बच्चों के विकास में कितना सहायक होगा चाइल्ड बजट
मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जेंडर के बाद अलग से चाइल्ड बजट की घोषणा की है
बजट में नवाचार करते हुए मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जेंडर के बाद अलग से चाइल्ड बजट की घोषणा की है. जेंडर की तरह चाइल्ड बजट की अवधारण भी विभिन्न विभागों द्वारा संचालित योजनाओं को एक छतरी के नीचे लाने की है. इससे बच्चों पर खर्च की जाने वाली राशि चाइल्ड बजट में अलग दिखाई पड़ जाएगी.
बजट की परंपरागत व्यवस्था में यह पता ही नहीं चलता था कि सरकार बच्चों के विकास पर कुल कितनी राशि खर्च कर रही है. बाल श्रमिक के पुनर्वास से लेकर मृत्यु दर में कमी लाने तक सरकार हर साल करोड़ों रूपए खर्च करतीं हैं, लेकिन समस्या जस की तस दिखाई देती है. अलग से चाइल्ड बजट इन पुरानी समस्याओं पर कितना काबू पा सकेगी इसके परिणाम के एक दशक से पहले सामने नहीं आएंगे.
मध्यप्रदेश से पहले छत्तीसगढ़ में लागू है चाइल्ड बजट की व्यवस्था
चाइल्ड बजट का यह कांसेप्ट देश के कुछ राज्यों में पहले ही लागू किया जा चुका है. इन राज्यों में छत्तीसगढ़ भी एक है. छत्तीसगढ़ से पहले चार अन्य राज्य ने भी इस कांसेप्ट को लागृ किया था. वे केरल,असम,बिहार और कर्नाटक हैं. चाइल्ड बजट यूनीसेफ की उस योजना का हिस्सा है, जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य और शैक्षिक विकास को सतत विकास लक्ष्य (संस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स- एसडीजी) में शामिल किया गया है.
छत्तीसगढ़ ने भी 2030 तक के लिए अपने सीजी एसडीजी विजन में समाहित किया है. अब मध्यप्रदेश ने भी इस दिशा में पहल की है. दरअसल देश में जीएसटी की व्यवस्था आने के बाद राज्यों के पास लोगों को रियायतें देने के ज्यादा अवसर मौजूद नहीं है. बजट को आकर्षक बनाने के लिए राज्य नए-नए प्रयोग करते दिखाई देते हैं. मध्यप्रदेश जीएसटी की व्यवस्था की लागू होने से पहले जेंडर बजट का कांसेप्ट बजट में शुरू किया था.
जेंडर बजट में हैं 28 विभागों की योजनाएं
जेंडर बजट की यह व्यवस्था वर्ष 2007-2008 के वित्तीय वर्ष से शुरू की गई थी. जो अभी भी जारी है. जेंडर बजट की व्यवस्था सरकार के तेरह विभागों द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं से की गई थी. अब विभागों की यह संख्या बढ़कर 28 हो गई है. इसमें दो श्रेणी की योजनाओं को रखा गया है. पहली श्रेणी में ऐसे कार्यक्रम शामिल किए गए जिनमें शत-प्रतिशत बजट प्रावधान महिलाओं और बालिकाओं के लिए हैं. दूसरी श्रेणी में उन कार्यक्रमों को रखा गया जिन पर बजट का तीस प्रतिशत हिस्सा महिलाओं पर खर्च किया जाता है.
चाइल्ड बजट में हैं 19 विभागों की योजनाएं
अगले वित्तीय वर्ष के लिए आज विधानसभा में पेश किए गए बजट में जेंडर बजट की तर्ज पर ही चाइल्ड बजट का विवरण दिया गया. चाइल्ड बजट में खेल एवं युवक कल्याण विभाग की अधिकांश योजनाओं को रखा गया है. इसमें खिलाडियों को उपलब्ध कराई जाने वाली छात्रावास सुविधा और खेल प्राधिकरण का अनुदान भी रखा गया है.
ओलंपिक 2024 के लिए खिलाड़ी तैयार करने पर इस वित्तीय वर्ष में खर्च की जाने वाली राशि भी चाइल्ड बजट में रखी गई है. बाल श्रमिकों के सर्वेक्षण के लिए श्रम विभाग द्वारा चलाई जाने वाली योजना भी है. कुल 19 विभाग की योजनाओं को चाइल्ड बजट में शामिल किया गया है. ये सारी वे योजनाएं हैं जो पहले से चल रही हैं.
बजट का ही हिस्सा है चाइल्ड बजट
चाइल्ड बजट को सिर्फ नवाचार की माना जा सकता है. जेंडर बजट हो या चाइल्ड बजट वित्त मंत्री के बजट भाषण में इसे ज्यादा जगह नहीं मिलती. बजट भाषण में तो विभाग की योजनाओं को ही बताया जाता है. चाइल्ड बजट उस तरह से भी विधानसभा में पेश नहीं होता,जिस तरह कभी संसद में आम बजट से अलग रेल बजट या फिर संचार विभाग का बजट पेश किया जाता था.
संचार विभाग का अलग से बजट पेश किए जाने की व्यवस्था अस्सी के दशक में ही समाप्त हो गई थी. अलग से रेल बजट पेश करने की व्यवस्था वर्ष 2014 के बाद केन्द्र में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने समाप्त कर दी. रेल बजट भी अब आम बजट में ही पेश कर दिया जाता है.
चाइल्ड बजट से कैसे काबू में आएगा कुपोषण
चाइल्ड बजट के बाद बच्चों को कुपोषण से बचाना गंभीर चुनौती बना रहेगा? राज्य विधानसभा में बजट के एक दिन पहले प्रस्तुत हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कुपोषित बच्चों की गंभीरता को भी बताया गया है. अटल बाल आरोग्य मिशन के जरिए कुपोषण कम करने की कोशिश सरकार कर रही है. अभी भी 42 प्रतिशत से अधिक बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन सामान्य से कम है.
नौ प्रतिशत से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं. पिछले वित्तीय वर्ष में कुपोषण रोकने के लिए चलाए गए दस्तक अभियान में 79 हजार से अधिक बच्चे पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती कराए गए. चुनौती बच्चों को स्कूल में रोक कर रखने की भी है. राज्य में हर साल चार प्रतिशत से अधिक बच्चे प्राथमिक स्तर के बाद ही पढ़ाई छोड़ देते हैं.
माध्यमिक स्तर के बाद भी लगभग इतने ही प्रतिशत बच्चे आगे पढ़ाई नहीं करते. बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए सरकार मिड डे मील भी दे रही और ड्रेस भी. इसके बाद भी बच्चे शत-प्रतिशत बच्चे हायर सेकेड्री कक्षा में नहीं दिखते. आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे या तो मजदूरी करते हैं या फिर खेती के काम में परिवार का हाथ बंटाते हैं. यह तस्वीर चाइल्ड बजट के बाद भी बदल सकेगी यह बड़ा सवाल है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.