by Lagatar News
Nishikant Thakur
चुनावी मौसम के नजदीक आते ही देश में नफरती भाषणों, यानी हेट स्पीच का सिलसिला फिर शुरू हो गया है. पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मनीष नामक युवक की हत्या के विरोध में आयोजित कार्यक्रम के कथित वीडियो में भारतीय जनता पार्टी के पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा को यह कहते सुना और देखा जा सकता है के 'जहां कहीं भी ये लोग दिखें, तो उनका दिमाग और तबीयत ठीक करने का एक ही तरीका है, और वह तरीका है उनका संपूर्ण बहिष्कार.' वहीं, दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के लोनी से भाजपा के ही विधायक नंद किशोर गुर्जर ने एक सार्वजनिक मंच से कहा कि 'हम लोग किसी को छेड़ते नहीं, लेकिन हमारी बहन-बेटी को कोई छेड़े तो उसे छोड़ते भी नहीं. दिल्ली के अंदर सीएए पर दंगा हुआ, तब ये जिहादी हिंदुओं को मारना शुरू किया, तो आप लोग थे? आपने घर में घुसा दिया? हमारे ऊपर आरोप लगे कि हम ढाई लाख लोग लेकर दिल्ली में घुस गए. हम तो समझाने के लिए गए थे, लेकिन हम पर पुलिस ने मुकदमा कर दिया कि हमने जिहादियों को मारने का काम किया, हम जिहादियों को मारेंगे, हमेशा मारेंगे, सहमत हैं?'
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बावजूद नफरती भाषण देने वाले यति नरसिंहानंद ने हिमाचल प्रदेश के ऊना में धर्म संसद का आयोजन किया, जहां से एक समुदाय के खिलाफ जमकर नफरत भरे भाषण दिए गए. इस दौरान प्रशासन नदारद रहा. यही नहीं, जमानत पर बाहर चल रहे नरसिंहानंद ने खुलेआम जमानत की शर्तों को तोड़ा. वहीं, सीतापुर में भगवा वस्त्र पहने बजरंग मुनी का एक वीडियो 7 अप्रैल को सामने आया था, जिसमें उन्हें यह कहते सुना गया कि 'मैं आपको प्यार से कह रहा हूं कि अगर खैराबाद में एक भी हिंदू लड़की को आपके द्वारा छेड़ा गया तो मैं आपकी बेटी-बहू को बाहर लाऊंगा और उसके साथ बलात्कार करूंगा.' ये तो चंद उदाहरण हैं, यदि इस प्रकार के नफरती लोगों की और नफरती भाषण देने वालों की सूची देखेंगे तो वह काफी लंबी है, जो केवल राजनीति चमकाने और मीडिया की सुर्खियां पाने के लिए इस प्रकार की बातें करते हैं और समाज में विष वमन करके अशांति फैलाना चाहते हैं.
भारत पर मुगलों का पहला सफल आक्रमण 20 जून, 712 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध प्रांत पर किया था. इससे पहले 711 ई. में उसने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था. उसने बलूचिस्तान और मुल्तान में भी सफल अभियान चलाए. बगदाद के गवर्नर हुज्जाज बिन यूसुफ के आदेश पर उसके भतीजे और 17 वर्षीय जवान सिपहसालार मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला करके राजा दाहिर को शिकस्त दी और यहां हुकूमत कायम की थी. उस काल में आज की तरह का लोकतंत्र और अस्त्र-शस्त्र विश्व में किसी के पास नहीं थे. हम जातियों में बटे हुए थे, कस्बाई हुआ करते थे. इसलिए जब जिसने चाहा, हम पर आक्रमण किया, हमें लुटा और हम उसके गुलाम हो गए. हम तब से अब तक एक-दूसरे नीचा दिखाने में लगे हैं और हर वर्ष इस कुंठा को शांत करने के लिए हजारों की संख्या में दोनों (हिंदू-मुसलमान) जातीय हिंसा में अपनी आहुति देते रहते हैं. आज तक कभी हम दोनों ने इस बात को हृदय से स्वीकार ही नहीं किया कि अब तक वे हमारे हो चुके हैं और वह भी भारतीय हैं. उसमें भी कोढ़ में खाज करे मुहावरा चरितार्थ हुआ जब अंग्रजों ने अपना कब्जा भारत पर किया. उसने हमारे बीच की दूरी का भरपूर लाभ उठाया और मैकाले नामक अपने विश्वस्त को यह हिदायत दी कि हिंदू और मुसलमानों का यह आपसी बैर कभी खत्म न हो, उनके बीच की दूरी पटने न पाए, इसके लिए वह ऐसी नीति बनाए जिसके जरिये दोनों रेल की पटरियों की तरह हो –जो चले तो साथ-साथ, लेकिन आपस में मिलें कभी नहीं.
नफरती भाषणों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विजुअल मीडिया का विनाशकारी प्रभाव हुआ है. किसी को भी इस बात की परवाह नहीं है कि अखबारों में क्या लिखा है, क्योंकि लोगों के पास (अखबार) पढ़ने का समय नहीं है. टीवी बहस के दौरान प्रस्तोता की भूमिका का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह प्रस्तोता की जिम्मेदारी है कि वह किसी मुद्दे पर चर्चा के दौरान नफरती भाषण पर रोक लगाए. न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों से निपटने के लिए संस्थागत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है. न्यायालय ने इस मामले में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों पर असंतोष जताते हुए मौखिक टिप्पणी की, 'सरकार मूकदर्शक क्यों बनी बैठी है?' शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने को भी कहा कि क्या वह नफरत फैलाने वाले भाषण पर प्रतिबंध के लिए विधि आयोग की सिफारिशों के अनुरूप कानून बनाने का इरादा रखती है? इस बीच पीठ ने भारतीय प्रेस परिषद और नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्रॉडकास्टर्स (एनबीए) को अभद्र भाषा और अफवाह फैलाने वाली याचिकाओं में पक्षकार के रूप में शामिल करने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने मामलों की सुनवाई के लिए 23 नवंबर की तारीख तय की है.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर को नफरत भरे भाषण का मुद्दा उठाने वाले एक याचिकाकर्ता से कहा कि वह जांच के दौरान उठाए गए कदमों समेत विशेष घटनाओं का ब्योरा दे. प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एसआर भट ने कहा कि शायद आपका यह कहना सही है कि नफरत भरे भाषणों के परिणामस्वरूप पूरा माहौल खराब हो रहा है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शायद आपके पास यह कहने के लिए उचित आधार है कि इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है, लेकिन न्यायालय ने कहा कि किसी मामले का संज्ञान लेने के लिए तथ्यात्मक आधार होना चाहिए. हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक या दो मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है. इस मामले की सुनवाई अब 31 अक्टूबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने जिस प्रकार याचिकाकर्ता की दलीलों को सुनकर संज्ञान लिया है, उससे तो यही लगता है कि ऐसे लोगों के विरुद्ध कुछ न कुछ कार्यवाही तो होगी, लेकिन ऐसे लोग ऊपर तक अपनी पहुंच रखते हैं, इसलिए यह तुरंत विश्वास करना कठिन हो जाता है कि देश में दंगा कराने वालों को कोई सजा भी मिलेगी? जो हमारे आपसी भाईचारे को समय-समय पर खंडित करते रहते हैं. हिंदू हां या मुसलमान, कोई अपने को इस मामले में कमतर नहीं मानता, और परिणाम हम आजादी के पहले और बाद में देख चुके हैं कि हमारा अखंड भारत बार-बार विखंडित होता रहा है. पाकिस्तान, बांग्लादेश उसी नफरत का ही तो प्रतिफल है.
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार के नफरती भाषण जो लोग देते हैं, वे सभी किसी-न-किसी रूप से केंद्रीय सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े हैं. अब इस बात से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने क्या कहा था, उनकी पदोन्नति हो गई. कपिल मिश्रा, नंद किशोर गुर्जर और सांसद प्रवेश वर्मा का नाम भी इस मामले में उल्लेखनीय है. ऐसा इसलिए, क्योंकि कभी हम साथ बैठते थे, अपनापन होता था. इन्हीं सब कारणों से हम दूर हो गए, एक-दूसरे से डरने लगे. आपसी प्यार नफरत में बदल गया. इस दूरी को कौन कम करेगा, यह बड़ा गंभीर विषय है. अब एक ही उम्मीद की किरण दिखाई देती है, वह है सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप. अब बस सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश की प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि मामला इतना गंभीर है कि सामान्यजन से अथवा सत्तारूढ़ दल से किसी प्रकार के सकारात्मक विचार की आशा करना बेमानी ही होगी. देखिए और 31 अक्टूबर तक इंतजार कीजिए.