‘हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, लोग कत्ल भी करते हैं चर्चा नहीं होता।’ अकबर इलाहाबादी के इस शे’र में बहुत आक्रोश और शिकायत है। वैसे तो खाना-पीना, पहनना, नाचना, उठना-बैठना, घूमना-फिरना, बातचीत करना किसी के जीवन का व्यक्तिगत मामला है तथा इस पर किसी की टिप्पणी नहीं हो सकती। आमतौर पर नाचते तो सभी हैं अपने निजी जीवन में, लेकिन यदि यह नाच किसी प्रतिष्ठित महिला प्रशासनिक अधिकारी का हो तो चर्चा और बढ़ जाती है। संविधान ने देश के नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है। बशर्ते कि यह स्वतंत्रता किसी दूसरे के जीवन में व्यवधान या परेशानी पैदा न करे। इसके साथ ही सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन में किसे क्या करना है तथा क्या नहीं करना है, यह भी सभी नागरिकों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह व्यक्ति की अपनी सोच-समझ, स्वतंत्रता तथा दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। विशेषकर यदि वह व्यक्ति महत्त्वपूर्ण पद पर सुशोभित प्रशासनिक अधिकारी हो तथा महिला हो तो प्रकरण को जानने की जिज्ञासा और बढ़ जाती है।
आजकल हिमाचल प्रदेश में एक महिला प्रशासनिक अधिकारी का डांस वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होकर चर्चा का विषय बना हुआ है। यह महिला दो वर्ष पूर्व अपने परिवार में अपने जन्मदिन की पार्टी में आधुनिक परिधान में डांस कर रही हैं। अब एक महिला रूप में अपने निजी जीवन में उनके क्या अधिकार हैं तथा उनकी क्या सीमाएं हैं, यह उन्हें तय करना है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी के रूप में किसी का आचरण कैसा हो, यह हमारे व्यावसायिक जीवन के कंडक्ट रूल्स तय करते हैं। अब यह मामला व्यक्तिगत होते हुए सामाजिक तथा प्रशासनिक भी है, लेकिन इसमें व्यक्ति को अपने आचरण की सीमाएं स्वयं तय करनी हैं ताकि व्यक्तिगत, सामाजिक तथा प्रशासनिक रूप से उसकी गरिमा बनी रहे। इस विषय पर कोई किसी को लाइसेंस देने के लिए अधिकृत भी नहीं है। यदि किसी व्यक्ति को किसी का आचरण पसंद न हो तो फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप पर उस व्यक्ति से अपना नाता तोड़ ले, लेकिन किसी को किसी की पोस्ट को सोशल मीडिया पर वायरल करने तथा अनाप-शनाप टिप्पणी करने का अधिकार हरगिज नहीं है। इस वीडियो में नृत्य कर रही यह महिला समझदार है, शिक्षित है, जिम्मेदार है, अपना अच्छा-बुरा जानती है तथा अपने अधिकारों, कत्र्तव्यों, मर्यादाओं तथा सीमाओं को समझती है। वह अपने प्रियजनों तथा मित्रों के साथ जीवन के निजी क्षणों का आनंद ले रही है। इसमें किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यहां पर टिप्पणी करने वालों को अपनी सीमाओं में रहते हुए अपनी दृष्टि को भी बदलने की आवश्यकता है। हम इस तरह से कोई फैसला सुना देते हैं जैसे हमें सामाजिक नीति संहिता को तय करने का ठेका मिला गया हो। यहां पर कौन व्यक्ति किस सीमा में रहे, कैसा व्यवहार करे, क्या खाए-पिए, क्या पहने यह उस व्यक्ति की सोच-समझ, संस्कार तथा स्वतन्त्रता पर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति किसी को कोई अन्तिम फैसला नहीं सुना सकता। सोशल मीडिया पर यह नृत्य वायरल होते ही यह महिला प्रशासनिक अधिकारी अपने फेसबुक अकाउंट पर सीधे-सीधे सामने आईं। महिला अधिकारी ने समाज तथा सोशल मीडिया पर बहुत से प्रश्न खड़े किए हैं।
उन्होंने कहा कि वे सबसे पहले इनसान हैं, फिर महिला, उसके पश्चात एक अधिकारी। जिस समाज में महिला के कपड़े उसके ज्ञान और कौशल से ज्यादा टिप्पणी का विषय बनें, उस समाज में बदलाव बहुत जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ी को महिलाओं को बराबरी के सभी मायने समझ आएं। महिला अधिकारी की इस जवाबी प्रतिक्रिया में रोष भी है, आक्रोश भी है, भावुकता भी है, यथार्थ भी है तथा विडम्बना भी और धिक्कार भी है। सोशल मीडिया में सामने आए इस जवाबी वीडियो में महिला अधिकारी ने समाज तथा न्यूज चैनलों, फेसबुक पेजिज, इन्स्टाग्राम, वाट्सऐप में अपने चाहने वाले लगभग 94000 लोगों तथा समाज के समक्ष अनेक प्रश्न उठाकर सोचने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी का भी अपने ड्यूटी टाइम के पश्चात अपना निजी जीवन है। प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान में एक प्रशासनिक अधिकारी या पढ़ी-लिखी महिला की सीमाएं कौन निश्चित करेगा? क्या यह निजी जीवन की स्वतन्त्रता का हनन नहीं होगा? क्या समाज जैसा कहे, वैसा ही व्यक्ति करने को बाध्य होगा? क्या व्यक्तिगत निजता समाज के कायदे कानून से ऊपर है? क्या व्यक्ति समाज के कायदे कानून से बढक़र है? यह सब तो किसी व्यक्ति की शिक्षा, ज्ञान, सामाजिक व्यवहार, संस्कार तथा उसकी व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है। इसके साथ ही व्यक्ति का संकीर्ण दृष्टिकोण, दूषित मानसिकता व उसकी प्रदूषित दृष्टि को कैसे बदला जा सकता है? यह भी विचारणीय प्रश्न है कि किसी भी व्यक्ति को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसे व्यक्ति स्वयं, परिवार, समाज, सरकार या फिर संविधान तय करेगा।
यहां अपने संदेश में महिला अधिकारी ने बड़ी बेबाकी से उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हुए वीडियो को वायरल करने वालों से यह भी कहा है कि उनके द्वारा जनता तथा समाज के लिए किए गए सकारात्मक कार्यों को वायरल क्यों नहीं किया गया? समाजिक व्यवस्था पर प्रहार करते हुए महिला अधिकारी का कहना है कि एक महिला होना और विशेषकर एक स्वतन्त्र विचारों की महिला होना आज भी आसान नहीं है। नृत्य में पारंगत इस महिला अधिकारी ने कहा कि अभी भी महिला को स्वतन्त्र रूप से जीने तथा पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने में समय लगेगा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के लिए जीवन की परेशानियों, तनावों तथा चुनौतियों से आत्महत्या जैसे कदम उठाने से बेहतर तो पब में डांस करना है। यह आवश्यक है कि हम सभी भी अपने किरदार के साथ समय, स्थान तथा स्थिति के अनुसार अपनी सीमाओं को समझें। इसके साथ ही लोग भी दकियानूसी, संकीर्णता तथा प्रदूषित मानसिकता से ऊपर उठें। सभी को किसी के जीवन की निजता का सम्मान करना चाहिए, विशेषकर यदि वह व्यक्ति एक महिला हो। यहां पर कटु सत्य के धरातल पर बिना प्रशंसा तथा निंदा से इस प्रकरण पर कोई सलाह, सुझाव या अन्तिम फैसला तो नहीं दिया जा सकता, लेकिन महिला अधिकारी द्वारा उठाए गए प्रश्न विचारणीय अवश्य हैं।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal