युवा आबादी का पूरा फायदा

जब हम पाकिस्तान के निर्माण की बात करते हैं

Update: 2021-12-19 17:59 GMT

हरजिंदर। जब हम पाकिस्तान के निर्माण की बात करते हैं, तो उस जिद और खब्त के बारे में सोचने को बाध्य होते हैं, जिस पर इस मुल्क की नींव डाली गई। वैसे किसी जिद और खब्त की जमीन पर एक मुल्क बना देना अजूबी बात नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के मामले में अजूबी बात यह है कि उसके पास इसके अलावा राष्ट्र-निर्माण की कोई और सामग्री थी ही नहीं। यहां तक कि उसके नेताओं ने इसके लिए कहीं कोई लंबा संघर्ष नहीं किया। अक्सर वे उस अंग्रेज सरकार के साथ ही खड़े दिखाई दिए, जिनसे मुक्त होने के लिए पूरा देश संघर्ष कर रहा था।

लेकिन यही बात हम बांग्लादेश के बारे में नहीं कह सकते। जब तक वह पूर्वी पाकिस्तान था, अतीत और वर्तमान में अपनी शख्सियत को खोजता हुआ एक ऐसा भूभाग था, जिसे बाकी दुनिया तो छोड़िए, खुद पश्चिमी पाकिस्तान के लोग भी तरस खाने लायक तक नहीं समझते थे। वह एक ऐसे उपनिवेश की तरह था, जहां के बाशिंदों को दोयम होने का एहसास तकरीबन हर रोज कराया जाता था। लेकिन कुछ ही समय में जब इसी भूभाग ने अपनी इस पीड़ा के एहसास को राजनीतिक चेतना में बदला, तो मुक्ति के रास्ते खुलने लगे। इस राजनीतिक चेतना को एक स्वयंभू राष्ट्र में बदलने के लिए जिस लंबे धैर्य और संघर्ष की जरूरत थी, वह भी इस मुल्क के इतिहास का हिस्सा बनी।
पचास साल पहले इस तरह जो बांग्लादेश बना, उसकी मानसिकता उस पाकिस्तान से पूरी तरह अलग थी, जो कभी अपने आप को इस भूभाग का आका मानता था। पाकिस्तान पूरी तरह से जिस भारत-विरोध से ग्रस्त है, बांग्लादेश एक संघर्ष के बल पर ही उससे पूरी तरह मुक्त हो गया। बांग्लादेश की मुक्ति में भारत ने भी पूरा और बहुत बड़ा सहयोग दिया, लेकिन यह एक अलग बात है। असल बात यह है कि बांग्लादेश ने 1971 में वह सब पा लिया था, जिस ईंट-गारे के जरिये किसी राष्ट्र की इमारत का निर्माण होता है- एक इतिहास बोध, एक संस्कृति, जिसे ढाई दशक के निरंतर आक्रमणों से बचा लिया गया था, और खुद अपने सपने देखने व मंजिलें तय करने का संकल्प। अब उसे अपने अस्तित्व के लिए किसी दूसरे देश से नफरत करने की जरूरत नहीं थी।
बांग्लादेश ने उस मनोविज्ञान का खात्मा कर देने में कामयाबी हासिल कर ली, जो किसी पाकिस्तान का आधार बनती है। ऐसी मानसिकता को मारना आसान होता है, लेकिन उसके भूत से छुटकारा पाना नहीं। अगर हम बांग्लादेश का पिछले पचास साल का इतिहास देखें, तो यह भूत वहां के लोगों को डराने और सरकारों को गिराने के लिए कई बार लौटता दिखाई देता है। कभी-कभी कामयाब भी होता है। ऐसी घटनाएं कई बार किसी देश की विकास-प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं। फिलहाल हम बांग्लादेश की आधी सदी की विकास यात्रा को देखेंगे, जिसकी दूरी उसने पाकिस्तान की मानसिकता से मुक्त होकर नापी है।
बांग्लादेश विश्व इतिहास के एक ऐसे मोड़ पर और भूगोल के एक ऐसे क्षेत्र में जन्मा था, जहां उसके लिए अपने पैरों पर खड़े होना आसान नहीं था। तीन साल बाद ही वहां भयानक अकाल पड़ा था और भारत समेत दुनिया भर की मदद के बाद ही वहां हालात सामान्य बनाए जा सके थे। बाकी की कसर वहां के समुद्री तटों से टकराने वाले तूफानों ने निकाल दी थी। यही वह समय था, जब भारी संख्या में वहां से आबादी ने भारत की ओर पलायन किया। इन 'बांग्लादेशी घुसपैठियों' के नाम पर भारत में खासी राजनीति भी चली, आंदोलन भी हुए और सरकारें भी बदलीं। यह बात अलग है कि इस नाम पर जो सरकारें बनीं, वे भी न बड़ी संख्या में उन्हें निकाल सकीं और न ही उनकी आमद को प्रभावी ढंग से रोक सकीं।
एक लंबे दौर तक हम यही मानकर चलते रहे कि हमारे पड़ोस में आर्थिक तौर पर नाकाम एक देश है। और, हम इस अभिशप्त देश की नाकामी का दंश झेलने के लिए बाध्य हैं। कुछ छोटी-मोटी अच्छी खबरें भी आती रहीं। जैसे, वहां माइक्रो-क्रेडिट की अनूठी व्यवस्था विकसित हुई, कुछ संगठनों ने वहां जन-स्वास्थ्य को लेकर बहुत अच्छा काम किया, लेकिन आमतौर पर बांग्लादेश हमारे लिए दया का पात्र बना रहा।
इसी दया-दृष्टि के चक्कर में बहुत से लोग यह देख ही नहीं सके कि वहां कुछ बदलाव भी हो रहा है, और वह भी बहुत तेजी से हो रहा है। इससे पहले कि हम समझ पाते, बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों की दुनिया का एक बड़ा निर्यातक बन गया। दुनिया के कुछ बाजारों में तो उसने चीन को भी पीछे छोड़ दिया। दुनिया में रेडीमेड कपड़ों के जितने भी बड़े ब्रांड हैं, उन सबकी पहली पसंद इस समय बांग्लादेश ही है। वह गारमेंट बाजार में आउटसोर्सिंग का सबसे बड़ा केंद्र बनता जा रहा है।
अपने सस्ते श्रम और युवा आबादी का जिस तरह से बांग्लादेश ने फायदा उठाया, वैसे उदाहरण बाकी दुनिया में कम ही हैं। जिस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम न जाने कब से संघर्ष कर रहे थे, वह इस देश ने कब हासिल कर लिया, हमें पता भी नहीं चला। आज जब एशिया की दो उभरती अर्थव्यवस्थाओं का जिक्र होता है, तो दो ही नाम सामने आते हैं- पहला वियतनाम का और दूसरा बांग्लादेश का। यह भी कहा जाता है कि ये दोनों देश इस समय आर्थिक प्रगति के उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां तीन दशक पहले चीन खड़ा था।
बेशक बांग्लादेश ने जो भी हासिल किया, उसमें वहां हुए आर्थिक सुधारों का बड़ा योगदान है। उसने कई ऐसे बदलाव किए, जिससे आयात करने वाले बड़े देशों से वह मुक्त व्यापार समझौता कर सके। यूरोपीय संघ, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के बाजारों में बांग्लादेश में बने कपड़े बिना कोई सीमा शुल्क चुकाए ही बिक सकते हैं। बांग्लादेश में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश वाली इकाइयां लगाने की भी इजाजत है।
बात सिर्फ आर्थिक तरक्की की ही नहीं है, मानव विकास सूचकांकों में भी यह देश भारत को पीछे छोड़ चुका है। बड़ी बात यह है कि इस मुल्क ने यह सब लगातार धार्मिक कट्टरता से टक्कर लेते हुए हासिल किया है। बांग्लादेश ने साबित किया कि सांप्रदायिक कट्टरता से टकराते हुए ही विकास के रास्ते पर बढ़ा जा सकता है। इसीलिए, आज का बांग्लादेश अनुकरणीय भी है।


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