शिक्षा को खत्म करता दिल्ली सरकार का मॉडल

Update: 2022-09-14 07:44 GMT
हितेश शंकर
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार जिस शिक्षा मॉडल के गुण गाते नहीं थक रही, आखिर वह शिक्षा मॉडल है क्या? दिल्ली के विद्यालयों में शिक्षक सुरक्षित नहीं हैं, छात्र हिंसक गतिविधियां अपना रहे हैं, क्या यही है दिल्ली का शिक्षा मॉडल? क्या इस मॉडल ने शिक्षा के आधारभूत तत्वों को ही खतरे में नहीं डाल दिया है?
अगस्त के आखिरी हफ्ते में सर्वोदय बाल विद्यालय, नंदनगरी में एक बच्चे की शिकायत किए जाने पर कंप्यूटर शिक्षक सनोज कुमार की विद्यालय में घुसकर पिटाई कर दी गई। इसी तरह सर्वोदय बाल विद्यालय, कृष्णा नगर में बाहरी तत्वों ने एक शिक्षक का गिरेबान पकड़ लिया। सितंबर, 2016 में तो सुल्तानपुरी रोड, नांगलोई स्थित सरकारी स्कूल में शिक्षक की हत्या तक कर दी गई। वहीं मदनपुर खादर और मोलड़बंद के सरकारी विद्यालयों में कुछ बच्चों के हिंसक होने की खबरें भी आर्इं। आखिर यह कौन सा शिक्षा मॉडल है जिससे शिक्षक असुरक्षित होते जा रहे हैं? बच्चे गुस्सैल और अभिभावक-सरकार शिक्षा के प्रति संवेदनहीन। इस आक्रोश और असुरक्षा में पिसते शिक्षक शिक्षा की बेहतरी के लिए क्या नवाचार, क्या प्रयोग कर पाएंगे?
आंकड़ों की बाजीगरी का दबाव
दूसरी बात यह है कि शिक्षा मॉडल के नाम पर राजनीति करने के लिए दिल्ली सरकार शिक्षकों और बच्चों पर एक अजीब तरह का दबाव बनाने का काम कर रही है। यदि शिक्षा के नाम पर ही राजनीति करनी थी तो सरकार को शिक्षा केंद्रित विषयों में ध्यान लगाना था, शिक्षकों की सुविधाओं, सम्मान और सुरक्षा में बढ़ोतरी करनी चाहिए थी। क्या दिल्ली सरकार के अधिकारियों को शिक्षकों के प्रति संवेदनशील बनाया गया है? नहीं, इसका उलटा जरूर हुआ है।
दिल्ली सरकार के कई विद्यालयों में आपको लोग यह असलियत बताते मिल जाएंगे कि विद्यालय के साथ राजनीतिक तालमेल के लिए जो कमेटी और प्रमुख बनाए गए हैं, खुद उनका शैक्षिक रिकॉर्ड कैसा है और शिक्षकों के साथ व्यवहार क्या है।
दिल्ली सरकार के विद्यालयों में जाने पर पता चलता है कि स्कूली तन्त्र में सरकारी दादागीरी और आंकड़ों की बाजीगरी के लिए दबाव कैसे बनाया गया है। दसवीं के परिणामों को बेहतर दिखाने के लिए शिक्षकों पर बार-बार मौखिक तौर पर दबाव बनाया जाता है ताकि बच्चे फेल न हों। शिक्षक बच्चों को फेल न करें और आंतरिक मूल्यांकन में अधिकतम अंक दें, इसके लिए बड़ी जद्दोजहद चलती है।
छात्रों की योग्यता पर ढीलापन
पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि बोर्ड के परिणामों में योग्यता सूची में आने के तनाव के कारण बच्चे परीक्षा को दबाव के तौर पर लेते हैं।
इस दबाव को खत्म करने के लिए गहराई और गम्भीरता से काम किया जाना था। जो काउंसलर आए, एनजीओ आए, उन्होंने बच्चों को मजबूत बनाने के बजाय शिक्षा को ढीला करना शुरू कर दिया। यूपीए सरकार में कपिल सिब्बल के प्रभारी मंत्री रहते हुए इस तरह की कोशिशें सबसे ज्यादा हुईं।
आश्चर्य की बात यह है कि शिक्षा में नए कदम उठाने का दम भरने वाली दिल्ली सरकार इसी मिशन को लेकर आगे बढ़ रही है।
आज से 14 वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम आता था कि 'क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं'। आज आप देखेंगे कि आज के बच्चे योग्यता में 15 वर्ष पहले के पांचवीं पास के बच्चे के आसपास नहीं ठहरते, क्योंकि आज सरकार और तंत्र का जोर बच्चों को सिखाने के बजाय पास करते जाने पर है।
दाखिलों पर श्वेतपत्र लाए सरकार
दसवीं के बोर्ड के परिणाम को बेहतर बनाने का खौफ सरकार पर इस कदर छाया है कि नौवीं कक्षा में दाखिले के लिए विद्यालयों को बहुत निर्मम बना दिया गया है। यदि बच्चे आठवीं के बाद टीसी कटाते हैं तो दूसरी जगह नौवीं में दाखिला लेने में पूरे परिवार को नाको चने चबाने पड़ते हैं। इसके अलावा ढीले बच्चों को नौवीं में पहले ही छांट दिया जाता है। यानी इन बच्चों पर काम करने के बजाय उन्हें विद्यालयी प्रणाली से ही बाहर कर देते हैं। यानी जिन बच्चों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, उन्हें धीरे-धीरे स्कूली व्यवस्था से बाहर धकेल दिया जाता है और जो बच्चे अपने बूते कुछ करने का दम रखते हैं, उनकी मेहनत का श्रेय दिल्ली सरकार ले लेती है।
सरकार को दरअसल श्वेतपत्र लाना चाहिए कि नौवीं के दाखिलों की स्थिति क्या है। आठवीं से दसवीं तक जाने वालों के बीच में नौवी में कितने बच्चों की शिक्षा छूटी, प्रदर्शन कैसा रहा और उस कड़ी को मजबूत करने के लिए सरकार क्या कर रही है?
यह सरकार शिक्षा का ढोल बजा रही थी, तो उधर दिल्ली में शराबखोरी बढ़ा रही थी और प्रचार पर पैसा पानी की तरह बहा रही थी। इससे सुधारवादी मॉडल की उम्मीद थी परंतु जब काम देखें और जिस तरह पोल खुली है, उससे लगता नहीं कि ये शिक्षा का भला कर सकते हैं। दरअसल यह ऐसी सरकार है जिसे पहले स्वयं नैतिक शिक्षा की जरूरत है। नैतिकता होगी, तब जाकर आप सामाजिक बदलाव ला पाएंगे।
वरना गाल बजाने से कमाल हो जाते तो सर्कस के जादूगर और जोकर क्या बुरे थे?
@hiteshshankar

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