तपोवन सत्र की मुंह दिखाई में
हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन या तपोवन सत्र अपनी गरिमा में राजनीतिक मुंह दिखाई भी करता है
हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन या तपोवन सत्र अपनी गरिमा में राजनीतिक मुंह दिखाई भी करता है और अगर इसके आलोक में प्रदेश के विषय पढ़े जाएं, तो यह सत्ता का संतुलन है या ऐसी माटी की गंध, जो शिमला के चौबारे नहीं सूंघ पाते। जयराम सरकार अपने अंतिम पड़ाव में रिपोर्ट कार्ड के साथ शेष काल अवधि की महत्त्वाकांक्षा को संवारती रही, तो विपक्ष ने खुद को साबित करते मजमून ढूंढ लिए। कांग्रेस के प्रदर्शन में जितना गुलाल उड़ा, उसके रंग बताते हैं कि पार्टी के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कितनी परछाइयां हैं, फिर भी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की भूमिका में मुद्दे इस बार सरकार को अग्निपरीक्षा में डालते हुए दिखाई दिए। विपक्ष की पेशकश में स्वाभाविक आक्रोश था, लेकिन सदन के भीतर कार्यवाही और चर्चा के भीतर संवाद कायम रहा। इसीलिए छोटे से शीतकालीन सत्र ने सदन के 28 घंटे सींच दिए। यह दीगर है कि सदन के बाहर सुनाने को बहुत कुछ था और पहले से अंतिम दिन तक चलता रहा घटनाक्रम प्रदेश की हवाओं का घर्षण तथा सत्ता की अदाओं के स्पर्श के बीच मुकाबिल रहा। प्रदेश के कई पक्ष सड़कों से होते हुए विधानसभा परिसर तक पहुंचे, तो बेतकल्लुफ मुलाकातों में कुछ कवच टूटे और इसी कड़ी में सामान्य वर्ग आयोग के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
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