ईरान के साथ डील और सऊदी अरब को उत्पादन बढ़ाने पर राजी कर यूरोप ऊर्जा संकट से उबर सकता है
रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के बीच जारी घमासान युद्ध और घबराए पश्चिमी देशों की चिंता के बीच, क्रूड ऑयल (Crude Oil) के दाम 2008 के बाद से सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं
जहांगीर अली
रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के बीच जारी घमासान युद्ध और घबराए पश्चिमी देशों की चिंता के बीच, क्रूड ऑयल (Crude Oil) के दाम 2008 के बाद से सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं. और जब कई देश मास्को (रूस) से तेल के आयात पर पाबंदी लगाने का विचार कर रहे हैं, तब भी इसकी कीमत थमने के आसार नजर नहीं आ रहे. अमेरिकी एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, दिसंबर 2021 तक रूस प्रतिदिन 8 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल का उत्पादन कर रहा था.
इस हिसाब से वह अमेरिका और सऊदी अरब के बाद दुनिया का तीसरा सबसे पेट्रोलियम उत्पादक देश है और पेट्रोलियम निर्यात के मामले में सऊदी अरब के बाद इसका दूसरा नंबर है. रूसी उत्पादन का करीब आधा हिस्सा यूरोपीय देशों को भेजा जाता है और करीब 42 फीसदी हिस्सा एशिया और दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है.
रूसी तेल पर पाबंदी लगाने का असर केवल पश्चिमी देशों पर नहीं होगा
यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए, पश्चिमी देशों द्वारा रूस से तेल खरीदने पर रोक लगाना, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ अंतिम आर्थिक हथियार हो सकता है, लेकिन निश्चित तौर पर यह कहा नहीं जा सकता कि पश्चिमी देशों के इस कदम का क्रेमलिन पर कितना असर होगा. यदि पश्चिमी देश पुतिन के खिलाफ अपने इस अंतिम आर्थिक हथियार का इस्तेमाल करते हैं तो जर्मनी, पोलैंड, ऑस्ट्रिया और ग्रीस पर इसका बुरा असर पड़ेगा क्योंकि इन देशों में रूस करीब 60 फीसदी निर्यात करता है. यदि ऐसा हुआ तो इन देशों में बिजली की कमी हो जाएगी और यहां के लोग अपने मकान को गर्म नहीं कर पाएंगे. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रूसी तेल के आयात पर पाबंदी लगाई जाती है तो यूरोप में मंदी की स्थिति आ सकती है.
रूसी तेल पर पाबंदी लगाने का असर केवल पश्चिमी देशों पर नहीं होगा, बल्कि एशियाई देशों के लिए भी कठिन हालात पैदा हो जाएंगे (बशर्ते वे पश्चिमी देशों के कदम का साथ दें). इस स्थिति में एशियाई देशों में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिसका स्वाभाविक असर दूसरी आवश्यक वस्तुओं के दाम में पड़ेगा और महंगाई बढ़ेगी. जानकारों का मानना है कि इस एनर्जी क्राइसिस से निपटने का एक तरीका सऊदी अरब जैसे तेल-उत्पादक देशों द्वारा अपना उत्पादन बढ़ाना हो सकता है. यदि पश्चिमी देश ईरान के साथ न्यूक्लियर डील करने में सफल होते हैं तो इस संकट से कुछ हद तक उबरा जा सकता है, क्योंकि तेल टैंकरों से लदे जहाजों के साथ तेहरान निर्यात के लिए तैयार बैठा है.
रूसी गैस पर निर्भरता कम करने के लिए इस हफ्ते यूरोपियन कमीशन ने एक योजना की घोषणा की है. DW के अनुसार, "तेल और गैस की पाबंदियों से रूस को मिलने वाले एनर्जी रेवेन्यू में जबरदस्त नुकसान होगा. लेकिन यूरोपीय नेता भी खुले तौर पर यह स्वीकार करते हैं कि वे रूस के एनर्जी सप्लाई पर निर्भर हैं, इसलिए वे चरणबद्ध तरीके पाबंदी लगाने का तर्क देते हैं." ऐसा लगता है कि पश्चिमी देश स्वयं शामिल होने के बजाए, यूक्रेन को खुद अपनी लड़ाई लड़ते देखते रहना चाहते हैं. वे महज रूसी तेल पर पाबंदी लगाकर यूक्रेन का साथ देना चाहते हैं.