प्रायोजकों की परवाह नहीं

खेल की दुनिया में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसके बारे में पहले सोचना भी मुश्किल था। शिकायत तो यह रही है

Update: 2021-06-21 03:33 GMT

खेल की दुनिया में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसके बारे में पहले सोचना भी मुश्किल था। शिकायत तो यह रही है कि सारे खेल प्रायोजक कंपनियों की गिरफ्त में चले गए हैँ। खिलाड़ी उनके गुलाम हो गए हैँ। लेकिन इसी बीच हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्हें खिलाड़ियों का इन कंपनियों के भय से बाहर आना माना जा रहा है। गौर कीजिए। हाल में फ्रेंच ओपन टेनिस टूर्नामेंट के दौरान मशहूर महिला खिलाड़ी नाओमी ओसाका ने प्रेस कांफ्रेंस में भाग लेने से इनकार कर दिया। इसके प्रायोजक कंपनियां नाराज हुईं, क्योंकि टूर्नामेंटों के दौरान प्रेस कांफ्रेंस प्रायोजक कंपनियों की बैनर की पृष्ठभूमि में होती है। ओसाका ने खुद को डिप्रेशन से पीड़ित बता कर प्रेस कांफ्रेंस में जाने से मना किया था, लेकिन जब बात बढ़ी तो झुकने के बजाय उन्होंने टूर्नामेंट बीच में छोड़ कर लौट जाना बेहतर समझा। ये कम साहस की बात नहीं थी। अब चल रहे यूरो टूर्नामेंट के दौरान ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब खिलाड़ियों ने बड़े ब्रांड वाले ड्रिंक्स को अपने सामने से हटा दिया।

पुर्तगाल के खिलाड़ी क्रिश्टियानो रोनाल्डो ने प्रेस कांफ्रेंस के समय अपने सामने रखी कोका कोला की बोतल को हटाकर पानी की बोतल लाने की मांग की। जबकि कोका कोला यूरो टूर्नामेंट की प्रायोजक कंपनी है। इस टूर्नामेंट की एक और प्रयोजक गैर-अल्कोहलिक पेय बनाने वाली कंपनी हेइकेन है। लेकिन फ्रांस के खिलाड़ी पॉल पोग्बा ने इस पेय की बोतल को अपनी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपने सामने से हटा दिया। ये सिलसिला यहीं नहीं रुका। उनके बाद इटली के खिलाड़ी मैनुएल लोकातेली ने मैच के बाद की प्रेस कांफ्रेस में कोका कोला की बोतल सामने से हटाते हुए पानी की बोतल लाने की मांग की। ये तीनों इस वक्त के सबसे बड़े खिलाड़ियों में हैं। संभवतः इसीलिए यूरो टूर्नामेंट की आयोजक संस्था यूएफा ने अब तक इन खिलाड़ियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया है। वो ऐसा करेगी करेगी, इसकी संभावना भी नहीं है। तो साफ है कि खिलाड़ी अब कॉरपोरेट स्पॉन्सर्स के नियंत्रण से बाहर आ रहे हैँ। ये कैसे संभव हुआ है अब विशेषज्ञ उसे समझने की कोशिश करेंगे। लेकिन खिलाड़ियों में आया नया आत्म विश्वास स्वागतयोग्य है। इससे खेल को फिर से खेल बनाने में मदद मिल सकती है, जो अभी एक तरह से प्रायोजक कंपनियों का ड्रामा बन कर रह गया है।


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