दृष्टिहीनता की गहरी समस्या

यूक्रेन के बुचा में जन संहार के आरोप पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत ने अपना तटस्थ रुख बनाए रखा

Update: 2022-04-07 05:15 GMT
By NI Editorial
भारतीय विदेश के पीछे आज दृष्टि क्या है? संसद में यूक्रेन संकट पर चर्चा हुई। उसमें विभिन्न दलों ने जो राय जताई, तो इस सवाल का जवाब ढूंढना और जटिल हो जाता है। उस चर्चा का संकेत यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीति चाहे जिस दृष्टि से प्रेरित हो, विपक्षी दलों के पास उससे अलग कोई सोच नहीं है।  
यूक्रेन के बुचा में जन संहार के आरोप पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत ने अपना तटस्थ रुख बनाए रखा। भारतीय प्रतिनिधि ने बिना किसी देश का नाम लिए इस घटना की निंदा की। साथ ही उन्होंने इस कांड की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की। यह रुख यूक्रेन संकट पर आरंभ से लिए अपनाए गए नजरिए के अनुरूप ही है। बुचा का मामला विवादित है। इस बारे में यूक्रेन और रूस ने परस्पर विरोधी दावे किए हैँ। इसलिए इसे एक समझदारी भरा रुख कहा जा सकता है कि पहले सही तथ्य सामने लाने की बात की जाए। इसलिए इस घटना विशेष पर भारत का रुख कोई अहम मुद्दा नहीं है। असल मुद्दा यह है कि भारतीय विदेश के पीछे आज दृष्टि क्या है? मंगलवार को संसद में यूक्रेन संकट पर चर्चा हुई। उसमें विभिन्न दलों ने जो राय जताई, तो इस सवाल का जवाब ढूंढना और जटिल हो जाता है। उस चर्चा का संकेत यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीति चाहे जिस दृष्टि से प्रेरित हो, विपक्षी दलों के पास उससे अलग कोई सोच नहीं है। मोदी सरकार की नीति की पहचान इस रूप में की जा सकती है कि यह ट्रांजैक्शनल यानी लेन-देन पर आधारित है।
यानी जहां से भारत को फायदा होता दिखे, भारत को उसके अनुरूप चलना चाहिए, भले यह लाभ कितना ही तात्कालिक हो। मगर किसी प्रमुख विपक्षी दल के पास इससे अलग कोई नजरिया है, आज यह कहना बेहद कठिन हो गया है। कांग्रेस की धारा से जुड़े रहे दल ऐसे मौकों पर जवाहर लाल नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति को चर्चा में ले आते हैँ। उनका जोर उस नीति की प्रासंगिकता साबित करने पर होता है। लेकिन वे यह बताने में पूरी तरह विफल रहते हैं कि आज की परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच उस नीति का व्यावहारिक रूप क्या होगा? अंतिम सूरत यह उभरती है कि कांग्रेस हो- या अन्य विपक्षी दल- वे सभी विदेश नीति के मामले में रस्म अदायगी करते दिखते हैँ। उनका ज्यादा ध्यान सरकार की किसी नीतिगत नाकामी से देश को हुए किसी कथित नुकसान की तरफ इशारा करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा करने पर केंद्रित रहता है। लेकिन भारत की आज क्या विदेश नीति होनी चाहिए, संभवतः इस सवाल का जवाब उसके पास भी नहीं है। 
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