By: divyahimachal
एक बार फिर यह सवाल जेहन में उभरता है कि एक भीड़ के हाथों में तलवार, चाकू, लाठी-डंडे और पत्थर कहां से आ जाते हैं? क्या यह पूर्व नियोजित होता है? यह उप्र के वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़ आदि शहरों में देखा जा चुका है। ऐसा ही संभ्रान्त शहर बेंगलुरु और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी हुआ था। कई और राज्यों के शहर भी लहूलुहान हुए होंगे! सभी का उल्लेख करना संभव नहीं है। आश्चर्य है कि एकदम भीड़ जमा हो जाती है और उनके हाथों में हथियारनुमा हमलावर उपकरण होते हैं। भीड़ सार्वजनिक बसों पर पथराव करने लगती है। कितना नुकसान होगा और कुछ जानें भी जा सकती हैं, भीड़ का यह सरोकार बिल्कुल नहीं होता। भीड़ अंधाधुंध हमले करती है। निजी वाहनों को भी नहीं छोड़ा जाता। उन वाहनों में कोई बीमार वृद्ध, नवजात शिशु और दूसरे परिजन भी हो सकते हैं। भीड़ की कोई दलील नहीं होती कि वह हमलावर क्यों है? एकदम हिंसा भडक़ने का सबब क्या है? यदि कोई सांप्रदायिक वजह है, तो उसे संवाद के जरिए हल किया जा सकता है। आश्चर्य है कि ऐसी हिंसा, जो दंगों में भी तबदील हुई है, ईद या मुहर्रम अथवा राम नवमी, हनुमान जयंती आदि हिन्दू त्योहारों पर ही क्यों भडक़ती है? देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में ऐसी गुमनाम, अचानक भीड़ ने ऐसी हिंसाएं फैलाई हैं। सांप्रदायिक दंगे तक भडक़े हैं। लोगों के घरों, छतों पर लोहे की रॉड और पत्थर का जमावड़ा बरामद किया गया है। संदिग्ध अपराधियों को जेल तक भेजा गया है, लेकिन फिर ऐसी संगठित और प्रायोजित भीड़, हथियारों समेत, सामने आई है और उपद्रव मचाया गया है। मुसलमानों का मुहर्रम त्योहार अभी गुजरा है।
उसी दिन राजधानी दिल्ली के नांगलोई इलाके में एक भीड़ ने तलवारें नचाईं, लाठी-डंडे चलाए, चाकू भी दिखाए और खूब पथराव किया। हमले में एक पुलिस अधिकारी इतना घायल हो गए कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। पुलिस ने 35 उपद्रवियों को हिरासत में लिया है और तीन प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। इस हमले का कारण कमोबेश हमें तो समझ में नहीं आया, क्योंकि किसी ने भी इस्लाम-विरोधी, मुहर्रम के मद्देनजर या मुस्लिमों के पैगम्बर साहिब के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी। मुहर्रम के दिन ही ताजिया वाले हिन्दू शैव कांवडिय़ों से क्यों टकराए? क्यों भिड़े? वहां दंगा भडक़ते हुए बच गया। आखिर यह हिन्दू-मुसलमान टकराव कब तक चलेगा? हमलावर भीड़ हर मौके पर इतना गुस्से-आक्रोश में और नफरती भाव के साथ सामने क्यों आती है? उसी झोंक में वह हमले करती है। संविधान, कानून और देश ने उन्हें भी समान मौलिक अधिकार और संसद-सत्ता में स्थान दिए हैं। भारत सरकार में वरिष्ठ नौकरशाह और वैज्ञानिक भी मुसलमान हैं। विश्वविद्यालयों के कुलपति भी मुसलमान हैं। देश के राष्ट्रपति भी मुसलमान रहे हैं। फिर भीड़ वाले चेहरे भारत-विरोधी, हिन्दू-विरोधी क्यों हैं? धार्मिक आजादी का अधिकार मुस्लिमों को है, तो हिन्दुओं समेत अन्य समुदायों को भी है।
फिर यह त्योहारों के मौकों पर ही दंगाई हरकतें क्यों की जाती हैं? इन सवालों पर हमारी खुफिया एजेंसियों को भी मंथन करना चाहिए। कमोबेश राजधानी दिल्ली समेत तमाम संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण शहरों और स्थलों की खुफिया जानकारी होनी चाहिए। भीड़ कहां से आ सकती है, उनके पास हथियार कहां से आते हैं, कौन से संगठन भीड़ को प्रायोजित कर रहे हैं, इनकी सम्यक जानकारी खुफिया एजेंसियों को होनी चाहिए। यदि यह संभव नहीं है, तो देश किसी संभावित साजिशों के हमले से कैसे सुरक्षित रह सकता है? मुहर्रम के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव-क्षेत्र वाराणसी में भी ऐसा ही उपद्रव मचाया गया। उसमें करीब 50 लोग घायल हो गए। यदि भीड़ ऐसे ही हमले करती रही, तो भारत में अराजकता भी फैल सकती है, जिसके अंतरराष्ट्रीय फलितार्थ हो सकते हैं। भीड़ और हिंसा के फलक व्यापक हैं तथा मंसूबे भी संदिग्ध हैं।