बरगद काटे तो हमें बबूल मिले
सवाल यह नहीं था कि काटना क्या है, जवाब यह तलाश करना था कि उगाना क्या है
सवाल यह नहीं था कि काटना क्या है, जवाब यह तलाश करना था कि उगाना क्या है। काटने का रेला कुछ इस कद्र चला कि नवनिर्माण की योजनाओं के अंदेशे में वर्षो से साया बांटते खड़े दरख्त काट दिए गए। सड़क बनने से पहले वह हरियाली से श्रीविहीन हो गई। पहाड़ों की कल्पना अब आपको ऊंची चोटियों से झूमते हुए वृक्षों से नहीं भरती। अनाथ और रुंडमुंड चोटियों से चौंका देती हैं, जो अब वर्षो अपनी बेनूरी पर रोती रहेंगी। आठवीं पास व्यक्ति से उनहत्तरवें वर्ष के बारे में पूछा तो उसने उसे इकहत्तर बताया क्योंकि अवसर राजनीति के महानायक के उनहत्तरवें जन्मदिन को मनाने का था और यार लोग बता रहे थे कि उन्हें इकहत्तर वर्ष पहले मां नर्मदा ने सपने में आकर कहा था कि तुम्हें हम सब नदियों का उद्धार करना है। इन्हें पुण्य, पवित्र, स्वच्छ सलिला बनाना है। न जाने कितने हज़ार करोड़ रुपए इन नदियों की स्वच्छता की तलाश में बह गए। केवल राम तेरी गंगा ही मैली नहीं हो गई, ये सब नदियां आपका कूड़ा-कचरा समेटते हुए गंदे नालों में तबदील हो गईं। बिन बादल बरसात उनकी रौद्रता देख कर मुट्ठी भर संत सींचेवाल और उनके अनुयायियों की परेशानी बढ़ गई कि भाई किस काली बेईं को पुण्य पवित्र बनाएं? यहां इसे स्वच्छ करते हैं तो वहां से मैले का उद्दाम ज्वार आगे बढ़ता है और उसके साथ बढ़ती है प्रदूषण की सौगात सी महामारियां।