टी की कुछ और चूलें कसी जा सकती हैं।
यह दीगर है कि कुछ बड़े नेताओं की टिप्पणियां भी संघर्ष कर रही हैं। प्रतिभा सिंह बड़े बोल बोलते हुए भाजपा के हमले का शिकार हो गईं, तो सोशल मीडिया पर उनके बेटे व विधायक विक्रमादित्य की संवेदना भी कई बार पार्टी लाइन भूल गई। अपने शब्द की गुल्लक से बाहर निकल कर मुकेश व सुक्खू के अभिप्राय पर भी प्रश्न उठे हैं। इसके कई अर्थ हो सकते हैं कि कौन क्या बोल रहा है, लेकिन अब तक यह तो साबित हो चुका है कि भाजपा की जुबान पर सबसे अधिक शब्दों की मिर्ची मुकेश अग्निहोत्री ने ही छिड़क रखी है। प्रचार का उनका अपना तरीका और शब्दों का लहजा है, जो बार-बार उन्हें मुख्यमंत्री के समक्ष खड़ा कर देता है। सुक्खू आक्रामकता व दो टूक की वाणी में आगे बढ़ रहे हैं और यह भी एक तरीका है जिसे पसंद किया जाता है। प्रतिभा सिंह के साथ एक विरासत जरूर चलती है, लेकिन सामने भाजपा जैसी दीवार हो, तो नई ईंटें जोड़नी पड़ेंगी। मुद्दे तराशने और शब्द को आंकने में फर्क नहीं होना चाहिए। स्पष्टता की खामी में कांग्रेस ने अपना अतीत गंवाया और इसी खुशफहमी में कई नेता आज भी अपना वजन बढ़ाने का शार्टकट खोज रहे हैं। सुधीर शर्मा ने इस दिशा में पहला कंकर फेंका है, तो जाहिर है कुछ लहरें उठेंगी। यह आत्मचिंतन के लिए जरूरी है कि पार्टी एक साथ समानांतर दिशा में चले। हाल फिलहाल जिस तरह पार्टी के सह प्रभारी संजय दत्त और अब युवा कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास के दौरों ने पार्टी के हर खास और आम को बांधा है, वहां एक ही संदेश कांग्रेस को मिल रहा है कि इस युद्ध को न एक दूसरे से बेहतर और न किसी को कमजोर बता कर जीता जा सकता है। पिछली बार सत्ता गंवाते वक्त कांग्रेस के नेता इतने बड़े हो गए थे कि पार्टी छोटी रह गई और अंततः वे सभी भी हारे जो एक-दूसरे की टांग खींच रहे थे। ऐसे में अगर पोेस्टरबाजी पर खड़े हो रहे आत्मसिद्ध नेताओं की टांग खींची जा रही है, तो यह अनुशासन सर्वप्रथम बड़े नेताओं को दिखाना है

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