एक तानाशाह की अंदरूनी झलकियां
'तानाशाह' शब्द सुनते ही हम सबकी आंखों के सामने एक ऐसे विशालकाय, कद्दावर और कठोर व्यक्ति की तस्वीर उभरती है
'तानाशाह' शब्द सुनते ही हम सबकी आंखों के सामने एक ऐसे विशालकाय, कद्दावर और कठोर व्यक्ति की तस्वीर उभरती है, जिसके नाम से ही सुनने वाले की रूह कांप उठती हो. इसके बारे में कुछ ऐसी धारणा बन गई है कि ऐसा तानाशाह बहुत शक्तिशाली होता होगा, साहसी होता होगा, निडर होता होगा और साथ ही शायद दुनिया का सबसे सुखी इंसान भी होता होगा.
लेकिन इसकी सच्चाई क्या है, आइये, इसे हम एक ऐसे तानाशाह के व्यक्तित्व के अंदरूनी परतों में झांकते हुये जानते हैं, जिसका नाम हिटलर था. अपनी तानाशाही प्रवृत्ति के कारण जर्मनी के चांसलर एडोल्फ हिटलर ने न केवल द्वितीय महायुद्ध को इतना विध्वंसकारी ही बनाया, बल्कि अपनी नाजी सेना के जरिये चुन-चुनकर लगभग 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतरवाया और वह भी बड़ी बेरहमी से. इसके अतिरिक्त दस लाख लोग और भी बेकसूर नागरिक थे, जो इसके तानाशाही सनक के शिकार हुये.
मनौवैज्ञानिक स्तर पर यह माना जाता है कि तानाशाह से दुनिया डरी रहती है. लेकिन वह स्वयं से ही डरा हुआ एक ऐसा शख्स होता है, जो लगातार अंदर ही अंदर क्रमश: कमजोर होता जाता है. फिर अपनी इस कमजोरी की भरपाई के लिए ही वह बाहर से और अधिक क्रूरता का प्रदर्शन करने लगता है.
हिटलर एक ऐसा ही डरा हुआ इंसान था. इसे हमेशा अपनी मौत का डर सताता रहता था और भय लगा रहता था कि इसे कोई न कोई जहर दे देगा. बुलेट प्रूफ जैकेट पहनना इसकी मजबूरी थी. मौत के भय ने इसे अनिद्रा का शिकार बना दिया था. नींद की इस बीमारी को ठीक करने के लिये दुनिया भर के विशेषज्ञ बुलाये गए, पर किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली. रात भर करवटें बदलते रहने के कारण सुबह देरी से उठना उसकी आदत में शुमार हो गया था.
हिटलर हमेशा एक बहुत ही बड़े डेस्क पर बैठकर काम करता था. इसके एक कोने में बैटरी से चलने वाले अनेक बटन लगे होते थे, जिनमें से एक चमकीला लाल रंग का बटन था. यदि हिटलर इस लाल रंग के बटन को छू भर दे, तो उसका यह पूरा कमरा अश्रु गैस के बादलों से भर सकता था, केवल उसके स्टडी रूम को छोड़कर, जो ठीक इसके बगल में था और जहाँ वह तुरंत पहुंच सकता था. इस बटन को छूते ही उस बैरक में एक अलार्म घंटी बजने लगती थी, जो उसके इस कमरे से लगभग पांच सौ गज की दूरी पर था. इस बैरक में सौ चुने हुए ब्लैक गार्ड मशीनगन और हथगोले लेकर हमेशा तैनात रहते थे. ये सभी अलार्म बजते ही हिटलर के इस कक्ष में पहुंच सकते थे.
सामान्यतया इस तरह के माहौल में रहने वाला व्यक्ति स्वभावत: अंधविश्वासी हो जाता है. हिटलर भी हो गया था. उसके साथ ओसियस नाम का 35 साल की उम्र का एक दुबला-पतला और काला आदमी रहता था, जो अपने-आपको ज्योतिष का जानकार कहता था. हिटलर को भी उस पर विश्वास था. वह किसी भी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले इस ज्योतिषी के साथ अपनी ग्रहों की स्थिति के बारे में सलाह-मशविरा करता था. महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ज्योतिष की सलाह उसके जनरल स्टाफ की सलाह के विरूद्ध हो, तब भी वह ओसियस की सलाह ही मानता था.
हिटलर को विश्वास था कि लाल रंग उसके लिये भाग्यशाली है. इसलिये उसने भारत के स्वास्तिक को अपना प्रतीक चिन्ह के रूप में चुना था. उसने कहीं पढ़ा था कि यह प्राचीन चिन्ह सौभाग्य का प्रतीक है. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
इस ज्यातिषी ने हिटलर से कह रखा था कि वह अपनी मृत्यु तक जर्मनी पर शासन करेगा और उसकी मृत्यु 1962 में होगी. पहली भविष्यवाणी तो सही हुई कि वह अपने जीवन भर जर्मनी का चांसलर बना रहा, जब तक कि उसने 1945 में युद्ध में बुरी तरह हार जाने के कारण एक ही दिन पहले विवाहित अपनी पत्नी के साथ आत्महत्या नहीं कर ली. लेकिन यह वर्ष ओसियस द्वारा घोषित 1962 का न होकर उससे 17 साल पहले का था.
ऐसे क्रूर आदमी के बारे में पढ़कर यह कतई नहीं लगता कि उसके अंदर किसी के प्रति किसी भी तरह की कोई कोमल भावना होती होगी. लेकिन हिटलर के दिल की एक छोटी-सी जगह पर इसकी मौजूदगी थी, भले ही वह पक्षियों के प्रति ही क्यों न रही हो.
हिटलर ने अपने निवास स्थान के एक कमरे को दुर्लभ चिडि़यों का घर बना रखा था. वहाँ एक बड़े से पिंजड़े में दुर्लभ किस्म के लगभग 80 पक्षी रहते थे, जो हर समय चहकते और चीखते रहते थे. इसकी प्रत्यक्षदर्शी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि ''मैंने देखा कि अगर हिटलर किसी के प्रति सामान्य दया और मानवता दिखाता था, तो ये वे चिड़ियां ही थीं. वह हमेशा स्वयं ही उन्हें खाना खिलाता था. उनमें से किसी की मौत उसके आँखों में आंसू ला देती थी. उसके छोटे से मृत शरीर को जमीन के छोटे से टुकड़े में गाड़ दिया जाता था. और उसकी कब्र के ऊपर छोटी-सी कांसे की एक चोटी लगा दी जाती थी."
लाखों लोगों की बेरहमी से बिना किसी झिझक खुलेआम हत्या करने वाला दुनिया का यह तानाशाह स्वयं में शाकाहारी था. हाँ, यह जरूर है कि उसे ट्राउट नामक मछली बहुत पसंद थी. रोजाना आधा पौंड मक्खन खाना उसका शौक था. मिठाइयों के पीछे वह पागल था और एक हफ्ते में कई पौंड मिठाइयाँ खा लेना उसके लिये मुश्किल बात नहीं थी. उसे चाकलेट और टॉफी उसी तरह से पसंद थीं, जैसे किसी बच्चे को पसन्द होती है. उसके जैकेट की जेब टॉफियों और मिठाइयों से भरी होती थीं. उसका मानना था कि ये मिठाइयां उसे बड़े कामों को करने की ऊर्जा देती हैं.
कॉफी का बेहद शौकीन हिटलर के लिये एक दिन में बीस कप कॉफी पीना जरूरी था. सिनेमा का बहुत शौकीन यह शख्स इस दौरान कॉफी को जरूरी समझता था. रात में खाना खाने के बाद अक्सर उसका मन पियानो सुनने के लिये बैचेन हो जाता था. उसे बेगनर बहुत अधिक पसन्द था. साथ ही जर्मन एवं आस्ट्रिया के अनेक छोटे-मोटे संगीतकारों की मधुर भावनात्मक लय भी उसे पसन्द थी. जब उसे पियानो सुनना होता था, तब वह अपनी आँखों को बंद करके अपनी कुर्सी के पीछ टेक लगाकर बैठ जाता था और अपने हाथ की उंगलियों को संगीत के साथ धीरे-धीरे हिलाता रहता था.
लेकिन उसे कुछ चीज़ें पसन्द नहीं थीं. अपनी आलोचना सुनते ही वह तमतमा उठता था. उसे यह बिल्कुल पसन्द नहीं था कि स्त्रियां सौन्दर्य प्रसाधन का इस्तेमाल करें. नैल पॉलिश से तो मानो उसे चीढ़ ही थी. सिगरेट और शराब के इस्तेमाल से वह कोसों दूर था. किसी की हिम्मत नहीं थी कि हिटलर की उपस्थिति में कोई सिगरेट का एक कश लेने की भी जुर्रत कर सके.
इस तानाशाह ने इस धरती पर पहली सांस 20 अप्रैल को ली थी, और अंतिम सांस 30 अप्रैल को. लेकिन इन दोनों सांसों के बीच फासला 56 वर्षों का था.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)