By NI Editorial
भारत में सचमुच अर्थव्यवस्था ने K आकार ग्रहण कर लिया है। जिस दौर में आर्थिक बदहाली की कहानियां आम हैं, तभी भारत में क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है।
पहली नजर में इस आंकड़े पर यकीन करना मुश्किल होता है। लेकिन चूंकि आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र का है- यानी आधिकारिक है- तो इसे खारिज भी नहीं किया जा सकता। इस आंकड़े से दो खास संकेत मिले। पहला, तो यह कि भारत में सचमुच अर्थव्यवस्था ने K आकार ग्रहण कर लिया है। जिस दौर में महामारी और महंगाई के कारण जमीनी और मध्यम स्तरों पर बदहाली की कहानियां आम हैं, उसी दौर में समाज के एक तबके पास इतना पैसा है कि वह जुआ जैसी गतिविधियों में धन लगाने का जोखिम उठा लेता है। दूसरा संकेत यह है कि समाज में जिन तबकों के पास पैसा है, उनमें धनी से ज्यादा धनी होने की होड़ अब असीमित हो गई है। सच्चाई यह सामने आई है कि कोरोना महामारी के दौरान विश्व भर क्रिप्टोकरंसी में निवेश अभूतपूर्व दर से बढ़ा। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान भारत में भी क्रिप्टोकरंसी में निवेश करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी। भारतीय आबादी में 7.3 फीसदी लोगों के पास आज डिजिटल करेंसी है।
2021 में क्रिप्टोकरेंसी रखने वाली आबादी की हिस्सेदारी के लिहाज से 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से 15 विकसित देश शामिल थे। 2021 में डिजिटल करेंसी रखने के मामले में दुनिया के शीर्ष 20 देशों में भारत सातवें स्थान पर था। क्रिप्टोकरेंसी भारत में करीब दस साल पहले आ गई थी। 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक ने क्रिप्टोकरंसी को बैन कर दिया था। लेकिन दो साल पहले देश के सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रतिबंध हटा दिया और तब से भारत में क्रिप्टोकरेंसी का बाजार तेजी से बढ़ा है। एक शोध संस्था के मुताबिक जून 2021 तक एक साल में ही भारत का क्रिप्टोकरेंसी बाजार 650 फीसदी बढ़ चुका था। इसी साल आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्रिप्टो और एनएफटी को वर्चुअल डिजिटल संपत्ति के तहत लाने का एलान किया था। इससे होने वाली कमाई पर 30 फीसदी का टैक्स लगाया गया था। एक फीसदी टीडीएस अलग से लगाया गया। इससे क्रिप्टो कारोबार को एक तरह की कानूनी मान्यता मिल गई। बहरहाल, ये सवाल बना हुआ है कि क्या ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करना उचित है, जिसका संचालन ही भ्रामक है।