डेल्टा प्लस का खतरा
कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामलों का बढ़ना जितना दुखद है,
कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामलों का बढ़ना जितना दुखद है, उतना ही चिंताजनक भी। सरकार और लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है, तो एक तरह से अच्छा ही है। अगर इस वेरिएंट से संघर्ष के लिए पहले ही ज्यादा से ज्यादा तैयारी हो जाए और लोगों में भय की वजह से ही जागरूकता बढ़ जाए, तो इससे बेहतर कुछ नहीं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उचित ही आठ राज्यों को चिट्ठी लिखकर तुरंत कंटेनमेंट उपायों को लागू करने के लिए कहा है। जहां भी मामले मिल रहे हैं, वहीं उन्हें क्वारंटीन और कंटेनमेंट जोन बनाकर रोकना होगा। डेल्टा प्लस का संक्रमण अगर शुरुआती दौर में ही रोक लिया जाए, तो यह सरकारों की एक बड़ी सफलता होगी। देश डेल्टा की मार से बड़ी मुश्किल से उबर रहा है, अत: सबकी भलाई इसी में है कि डेल्टा प्लस के खतरे को बड़े स्तर पर जाने से पहले ही रोका जाए। अभी तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा को कंटेनमेंट और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग जैसे उपायों को अपनाने के लिए कहा गया है। इन राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी हर संभव उपाय करने चाहिए। विशेषज्ञ बार-बार चेता रहे हैं, किसी भी स्तर पर ढिलाई बहुत भारी पड़ सकती है। जिन इलाकों में मामले मिल रहे हैं, वहां के सामाजिक संगठनों को भी पूरी तरह से सचेत और सक्रिय कर देना चाहिए। बचाव के लिए जरूरी कड़ाई का काम ज्यादा से ज्यादा सामाजिक संगठनों के पास ही होना चाहिए। समाज अपनी सुरक्षा की चिंता स्वयं करे। यहां तक कि ऑक्सीजन, अस्पताल बिस्तर और दवाओं की निरंतर निगरानी में भी सामाजिक भागीदारी होनी चाहिए। ध्यान रहे, शुरुआती सूचनाओं के आधार पर डेल्टा प्लस को तीन कारणों से अधिक संक्रामक बताया जा रहा है। अव्वल तो इसकी संक्रमण क्षमता ज्यादा है, दूसरी बात इसका फेफड़ों की कोशिकाओं के रिसेप्टर्स में मजबूत बंधन बनता है; और यह वायरस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को कम करता है। बड़ा खतरा यही है कि यह शरीर में एंटीबॉडी जरूरत के हिसाब से नहीं बनने देता है। शुक्रवार तक देश में 45 हजार कोरोना नमूनों में से 48 नमूने डेल्टा प्लस के पाए गए और चार मरीजों की मौत हुई। वैसे ये आंकड़े पर्याप्त नहीं हैं, जिनके आधार पर डेल्टा प्लस को ज्यादा खतरनाक घोषित कर दिया जाए। अभी डेल्टा प्लस जांच की सुविधा केवल 14 प्रयोगशालाओं में है, अत: केंद्र सरकार को विशेष रूप से पहल करते हुए जांच के ज्यादा से ज्यादा केंद्र बनाने चाहिए। टीकाकरण में तेजी लाना भी जरूरी है। दो टीका लेने के बावजूद अगर राजस्थान में डेल्टा प्लस का मामला सामने आया है, तो भी टीके पर से हमारा विश्वास हिलना नहीं चाहिए। टीके पूरी तरह से सुरक्षित हैं, उनको लेकर सवाल व आशंकाएं अचरज की बात नहीं हैं। वैक्सीन फाइजर-मोदेरना से अगर हमारा जीनोम भी बदल रहा हो, तो भी कोई बात नहीं, हमारा निरोग रहना ज्यादा जरूरी है। यह महामारी इतनी विकराल है कि इसका असर मानव के बाह्य स्वरूप के साथ-साथ आंतरिक स्वरूप पर भी पड़ सकता है और संभव है, कोरोना के खत्म होने के बाद मनुष्य के डीएनए से इसकी छाप अपने आप मिट जाए। लेकिन फिलहाल जरूरी है कि हम दस्तक दे रहे खतरे को पूरी सावधानी और तैयारी के साथ मुंहतोड़ जवाब दें।
क्रेडिट बाय लाइव हिंदुस्तान