चिंताजनक है दिवाली से पहले महंगाई की मार, आम जनता को तो तत्काल राहत की दरकार
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
दिवाली से पहले बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी की चिंताएं बढ़ गई हैं. फल-सब्जियों से लेकर सभी प्रकार की खाद्य सामग्रियों के दाम आसमान छूने चले हैं. आंकड़ों में बात करें तो सितंबर में महंगाई दर 0.41 फीसदी बढ़कर 7.41 फीसदी हो गई है. महंगाई में इजाफे की वजह अनाज और सब्जियों की कीमतों में तेजी है. शहरी और ग्रामीण, दोनों ही इलाकों में खाद्य महंगाई दर में इजाफा देखा जा रहा है.
अप्रैल के बाद से यह सबसे ज्यादा है. अगस्त में यह 7 फीसदी पर थी. महंगाई को लेकर अब विपक्ष ने भाजपा सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. देखा जाए तो दुनिया भर में तेजी से आसमान छूती महंगाई और बढ़ता कर्ज बड़ी समस्या बन चुका है. इसके साथ-साथ खाद्य पदार्थों और ऊर्जा साधनों की बढ़ती कीमतों के चलते करोड़ों लोग जीवनयापन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं.
पिछले दो साल महामारी से जूझने के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति भी नाजुक हो चुकी है. अपने देश की बात करें तो खाद्य सामग्री के अलावा डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के दाम में भी कमी के कोई आसार नहीं हैं. जाहिर है इससे किसान, व्यापारी, गृहिणियों समेत हर वर्ग के लोग परेशान हैं. लगातार बढ़ रही महंगाई से रसोई का बजट बिगड़ चुका है. घर-घर में लोग परेशान हैं और नौकरीपेशा लोगों की जेब ढीली होती जा रही है.
बढ़ती कीमतों ने लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं को और बढ़ा दिया है. इसकी सबसे ज्यादा मार समाज के कमजोर तबके पर पड़ रही है. महंगाई का मतलब है कि खाद्य उत्पादों और ऊर्जा कीमतों में इजाफा. लंबे समय तक यही स्थिति बनी रही तो लोगों के रहन-सहन के स्तर में गिरावट आ जाएगी, जिससे आगे चलकर उनके भविष्य की संभावनाएं भी प्रभावित होंगी. महंगाई गरीबी भी बढ़ाती है जिससे समाज में असमानता की खाई कहीं ज्यादा गहरी होती है. शिक्षा के स्तर और उत्पादकता में गिरावट आ सकती है.
महंगाई की स्थिति से निपटने के लिए जहां कुछ परिवारों को अपने भोजन की गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है, वहीं बच्चों को शिक्षा से वंचित होने से लेकर स्वास्थ्य संबंधी खर्चों के साथ भी समझौता करना पड़ सकता है. महंगाई बढ़ने का एक प्रमुख कारण डॉलर के मुकाबले रुपए का कमजोर होना भी है. इधर, कच्चा तेल भी महंगा हुआ है और खाद्य तेलों में भी तेजी बनी हुई है.
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि अप्रैल 2023 से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति नियंत्रण में आ जाएगी और इसका स्तर 5.2 फीसदी तक रहेगा. अच्छी बात है कि रिजर्व बैंक और सरकार मिल-जुलकर महंगाई पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रहे हैं पर उसका असर देर से दिखेगा. आम जनता को तो तत्काल राहत की दरकार है.