भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत गीता को क्यों स्कूलों में पढ़ाया जाना है जरूरी?
ऊपर दिए गए ये तीन उद्धरण कहां से लिए गए हैं
सुतानु गुरू
'मैं चिंता और शोक से, अक्षमता और आलस्य से, कायरता और कंजूसी से, भारी कर्ज से और (अन्य) पुरुषों के हाथों पराजय से दूर आपकी शरण लेता हूं.'
ऊपर दिए गए ये तीन उद्धरण कहां से लिए गए हैं? आप में से कितने लोग इसकी विशिष्टता और फर्क बता सकते हैं? बेशक, आप में से बहुत से लोग बता सकते हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि तीनों उद्धरण वास्तव में एक ही बात कह रहे हैं. लेकिन आइए 'सभी धर्मों के समान होने' के बारे में यदि अनंत काल के लिए नहीं, तो कम से कम कुछ पल के लिए ही सही, छल-कपट के खेल को त्याग दें. अगर आपको नहीं पता तो बताते चलें, पहला उद्धरण श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagavad Gita) से है, दूसरा बाइबिल से और तीसरा कुरान से.
यह लेखक धार्मिक शास्त्रों का ज्ञाता नहीं है. लेकिन करोड़ों भारतीय साथी मुझसे सहमत होंगे. मुझे लगता है कि आप में से ज्यादातर लोग स्कूली पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने से जुड़े प्रश्नों पर मेरी प्रतिक्रिया की पुष्टि करेंगे. बात तो छोटी है, मगर है गंभीर और यह बड़ा सवाल भी उठाता है. क्या यह डेविड द्वारा गोलिएथ (Goliath) को मारने का क्लासिक केस नहीं होगा? डेविड और गोलिएथ की कहानी को लगभग हर साक्षर हिंदू जानता है और उसकी तारीफ करता है. मैं कक्षा 1 से कक्षा 10 तक ओडिशा के केंद्रीय विद्यालय का छात्र रहा, जहां हमारे अंग्रेजी शिक्षक अंग्रेजी की तुलना में ओड़िया या हिंदी में अधिक सहज थे. लेकिन शिक्षक और छात्र दोनों ही 19वीं सदी में लॉर्ड मैकाले के द्वारा छोड़े गए खंडहर और मलबे में आकंठ डूबे हुए थे.
इंडोनेशिया में मुस्लिम बहुसंख्यक अभी भी रामायण उत्सव मनाते हैं
स्कूली शिक्षा के दौरान मुझे सामाजिक तौर पर गलत और पिछड़ी प्रथाओं के बारे में इतना अधिक बताया गया कि जब मैं किशोर था तब तक मैं सोचता था कि क्या मेरा परिवार हिंदू है या मेरे प्यारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई कोई काल्पनिक रचना है. आप ध्यान दें; मेरे अधिकांश रिश्तेदार और दोस्त 'कॉन्वेंट स्कूल' टाइप के थे, उन्हें भी इसी दुविधा का सामना करना पड़ा. मुझे यह भी बताना चाहिए कि एक भी 'बहन' या 'पिता' ने उन्हें किसी भी तरह से ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित नहीं किया. यदि ऐसा हुआ होता तो आज 30 करोड़ से अधिक मिडिल क्लास भारतीयों में से अधिकांश ईसाई होते. कट्टर हिंदुत्ववादी को छोड़ दिया जाए तो कभी भी ऐसी बात नहीं रही. 1950 में भारत के स्वायत्त गणराज्य बनने के बाद भी हिंदू विरासत के बेहतर पहलुओं की जानबूझकर उपेक्षा की गई है.
मैं वाकई ऐसा नहीं सोचता कि यह हिंदुत्व के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखने वालों को नीचा दिखाने के लिए मार्क्सवादियों और इस्लामवादियों द्वारा रची गई एक बड़ी साजिश थी, जो अवमानना और निंदा दोनों के योग्य है. मुझे लगता है कि यह दीर्घकालीन मैकाले हैंगओवर था और अब भी है. उदाहरण के लिए, ओडिशा में पैदा होने के वावजूद मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि दीपावली के आसपास मनाई जाने वाली 'बाली यात्रा' प्राचीन भारत के नाविकों के बारे में थी जो व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए आधुनिक इंडोनेशिया की यात्रा करते थे. हमारी यह ऐतिहासिक विरासत इतनी शक्तिशाली रही है कि इंडोनेशिया में मुस्लिम बहुसंख्यक अभी भी रामायण उत्सव मनाते हैं.
इसलिए जब मैं यह कहता हूं कि स्कूलों में भगवद गीता क्यों नहीं, तो मेरा मतलब इतिहास, संस्कृति और शायद थोड़ी सी आस्था से जुड़ा है. यूरोप के प्रसिद्द कवि होमर की रचना इलियड (Iliad) की तरह इसे क्लासिकल महाकाव्यों में से एक के रूप में क्यों नहीं पढ़ाया जाता है? मुझे लगता है कि हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों को कभी भी नष्ट नहीं होने देना चाहिए क्योंकि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इसका अस्तित्व बरकरार है. कोई भी राष्ट्र जो अपनी विरासत की उपेक्षा करता है, उसका अनादर करता है, वह ऐसे राजनीतिक और आर्थिक नीतियों का निर्माण नहीं कर सकता जो वास्तव में उसकी संपन्नता के लिए जरूरी इकोसिस्टम बनाने में मदद करते हैं.
आस्था से ज्यादा महत्वपूर्ण है राजनीति है?
मेरी भतीजी यूएसए के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक में फुल स्कॉलरशिप के साथ अंडरग्रेजुएट कोर्स कर रही है. छुट्टियां बिताने के लिए वह घर आई है. पितृसत्तात्मक और बहुसंख्यक हिंदू देश भारत में महिलाओं को कमतर आंकने के बारे में उससे बात हुई. वह चौंक गई जब मैंने उससे पूछा कि क्यों इतने सारे अमेरिकी राज्य एक महिला के लिए अपनी एजेंसी का उपयोग करते हुए गर्भपात का विकल्प चुनना लगभग असंभव बना रहे थे? मैंने उसे यह बताकर शांत किया कि जब विचारों और निंदाओं के मुक्त आदान-प्रदान की बात आती है तो अमेरिका अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा देश है.
ऐसे में सवाल उठता है कि स्कूलों में भगवत गीता क्यों नहीं? मेरी एकमात्र चेतावनी है, इसे लागू करने के लिए सिर्फ बीजेपी सरकारें नहीं हैं. क्या यह आश्चर्यजनक नहीं होगा कि ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, अरविंद केजरीवाल, वाईएसआर जगन रेड्डी या केसी राव जैसे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री अपनी झिझक दूर करते हुए इस टालें नहीं और इसे लागू करें. आस्था से ज्यादा महत्वपूर्ण है राजनीति. लेकिन क्या हमारी सामूहिक विरासत राजनीति से ज्यादा नहीं है?