काले जादू से निजात
लगातार तीन चुनाव हारने के बाद उसे यकीन हो गया कि उसके आसपास ‘काला जादू’ चल रहा है
लगातार तीन चुनाव हारने के बाद उसे यकीन हो गया कि उसके आसपास 'काला जादू' चल रहा है, वरना वह भी सत्ता के रंगों में रंग रहा होता। काले जादू पर पहले उसे रत्तीभर भरोसा नहीं था, लेकिन जबसे उसने सियासत में करिश्मा देखना शुरू किया, उसे यकीन हो गया कि जो लोग चल रहे, सभी इसी की वजह से चल रहे हैं। वैसे ठीक से चलना 'काला जादू' ही होता जा रहा है। जो ठीक-ठाक ढंग से अपने देश में पा रहे हैं, उन पर व्यवस्था के बजाय किसी न किसी काले साये की मेहरबानी जरूर होती है। शनिवार को सरसों के तेल में चहेरा दिखा रहे काले वस्त्रधारी को देखकर लगा कि हो न हो, इसके आसपास 'काला जादू' चल रहा होगा, मगर वह खुद तलाश में था। पूछा तो कहने लगा, 'काला जादू दिखाने की कला है। जरूरी नहीं काला, काला ही हो, यह सफेद, पीला या नीला भी हो सकता है। अगर इनसानी रंगों में मतभेद पैदा कर सकते हो, तो यकीनन जादू को काला कर सकते हो।' जाहिर है रंगों में मतभेद पैदा करना राजनीति का उद्घोष वाक्य है, तो इस हिसाब से देश में वही चल रहे हैं जो इसे चला सकते हैं। राष्ट्र अब काला जादू को परिवारवाद की बहस में देख सकता है या मान लीजिए कि कुछ काला दिखाने के लिए बहस में काला जोड़ दीजिए। अब वक्त कथनी और करनी का भेद नहीं, बल्कि कहे को इतना जोर दीजिए कि यह काला जादू हो जाए।
कल तो कमाल हो गया। गली में रद्दी का खरीददार गुजरते-गुजरते नमस्कार! मात्र कह कर इतना आकर्षित कर गया, जो किसी सदन के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव से भी कहीं ऊपर था। सोचता हूं, अखबार और रद्दी के बीच अगर काला जादू पकड़ा जाए या इसके बीच ही पता लगा लिया जाए कि आखिर अंतर है कहां, तो अखबार में जगह पाने वालों से कहीं अधिक इसे बनाने वालों के हालात और आचरण सही होते। चमत्कारी तो रद्दीवाला है। एक किलो रद्दी खरीद कर भी न जाने कितने ऐसे हैडिंग व खबरें ले जाता है, जो पाठकों के साथ काला जादू ही तो कर रही होती हैं। हमारा मानना है कि आज की स्थिति में देश को महान बनाने के लिए 'काले जादू' का ही योगदान होगा। नई पीढ़ी को रोजगार के बजाय देश का अलंकार चाहिए, तो यह कार्य 'काला जादू' कर रहा है। 'काला जादू' अगर आ गया, तो कल आप ही नायक होंगे। वरना आज तो गांधी और नेहरू भी मुंह छिपाते घूम रहे हैं। देश इस समय 'काले जादू' की शक्ति का मुआयना कर रहा है, यह मैंने रद्दीवाले से सीखा। उसने मेरे सामने चंद मिनटों में राष्ट्र का इतिहास रद्दी के भाव खरीद डाला। रद्दी में काला जादू या 'काले जादू' की रद्दी में सारा अतीत शून्य हो रहा था। यह देखते ही किसी ने नेहरू-गांधी पर लिखे सारे पन्ने उसे थमा दिए, बदले में उसे मिला नहाने का साबुन। पूरा देश रद्दीवाले को ढूंढ रहा है, ताकि नेहरू-गांधी के पन्ने बेच कर आजादी में मुफ्त के साबुन से नहा लिया जाए। नहा कर मुझे 'काले जादू' के असर से मुक्ति मिल रही थी, क्योंकि नेहरू-गांधी के बोझ से मुक्त एक नया 'नायक' सामने मुस्करा रहा था।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
By: Divyahimachal