काबुल की चिंता

अमेरिका कभी अफगानिस्तान में धमाकों के साथ घुसा था और आज लौटते हुए भी धमाके जारी हैं

Update: 2021-08-30 18:52 GMT

अमेरिका कभी अफगानिस्तान में धमाकों के साथ घुसा था और आज लौटते हुए भी धमाके जारी हैं। आतंकवाद की असली जड़ों में मट्ठा न डालने का नतीजा सामने है। हालात काबुल में सबसे बदतर हैं। एयरपोर्ट पर हुए हमले में शहीद अपने सैनिकों का बदला लेने के लिए अमेरिका एक हद तक दृढ़ नजर आ रहा है, लेकिन पूरी अमेरिकी सैन्य कवायद अपनी रक्षा के लिए भी हो सकती है। अपनी रक्षा के लिए आक्रामक होना एक रणनीति ही है, जो हम पहले भी देख चुके हैं। खैर, तालिबान दहशतगर्दी का दामन छोड़ने को तैयार नहीं है, वह शायद जाते हुए अमेरिका को डराकर भेजना चाहता है, ताकि वह फिर कभी अफगानिस्तान में वापसी की न सोचे। इस बीच काबुल में युद्ध का आलम है। कहां बम बरस जाए, कहां फिदाईन हमला हो जाए, कोई नहीं जानता। लोग न घरों में सुरक्षित हैं और न ही सड़कों पर। ज्यादा आशंका यही है कि आने वाले कुछ दिनों तक स्थितियां ऐसी ही रहेंगी और दोनों पक्ष ऐसी स्थितियों के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे। सबसे ज्यादा खतरा तो आईएस की तरफ से है, जिसके आतंकी दहशत को बढ़ाने में दिन-रात लगे हुए हैं। दुनिया की भलाई इसी में है कि वह दहशत के हर बहते दरिया में हाथ धोने के शौकीनों को पहचान ले।

वैसे अमेरिका ने ड्रोन की मदद से शनिवार को भी हमले किए थे और रविवार को भी। उसने पहले ही साफ कर दिया था कि वह चुन-चुनकर बदले लेगा। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने काबुल में रविवार को हुए अमेरिकी हवाई हमले की निंदा करते हुए कहा है कि दूसरे देशों में मनमाने ढंग से हमले करना गैर-कानूनी है। शनिवार को आईएस के दो आतंकी मारे गए थे, जबकि रविवार के हमले में सात लोग मारे गए हैं। जाहिर है, अमेरिकी कार्रवाई से तालिबान नाखुश हैं और धमकी की जुबान पर उतर आया है। अमेरिका यह साबित करने में कामयाब रहा है कि उसने हमला करने आ रहे आतंकवादियों को निशाना बनाया, जबकि तालिबान का कहना है कि कोई खतरा था, तो उसकी सूचना मिलनी चाहिए थी। क्या अफगानिस्तान में अमेरिका को सूचना देकर आतंकवादियों पर हमला करना चाहिए? क्या तालिबान आतंकवादियों को पकड़ने में मदद करेंगे? क्या खुद तालिबान की हरकतें आतंकियों जैसी नहीं हैं? निर्दोष लोगों की हत्या करना, एक गायक को घर से निकालकर गोली मार देना कहां की सभ्यता है? अमेरिका को यह बात बार-बार पुरजोर तरीके से रखनी चाहिए कि तालिबान ने कब्जा किया है, ये कोई वैध शासक नहीं हैं। सत्ता के ऐसे हस्तांतरण के लिए समझौता नहीं हुआ था। अफसोस, चीन और पाकिस्तान खुलकर तालिबान के पक्ष में नजर आ रहे हैं। चीन ने तो यहां तक कहा है कि दुनिया तालिबान को रास्ता दिखाए। कहीं अमेरिका या भारत से दुश्मनी निभाने के फेर में चीन परोक्ष रूप से तालिबान का दुस्साहस न बढ़ा दे। अगर चीन सांप्रदायिकता को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहेगा, तो अपने नैतिक आधार को उत्तरोतर और कमजोर ही करेगा। सत्ता के भूखे तालिबान न मजहब की सेवा करेंगे और न इंसानियत की। चीन उन्हें अपनी रीति-नीति के रास्ते पर ले जाएगा या सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेगा? यह तालिबान से भी ज्यादा पाकिस्तान को सोचना चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान 

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