आठ साल, आठ युग

नरेंद्र मोदी सरकार के आठ साल दरअसल राजनीति के ऐसे युगों में प्रवेश है जो आजादी के बाद का नया तजुर्बा और नया एहसास भी है

Update: 2022-05-31 19:27 GMT

नरेंद्र मोदी सरकार के आठ साल दरअसल राजनीति के ऐसे युगों में प्रवेश है जो आजादी के बाद का नया तजुर्बा और नया एहसास भी है। जाहिर है सबसे पहले आठवें युग की बात करें, तो 2024 के संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत के प्रति आशावान परिस्थितियों में पैमाइश हो रही है। अपने हर अगले कदम की रहनुमाई में भाजपा सरकार का पहरावा जिस तरह बदलता रहा है, उससे न केवल विपक्ष अचंभित रहा है, बल्कि आम जनता के लिए भी इस जीत के एहसास के कई द्वार खुल रहे हैं। जाहिर है ये आठ साल कभी नोटबंदी के नाम पर नया युग खोलते रहे, तो कभी जीएसटी के आधार पर अपने नाम नया युग करते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड काल की आपदा में अवसर ढूंढते हुए भी देश को युग दर्शन की नई चेतना के साथ संबोधित व सम्मोहित करने का तंत्र विकसित कर लिया। इस तरह इन चार युगों के प्रवेश द्वार बनाने के अलावा जो निरंतर आठ सालों की सियासी कवायद में सियासी चकमा देता रहा और इस तरह पिछले सारे युग समेट कर भाजपा एक ऐसी पार्टी बन रही है, जो देश की राजनीतिक भाषा बदल चुकी है।

भाजपा ने एक तो सोशल मीडिया को अपना युग बनाया जबकि अपने प्रचार तंत्र में मुख्य मीडिया का युग भी बदल दिया। इस तरह मीडिया के युग पर सत्ता की छाप बरकरार रखना अगर इम्तिहान है, तो भाजपा इसमें सफलतम प्रदर्शन कर रही है। किसान आंदोलन की बिसात पर विपक्षी मंसूबों पर सेंध लगाना एक ऐसा करिश्मा है जो आधुनिक रणनीति का युग है और इसे साधने का एकमात्र मंत्र नरेंद्र मोदी ही जानते हंै। जिस किसान आंदोलन ने केंद्र के खिलाफ सारा ज्वाराभाटा एकत्रित किया, उसकी ही एक दिन कृषि कानून वापस लेकर हवा निकाल दी गई। यह दरअसल हैरानी का युग भी है, जो कयासों, परंपराओं और राजनीतिक सीमाओं का उल्लंघन करके भी अपराजेय है। इस दौरान नरेंद्र मोदी का अपना भी एक युग है जो हर कार्रवाई को ब्रांड बनाता है। यही वजह है कि पहली बार लाभार्थी सियासत के मोल-तोल पर एक ऐसा तबका बन गया जो मुफ्त का राशन, उज्ज्वला योजना, मुद्रा योजना और बैंक खाते खोलकर शरणागत है।
मोदी शरणम अपने आप में ऐसे युग में प्रवेश करना है, जो दूसरी पार्टियों के नेताओं को घसीट कर अपने पाले में समेट लेता है। ऐसे वक्तव्यों के आक्रमण हो जाते हैं, जो सत्ता के संदर्भों के बजाय विपक्ष की खामियां उजागर करते हैं। यह देश अब केवल एक सरकार की समीक्षा नहीं कर रहा, बल्कि सदियों का हिसाब कर रहा है। मुद्दे आम आदमी के नजदीक न तो महंगाई और न ही बेरोजगारी की चिंता करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र कितना भी बिक जाए, इसकी परवाह राष्ट्र को नहीं है, लेकिन बहुसंख्यक समाज का गौरव कितनी परतें हटा कर हासिल होगा, इस पर राष्ट्रीय बहस के नए-नए मजमून हाजिर हैं। बहरहाल आठ साल के बाद हिमाचल मोदी सरकार के तमगों की मेजबानी कर रहा है, तो यह इस साल मंंे होने जा रहे विधानसभा चुनाव का धरती पूजन भी होगा। जाहिर है आज मोदी आगमन से यह तो साबित होगा कि सत्ता में बने रहने का भाजपाई अंदाज क्या है, लेकिन देखना यह होगा कि यह करिश्मा प्रदेश के लिए कितना उपयोगी रहा। आर्थिक मजबूरियों में हिमाचल के अपने मसले केंद्र सरकार से नीतिगत संबोधन ही नहीं, हकीकत में स्पर्श चाहते हैं। बेशक राजनीतिक स्पर्श में प्रदेश निहाल होगा, लेकिन कर्ज से बेहाल प्रदेश को एक अदद आर्थिक पैकेज चाहिए। बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने औद्योगिक पैकेज देकर बीबीएन जैसी आर्थिक राजधानी हिमाचल को दी, तो मोदी के नाम पर एक सशक्त कनेक्टिविटी पैकेज की दरकार रहेगी।

सोर्स- divyahimachal

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