मोदी के सान्निध्य में

हिमाचल का देश के प्रधानमंत्रियों से लगाव हमेशा चिन्हित हुआ और आज जिस मुकाम पर यह पहाड़ी प्रदेश खड़ा है

Update: 2022-05-17 19:23 GMT

हिमाचल का देश के प्रधानमंत्रियों से लगाव हमेशा चिन्हित हुआ और आज जिस मुकाम पर यह पहाड़ी प्रदेश खड़ा है, वहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से नरेंद्र मोदी तक प्रश्रय की परंपरा दिखाई देती है। इस दौरान प्रदेश की जनता बतौर मतदाता इतनी सजग व संतुलित हो चुकी है कि हर बार चुनाव का गणित केंद्र की सरकार से तालमेल करता है। प्रदेश ने भावुक मुद्दों या धार्मिक पहचान को खारिज करते हुए केंद्र की हस्तियों को सलाम किया, लेकिन हिमाचल की अपनी सत्ता को सदा तराजू पर रखा। इसलिए नेता बड़े बनाए और बड़े नेताओं को झुकाया भी। तीसरे मोर्चे के गणित में यह प्रदेश आज तक न उलझा और न ही राजनीति को असमंजस में फंसाया। बहरहाल कुछ महीनों बाद पुनः विधानसभा चुनाव की पारखी निगाह में हिमाचल करवटें बदल रहा है। ऐसे में एक ओर राजनीतिक इतिहास और दूसरी ओर नए सियासी सान्निध्य की तलाश जारी है। यह सान्निध्य वादों की किश्ती पर नए पतवार की खोज में कितना संतुष्ट होगा या देश की हवाओं में बह जाएगा, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, फिर भी मुकुट पहनकर आ रहा चुनाव इस बार 'दिल से लगाने' की राजनीति देखेगा।

यूं तो देश के प्रधानमंत्री हिमाचल आते रहे हैं, लेकिन इस बार मोदी अपने सान्निध्य का रेखांकन करने आ रहे हैं। केंद्र सरकार के आठ सालों का सफर कितने सान्निध्य का पक्षधर रहा, यह बतौर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के माध्यम से परिलक्षित होगा, लेकिन प्रधानमंत्री अपनी तस्वीर खुद सजाते हैं। मई महीने की सूचनाओं में राष्ट्र जब देश के प्रधानमंत्री से मुखातिब होगा, तो शिमला रैली के उद्बोधन प्रदेश की तासीर बदल सकते हैं। सत्ता का केंद्र हिमाचल में आकर देश की नब्ज बता रहा होगा, तो स्वाभाविक उम्मीदों का भी कुछ हद तक रक्तचाप बढ़ेगा। ये सियासत के नए परिदृश्य हैं, जहां सान्निध्य भी सियासी शरण बन सकता है और रिश्ते किसी मांद की माफिक व्यवहार करने लगेंगे। वर्तमान सत्ता के अंतिम पड़ाव में हिमाचल को कुछ बड़ा नजर तो आना ही है, लिहाजा प्रदेश को नजदीक से देखा जाएगा। कुछ समय बाद राज्यों के मुख्य सचिवों का जमावड़ा जब धर्मशाला में होगा, तो राष्ट्र के संबोधन अपनी भलमनसाहत के साथ शिरकत करेंगे और तब प्रधानमंत्री के सान्निध्य की छतरी छांव बन सकती है। राजनीति में छांव का होना, सत्ता की निशानी है और इस तरह हिमाचल में डबल इंजन सरकार खुद हाजिरी लगाए, तो करिश्मा भी इम्तिहान देगा।
बेशक वर्तमान सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड में डबल इंजन उपलब्धियों का जिक्र करेगी, लेकिन हिमाचल के अधिकार फिर कहीं खुद का निरीक्षण करेंगे। हिमाचल को मोदी ने जो दिया होगा, उसके हिसाब में वर्तमान सरकार की आर्थिक नीति और तमाम बजटीय प्रावधान रहेंगे, लेकिन यहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समांतर मोदी सरकार की पैमाइश भी तो होगी। अटल टनल के उद्घाटन स्थल से निकल कर प्रदेश कहां पहुंचा, यह पौंग व भाखड़ा जलाशय के विस्थापित जरूर पूछेंगे। इंतजार के बादलों से छंटने की उम्मीद करते पंजाब पुनर्गठन के अधिकार हों या प्राकृतिक संसाधनों के बदले वित्तीय मदद के खाके में हिमाचल को केंद्र से सदैव उम्मीद रहेगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के औद्योगिक पैकेज तथा ग्रामीण सड़क परियोजना से लाभान्वित हिमाचल का भविष्य आज भी उन्हें याद करता है। इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्र की अहम भूमिका में नड्डा-अनुराग को जिम्मेदारियां तो मिलीं, लेकिन प्रदेश को अधिकार नहीं मिले। हिमाचल के पर्यटन, परिवहन तथा कनेक्टिविटी को कंेद्र से प्रोत्साहन चाहिए और इसके लिए एक अदद वित्तीय पैकेज या रेल विस्तार पैकेज की दरकार रहेगी। चुनावी वर्ष में अपना वर्षफल ढंूढ रहा हिमाचल प्रधानमंत्री के सान्निध्य में कितना आगे बढ़ता है, यह इम्तिहान अभी बाकी है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल



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