लोकतंत्र के सामने

इसे भले ही विधायकों के लोकतांत्रिक अधिकारोंकी तरह देखा जाए, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा येन-केन-प्रकारेण केंद्र के साथ-साथ सभी राज्यों में अपनी राजनीति का परचम लहराना चाहती है।

Update: 2022-09-23 06:15 GMT

Written by जनसत्ता; इसे भले ही विधायकों के लोकतांत्रिक अधिकारोंकी तरह देखा जाए, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा येन-केन-प्रकारेण केंद्र के साथ-साथ सभी राज्यों में अपनी राजनीति का परचम लहराना चाहती है। 2019 में भी कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा ने तोड़कर अपनी तरफ कर लिए थे। अब गोवा विधानसभा मैं 40 सीटों में भाजपा के पक्ष में 28 विधायक हैं।

कांग्रेस के विधायकों का इस तरह भाजपा में जाना मतदाताओं के साथ विश्वासघात है, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर सदन में भेजा था। भाजपा गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बनाकर ऐसी परंपरा शुरू की है जो लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। इस किस्म की हरकतों के बजाय भाजपा को जनमानस से संबंधित समस्याओं को हल करने की कोशिश करनी चाहिए।

पूछा जा सकता है कि क्या कांग्रेस के विधायक अपनी पार्टी को छोड़कर भाजपा में बिना किसी लालच के गए हैं? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनकी सरकार को तोड़ने के लिए भाजपा द्वारा 'एक्शन लोटस' लागू करने का आरोप लगाया है। इसी प्रकार का आरोप पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार को तोड़ने के लिए भाजपा पर लगाया गया है।

जाहिर है, या तो भाजपा के साथ मिल जाओ या फिर भाजपा अपने प्रतिद्वंद्वियों को चैन से नहीं रहने देगी। कल तक जब भाजपा और जद(एकी) नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रहे थे तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार को लगा कि भाजपा शिवसेना के विधायकों को तोड़कर अपनी कठपुतली सरकार बना कर बिहार में भी वही खेल खेल सकती है तो उन्होंने भाजपा को छोड़कर राजद के साथ सरकार बना ली। सरकार से अलग होने के तुरंत बाद भाजपा ने नीतीश कुमार की अगुआई में सरकार की अलग-अलग तरीके से आलोचना करनी शुरू कर दी।

यही खेल पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार के साथ किया जा रहा है। यह सब कुछ स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं। लोकतंत्र की सफलता के लिए सशक्त सत्ता पक्ष तथा उसके तानाशाही रवैये को रोकने के लिए सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। लेकिन भाजपा के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों को देखना अच्छा नहीं लगता।

शायद इसीलिए आजकल विपक्षी पार्टियों को सीबीआइ, आयकर या प्रवर्तन निदेशालय के जरिए परेशान करने के आरोप तेजी से आने लगे हैं। क्या इसी डर से अलग-अलग दलों के नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं? अगर ऐसा होता है तो भारतीय लोकतंत्र में सिर्फ एक ही पार्टी रह जाएगी और बाकी पार्टियों का नामोनिशान खत्म हो जाएगा। फिर क्या वह लोकतंत्र होगा? इस सबका समाधान विपक्ष के द्वारा अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाने में है!

जून 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद चीन जिस तरह लंबे समय तक आक्रामक रवैया अपनाए रहा और सीमा विवाद को परे रखकर संबंधों को सामान्य बनाने की पैरवी करता रहा, वह उसकी चालबाजी के अलावा और कुछ नहीं था। चूंकि चीन की कथनी और करनी में सदैव अंतर होता है और वह द्विपक्षीय संबंधों को मनमाने तरीके से परिवर्तित एवं परिभाषित करता रहता है, इसलिए भारत को सुनिश्चित करना होगा कि चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मई 2020 से पहले वाली स्थिति बहाल हो।

चीन से तब तक सतर्क रहने और सीमाओं पर चौकसी बरतने रहने की आवश्यकता है, जब तक वह सीमा विवाद को सुलझाने के लिए आगे नहीं आता। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए दो दशक से भी अधिक समय से वार्ता जारी रहने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझता, तब तक भारत को 'वन चाइना पालिसी' के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करने से इनकार करना चाहिए।

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