कितनी फीजिबल है भारत के लिए 2 बच्चों की पॉलिसी

2 बच्चों की पॉलिसी

Update: 2021-06-24 16:21 GMT

दो साल पहले आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू (Former Cm Chandrababu Naidu) देश की उल्टी धारा में चलते हुए ऐलान किया कि 2 से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले दंपतियों को सरकार की ओर से इंसेटिव दिया जाएगा. यह सुनकर आम भारतीय के लिए चौंकना स्वाभाविक था. जिस देश में परिवार नियोजन के नाम पर लोगों की ढूंढ ढूंढ़कर नसबंदी की गई हो, जिस देश में आज भी भीड़ जीवन का हिस्सा हो वहां के लिए यह एक आश्चर्यजनक फैसला ही कहा जाएगा. पर चंद्रबाबू नायडू समय से पहले सोचने वाले नायकों में रहे हैं. उन्होंने स्थानीय निकाय चुनाव में दो से ज्यादा बच्चे वालों के उम्मीदवार बनने पर लगी रोक को भी खत्म किया. दरअसल राज्य की जनसंख्या में गिरावट आने के चलते उनका ये सूझबूझ भरा फैसला था. आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि देश में केवल आंध्र ही नहीं है बल्कि करीब 10 राज्य ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या वृद्धि दर ऐसी है जिससे आने वाले दिनों में इन राज्यों की जनसंख्या में गिरावट आनी तय है.


चंद्रबाबू नायडू का यहां उदाहरण देना इसलिए जरूरी हो गया कि अभी हाल ही में देश के 2 प्रदेशों में जिस तरह दो बच्चों की नीति लागू करने पर जोर दिया जा रहा है, वह हमें 70 के दशक के भारत की याद दिलाता है. जब हम दो हमारे दो के नारे घरों की दीवारों पर लिखे होते थे. यानि हम पचास साल पीछे की ओर जा रहे हैं. पहले असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा (CM himanta biswa Sarma) ने दो बच्चों की नीति लागू करने का फैसला किया, इसके बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार भी इस पर विचार कर रही है और जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बातचीत हो रही है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत जैसे देश में अब ऐसा कानून बनाना ठीक रहेगा?
10 सालों में कई राज्यों की जनसंख्या वृद्धि में गिरावट
पिछले 10 साल में कई राज्यों की जनसंख्या में गिरावट आई है. चंद्रबाबू नायडू जैसे कई लोगों का मानना है कहीं ऐसा न हो कि अगले दो दशकों में देश में खाने वाले लोग ज्यादा हो जाएं और काम करने वाले हाथ कम पड़ जाएं'. दरअसल, कई दूसरे राज्यों में भी टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) में गिरावट का ट्रेंड दिख रहा है. वर्तमान में देश का औसत टीएफआर 2.1 है, यानी कि मोटे तौर पर यह माना गया कि प्रति दंपती को दो से ज्यादा (2.1) बच्चे हो रहे हैं लेकिन आंध्र प्रदेश में यह दर अब 1.7 पर आ गई है. देश के करीब 22 राज्यों का टीएफआर रेट नेशनल रेट से कम है. कई राज्यों में टीएफआर के गिरने के से देश में जनसंख्या असंतुलन का खतरा बढ़ रहा है? यह भी का जा रहा है कि देश में जनसंख्या की वृद्धि के विरोधाभासी ट्रेंड से राष्ट्रीय संसाधनों के बंटवारे में कई बड़े राज्यों को नुकसान होना तय है?

राज्य—टोटल फर्टिलिटी रेट
आंध्र प्रदेश—1.7
पंजाब—1.62
गोवा—1.66
तमिलनाडु—1.70
पश्चिम बंगाल—1.77
दिल्ली—1.78
तेलंगाना—1.78
कर्नाटक—1.80
महाराष्ट्र—1.87

चीन से ले सकते हैं सीख
इस कानून के भारत में सफल न होने के पीछे दूसरा सबसे बड़ा कारण है चीन का हाल, चीन ने भी दशकों पहले अपने यहां दो बच्चों की नीति लागू की थी, इसके बाद आज चीन में इसके खतरनाक परिणाम देखने को मिल रहे हैं. अब तो चीन की सरकार ने इस नियम को हटा भी दिया है और 3 बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी है. पति-पत्नी और एक बच्चे की नीति की सबसे ज़्यादा मार महिलाओं पर पड़ी. महिलाओं को मजबूरी में कई बार अबॉर्शन का सहारा लेना पड़ा. बेटों की चाह में नवजात बच्चियां मार दी गईं. बेटे की चाहत के लिए लड़कियां पैदा होते ही उसे लावारिस छोड़े जाने जैसी भी घटनाएं बढ़ीं. यहां तक कि पड़ोस के देशों से महिलाओं की तस्करी भी शुरू हो गई. क्योंकि विवाह के लिए लड़कियां मिलनी मुश्किल हो गईं थीं.

35 साल तक चली इस नीति में चीन को 2015 में ढील देनी पड़ी और 2 बच्चों की नीति शुरू की गई. पर जनसंख्या में गिरावट इतनी तेज हो गई कि अब चीन 3 बच्चों की पॉलिसी लेकर आया है. चीन में संपन्नता बढ़ने , लाइफस्टाइल बदलने के बाद जो काम वहां के कड़े कानून नहीं कर सके उसे सुधरती इकॉनमी ने कर दिखाया. अब तैयार होती बूढ़ों की फ़ौज देखकर घबराए चीन ने नीतिगत बदलाव किया और उन्हें कम से कम तीन बच्चें पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है.

90 के दशक में भारत में भी कुछ राज्यों ने लागू किया था ये कानून
वहीं दो बच्चों वाले कानून जिन पर आज बहस हो रही है वह पहले से ही देश के कई राज्यों में मौजूद है. राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों में 2 से अधिक बच्चा पैदा करने वालों को पंचायत चुनाव में उम्मीदवार बनने का हक नहीं है. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो दो से अधिक बच्चा पैदा करने वाले परिवारों को सरकारी नौकरियां भी नहीं मिलती.
दरअसल असम पर बहस इसलिए हो रही है क्योंकि बाकी के जिन राज्यों में 2 बच्चों वाले नियम लागू हैं वहां यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि राज्य में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने वालों के लिए दो बच्चों वाले नियम का पालन करना अनिवार्य हो गया है.

यानि जिनके 2 से ज्यादा बच्चे होंगे उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा. हालांकि असम सरकार ने इसमें कुछ छूट भी दी है, जैसे अनुसूचित जाति, जनजाति और चाय बागानों में काम करने वाले आदिवासी मजदूरों को इस कानून में छूट दी गई है. इस कानून पर बवाल इसलिए मच रहा है क्योंकि विपक्ष सवाल उठा रहा है कि असम सरकार यह कानून मुसलमानों को टारगेट करने के लिए लाई है. जबकि सरकार का कहना है कि वह इस कानून को इसलिए लागू करना चाहती है क्योंकि वह राज्य में अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि को कंट्रोल करना चाहती है जिससे गरीबी दर भी कंट्रोल में रहेगी.

वहीं असम के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही कानून लाने की बात हो रही है. दरअसल यूपी में 2022 में विधानसभा के चुनाव हैं, ऐसे में बीजेपी का जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना जिसकी मांग बीजेपी दशकों से करती आ रही है बड़ा संदेश देता है. यूपी के विधि आयोग के अध्यक्ष आदित्यनाथ मित्तल का कहना है कि इस मुद्दे पर 2 महीने के अंदर मसौदा तैयार कर लिया जाएगा और इसके अनुसार 2 से ज्यादा बच्चे वाले दंपति को सरकारी योजनाओं की सुविधा से वंचित होना पड़ेगा.

इस कानून के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं
टू चाइल्ड पॉलिसी के विरोध में सबसे बड़ा तर्क तो चीन को लेकर दिया जा रहा है लोगों का कहना है कि चीन ने अपने यहां इस कानून को लागू किया जिसके दीर्घकालिक परिणाम खतरनाक साबित हुए और अब चीन अपने यहां ज्यादा बच्चे पैदा करने को लेकर प्रचार प्रसार कर रहा है. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इसके विरोध में तर्क दिया जा रहा है कि टू चाइल्ड पॉलिसी अपनाने पर भारत में सेक्स सिलेक्शन जैसी कुरीतियां फिर से बढ़ने लगेंगी और सेक्स रेश्यो के गड़बड़ होने की भी पूरी उम्मीद है. अगर भारत में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू होती है तो जो देश आज युवाओं का देश है कुछ समय बाद वह उम्र दराज लोगों की जनसंख्या से भर जाएगा. यानि यहां युवा कम हो जाएंगे और बुजुर्ग ज्यादा हो जाएंगे जिस समस्या से फिलहाल चीन भी जूझ रहा है.

टू चाइल्ड पॉलिसी के पीछे का राजनीतिक महत्व
बीजेपी हमेशा से मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंतित रही है, उसके कई नेता भारत में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं. इन्हीं नेताओं में से एक असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा भी हैं. 10 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, 'मैं मुसलमानों की समस्याओं को समझ रहा हूं. जिस कदर वह जनसंख्या बढ़ा रहे हैं, हम इतने लोगों को कहां रखेंगे. उनको भी रहने की जगह चाहिए. एएमएसयू और एआईयूडीएफ जैसे संगठनों को जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सोचना चाहिए. वरना एक दिन ऐसा होगा कि कामाख्या मंदिर की जमीन पर लोग बसने आ जाएंगे. हेमंत बिस्व सरमा के इस बयान में साफ संदेश था कि वह जल्द ही जनसंख्या नियंत्रण को काबू करने के लिए कुछ बड़ा कदम उठाने वाले हैं और उन्होंने इसी के तहत टू चाइल्ड पॉलिसी लागू की.

बीजेपी हमेशा से जनसंख्या नियंत्रण कानून को लाने के पक्ष में रही है, हो सकता है कि 2024 लोकसभा चुनाव के लिए यह बड़ा मुद्दा भी बन जाए. उत्तर प्रदेश में इस कानून को लाने के पीछे जनसंख्या नियंत्रण करना तो है ही इसके साथ ही इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाना भी है, क्योंकि इसके जरिए बीजेपी फिर से यूपी का चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान करके लड़ना चाहेगी. सीएए, एनआरसी, राम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दों के बाद अब बीजेपी के पास जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसा मुद्दा ही बचा है जिसे लेकर वह फिर से चुनाव में बढ़त हासिल कर सकती है. उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में अगर उससे पहले प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसी कोई चीज लागू हो जाती है तो बीजेपी अपने वोटर्स के बीच यह संदेश देने में कामयाब हो जाएगी कि वह जो कहती है वह करके दिखाती है.

क्या भारत में सच में हिंदू घट रहे हैं और मुसलमान बढ़ रहे हैं
भारतीय जनता पार्टी और हिंदूवादी संगठनों के नेता अक्सर आपको यह बयान देते मिल जाएंगे कि भारत में हिंदुओं की आबादी कम हो रही है और मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ रही है. इसके पीछे वह कई तर्क देते हैं. लेकिन क्या वाकई में ऐसा कुछ हो रहा है या होने वाला है. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 1951 में हिंदुओं की जनसंख्या भारत में 84 फ़ीसदी थी जो 2011 के जनगणना के अनुसार घटकर 79.8 फीसद रह गई. वहीं मुसलमानों की जनसंख्या इस दौरान 9.8 फ़ीसदी से बढ़कर 14.2 फ़ीसदी हो गई. वहीं अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2007 तक भारत सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा. फिलहाल मुस्लिमों की जनसंख्या में नंबर वन पर इंडोनेशिया है और भारत दूसरे नंबर पर है.
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