जोखिम का तापमान
प्रकृति के चक्र के मुताबिक देखें तो साल के इन महीनों को मौसम बदलने का दौर माना जाता है। ठंड पूरी तरह खत्म होने के बाद मौसम में गर्मी बढ़ने लगती है और इसे एक स्वाभाविक बदलाव माना जाता है।
Written by जनसत्ता: प्रकृति के चक्र के मुताबिक देखें तो साल के इन महीनों को मौसम बदलने का दौर माना जाता है। ठंड पूरी तरह खत्म होने के बाद मौसम में गर्मी बढ़ने लगती है और इसे एक स्वाभाविक बदलाव माना जाता है। लेकिन इस साल मार्च के आखिरी दिनों से ही तापमान में जिस तरह की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है, उसका रोजमर्रा के जीवन पर असर पड़ने लगा है।
खासतौर पर राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में पिछले कुछ दिनों से जैसी गर्मी पड़ रही है, उसने आने वाले वक्त को लेकर चिंता पैदा की है। हालत यह है कि अप्रैल के शुरुआती दिनों में ही दिल्ली में तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज किया जा रहा है। मौसम विभाग ने आशंका जताई है कि इस महीने में दिन का तापमान सामान्य से अधिक हो सकता है और लू के थपेड़े भी लोगों को परेशान कर सकते हैं।
हालांकि बीच-बीच में तेज हवाओं की वजह से तापमान में एक-दो डिग्री सेल्सियस की गिरावट आ सकती है, मगर चूंकि अगले कुछ दिनों तक मौसम शुष्क रह सकता है, इसलिए लू की स्थिति संभव है। इस वजह से मौसम विभाग ने दिल्ली सहित समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पीली चेतावनी जारी की है।
मौसम विभाग के मानकों के मुताबिक देखें तो भीषण गर्मी की स्थिति तब मानी जाती है, जब तापमान में सामान्य के मुकाबले 6.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाती है। इस आकलन के आधार पर मौसम में मौजूदा उतार-चढ़ाव के तहत दिल्ली का तापमान सामान्य के मुकाबले चार से नौ डिग्री तक ज्यादा हो जा सकता है। मसलन, रविवार को दिल्ली के औसत तापमान में सामान्य से छह डिग्री ज्यादा यानी 39.4 डिग्री सेल्सियस वृद्धि दर्ज की गई।
जहां एक डिग्री के हेरफेर से मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हो जा सकता है, वहां छह डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि के बाद के असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। यों इसके संकेत मार्च महीने में ही सामने आ गए थे, जब पारा चढ़ने की वजह से देश भर में कई जगहों पर लू की स्थिति बन गई थी। लेकिन अब दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में तापमान के स्तर और जनजीवन पर पर पड़ने वाले इसके असर ने मौसम विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है। स्वाभाविक ही इस स्तर की गर्मी को जोखिम का मामला माना जा रहा है और आम लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।
यों मौसम की अपनी गति होती है और थोड़े अंतराल के साथ यह अपना चक्र पूरा करता ही है। लेकिन कई बार यह पर्यावरण में अलग-अलग कारणों से होने वाले उतार-चढ़ावों से भी प्रभावित होता है। इस साल तापमान में अप्रत्याशित बदलाव का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि समूचे देश में 8.9 मिलीमीटर वर्षा ही दर्ज की गई, जो इस लंबी अवधि की औसत वर्षा यानी 30.4 मिलीमीटर से इकहत्तर फीसद कम थी।
इसका असर पश्चिमी विक्षोभ पर भी पड़ा। नतीजतन, ठंडी हवाएं नहीं आ सकीं। इसमें किस स्तर तक हेरफेर हुआ, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले एक सौ बाईस साल में इस वर्ष के मार्च को सबसे गर्म महीने के तौर पर दर्ज किया गया। निश्चित रूप से प्रकृति की जटिल संरचना में मौसम में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव अब भी अध्ययन का विषय है, लेकिन इतनी लंबी अवधि के बाद एक बार फिर इस स्तर के तापमान ने यह रेखांकित किया है कि मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों पर दुनिया को गौर करने और उसे लेकर सचेत रहने की जरूरत है।