एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम से कैसे अर्थव्यवस्था को मिल रही है तेज गति
भारत के वस्त्र समेत तमाम स्थानीय उत्पाद आरंभिक सदियों से लेकर 17वीं-18वीं सदी तक यूरोपीय मनोविज्ञान पर इस तरह प्रभाव जमाए रखे कि प्रत्येक कालखंड में पश्चिमी बुद्धिजीवी किसी न किसी तरह का विलाप करते दिखे
डा. रहीस सिंह।
भारत के वस्त्र समेत तमाम स्थानीय उत्पाद आरंभिक सदियों से लेकर 17वीं-18वीं सदी तक यूरोपीय मनोविज्ञान पर इस तरह प्रभाव जमाए रखे कि प्रत्येक कालखंड में पश्चिमी बुद्धिजीवी किसी न किसी तरह का विलाप करते दिखे। ऐसे अनेक तथ्य हैं जो भारतीय कला और शिल्प उद्योग से जुड़ी महानता को दर्शाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लिए जब 'वोकल फार लोकलÓ की अनिवार्यता पर बल दिया तो अकस्मात इतिहास के पन्ने मस्तिष्क के पटल पर पलटते गए जहां भारत के विकास में स्थानीयता का अमूल्य योगदान संरक्षित है।
हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर प्रदेश के स्थानीय अथवा देशज उत्पादों का अपग्रेडेशन, मार्केटिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग कर देश-विदेश के बाजारों से जोडऩे के उद्देश्य से 'एक जनपद, एक उत्पादÓ (ओडीओपी) कार्यक्रम की शुरुआत की। आज आप देख सकते हैं कि ओडीओपी कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के बहुत से स्थानीय उत्पाद दुनिया के बाजारों से जोडऩे के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एवं रोजगार में एक नया आयाम जोडऩे में तो सफल ही हुआ है। इसकी सफलता, संभावना और इसमें निहित भारतीय सेंटीमेंट्स को देखते हुए ही प्रधानमंत्री ने इससे अन्य राज्यों को भी प्रेरणा लेने की सलाह दी है
सांस्कृतिक विकासक्रम में भारत ने अपनी संस्कृति और अध्यात्म की एक वृहत परंपरा का विकास तो किया ही, साथ ही ज्ञान, विज्ञान, कला तथा उद्यम की ऐसी शैलियों का भी विकास किया जो भारत की विशिष्ट पहचान बनीं। इन शैलियों का उद्भव देशज था, लेकिन पहुंच राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय। उद्यम एवं कला की ये स्थानीय शैलियां इतना मजबूत आधार रखती थीं कि भारत में नगरीय क्रांतियों को व्यापक आधार देने और गांवों को रिपब्लिक की हैसियत तक ले जाने में सफल रहीं। शायद यही कारण है कि बाहरी आक्रांताओं ने उत्पादन की इन स्थानीय तकनीकों व शैलियों को नष्ट कर दिया और भारत के गांवों पर आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश की। आजादी के बाद इसकी आवश्यकता थी कि पुन: देशज उत्पादों को एक व्यापक आधार दिया जाए, ताकि राजनीतिक स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाते हुए आर्थिक स्वतंत्रता का ले जाया जा सके। महात्मा गांधी ऐसा ही चाहते थे। उनकी आर्थिक परिकल्पना का यही आधार था। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। प्रधानमंत्री के स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्टैंडअप इंडिया के साथ इसकी आधारभूत शुरुआत हुई जिसे 'वोकल फार लोकलÓ मंत्र ने एक नया आयाम देने का कार्य किया।
एक और बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है, वह यह कि अपनी माटी, मां का दिया हुआ मोटा कपड़ा और मोटे अनाज की रोटी ने ही भारत को पूरी तरह से गुलाम नहीं होने दिया। आज की विश्व व्यवस्था और बाजार की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए यह आवश्यक हो चुका है कि देशज और पारंपरिक कलाओं, शिल्पों व उत्पादों को भारतीयों के सेंटीमेंट्स से जोड़ते हुए आधुनिक तकनीक व कौशल से संपन्न कर गुणवत्तापूर्ण प्रतिस्पर्धी बनाया जाए। यह भारत की मौलिक विशेषता के अनुकूल तो है ही, लेकिन कोविड जैसी वैश्विक आपदा ने हमें यह सिखा दिया है कि इकोनमी का यह माडल भारतीय लोकजीवन के निकट होने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता व खुशहाली की बुनियादी विशेषताओं से भी संपन्न है।
बहुत से अध्ययन यह बताते हैं कि हमारी स्थानीय आर्थिक ईकाइयां समर्थ न होतीं तो मांग और पूर्ति की स्थानीय चेन टूट जाती। यदि ऐसा होता तो न केवल अर्थव्यवस्था डिप्रेशन की ओर बढ़ जाती, बल्कि बेरोजगारी और भुखमरी का संकट नई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां खड़ी कर देता। लेकिन इन विशेषताओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काफी पहले ही समझ लिया था। यही वजह है कि उन्होंने वर्ष 2018 में ही यूपी दिवस के अवसर पर 'वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्टÓ (ओडीओपी) कार्यक्रम को अपने इकोनमिक माडल में इसे विशेष स्थान प्रदान कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर, प्रतिस्पर्धी, नवोन्मेषी, धारणीय तथा समावेशी बनाने की दिशा में आगे बढऩे का निर्णय लिया।
ओडीओपी कार्यक्रम क्लासिकल इकोनमिक माडल के नजरिए से देखने से भले ही कुछ खास न लगे, लेकिन इसकी अपनी विशेषताएं हैं जो कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। ओडीओपी का मूल सरोकार भारतीय भावनाओं से है, आत्मनिर्भर स्थानीय अर्थव्यवस्था की स्थापना से है, ग्रामीण रोजगार से है और इसके साथ-साथ पारंपरिक शिल्प व उत्पादों के पुनरुद्धार से और अंत में मार्केट मैकेनिज्म से है।
ओडीओपी कार्यक्रम की सफलता के लिए जरूरी था कि उत्पादों को मार्केट मैकेनिज्म से जोड़ा जाए। इसके लिए फैसिलिटेशन, मार्केटाइजेशन यानी डिजाइनिंग, पैकेजिंग, ब्रांडिंग की जरूरत थी। किसी भी उत्पाद के लिए बाजार में स्पेस निर्मित करने के लिए क्वालिटी आफ स्टैंडर्ड की जरूरत होती है। इसके लिए उत्पाद का सर्टीफिकेशन जितनी बड़ी संस्था से होता है उत्पादों की साख उतनी अधिक होती है। उत्पाद की साख जितनी अधिक होती है, उसकी बाजार में मांगवृद्धि भी उसी अनुपात में अधिक होगी। लेकिन इसके साथ-साथ ब्रांडिंग, फैसिलिटेशन, प्रोमोशन और वैल्यू एडीशन भी आवश्यक होता है। इन सभी पहलुओं पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मिशन मोड में काम किया।
ध्यान रहे कि आज की बाजार अर्थव्यवस्था में 'हाउ टू प्रोड्यूसÓ उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि 'हाउ टू प्रेजेंटÓ है। इसलिए ब्रांड की डिजाइनिंग और मार्केटिंग बेहद निर्णायक कारक बन जाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ब्रांड की डिजाइनिंग और तकनीकी अपग्रेडेशन के लिए उच्चस्तरीय संस्थानों के साथ समझौता किया गया। एक्सपोर्ट, ब्रांडिंग और प्रमोशन की जिम्मेदारी इ-कामर्स कंपनियां को दी गई है कि ताकि ब्रांड में वैल्यू एडीशन हो सके।