विचार करें, क्या हम अपने डाकिए और अखबार देने वाले व्यक्ति को उनके कार्यों व सेवाओं के लिए कभी उपहार या सिर्फ धन्यवाद देते हैं?
क्रिसमस का त्योहार क्रिश्चियन समाज के लिए बड़ा महत्व रखता है
जयप्रकाश चौकसे। क्रिसमस का त्योहार क्रिश्चियन समाज के लिए बड़ा महत्व रखता है। दीपावली और ईद जैसे त्योहारों की तरह यह पर्व भी सभी के लिए खास है। इसीलिए भव्य बजट की बड़ी फिल्में उत्सवों के समय ही प्रदर्शित की जाती हैं। कारण, त्योहारों के मौके पर मिलने वाली छुट्टियों में दर्शक अधिक संख्या में फिल्में देखते हैं। निर्देशक कबीर की फिल्म '83' क्रिसमस पर प्रदर्शित हो रही है। फिल्म की भव्यता के आधार पर कहा जा सकता है कि यह फिल्म पिछले दिनों प्रदर्शित हुई भव्य बजट की फिल्म 'सूर्यवंशी' से भी अधिक दर्शक आकर्षित करेगी। क्रिसमस से जुड़ी एक कथा इस तरह है कि एक नन्हे बालक के मन में यह भ्रम बैठ जाता है कि क्रिसमस के त्योहार तक उसकी मृत्यु हो जाएगी। अत: उस बालक के दुखी परिवार ने प्रयास किया कि वह इस भ्रम से छुटकारा पा जाए। परंतु भ्रम की जड़ें जमीन में नहीं, जल में होती हैं। कोई लहर उन्हें डिगा नहीं पातीं। कोई बाढ़ उन्हें बहा नहीं पाती। कोई सैलाब उन्हें डुबा नहीं पाता। बहरहाल, इस कथा में परिवार और मोहल्ले वाले यह तय करते हैं कि इस वर्ष क्रिसमस सा उत्सवी माहौल हम पहले ही बना लें ताकि बालक अपने भ्रम से मुक्त हो जाए। फिर क्या था सभी ने सत्य को छुपाए रखा और अपने घरों में नकली उत्सव का वातावरण बनाया। बालक से सत्य छुपाए रखने के लिए मोहल्ले के केबल वाले को भी इस खेल में शामिल किया गया। उससे कहा गया कि भ्रम में पड़े उस बच्चे को उत्सव का यकीन दिलाने के लिए वह केबल वाला उस दिन विगत वर्ष की तस्वीरें और वीडियो इस तरह प्रसारित करे कि मानो वह वर्तमान की सामग्री हो। इस तरह छलावे में महान समय को भी शामिल किया जा सके। सब कुछ योजना अनुसार हुआ ताकि बच्चे के मन से भ्रम को मिटाया जा सके। बहरहाल, बच्चा इस युक्ति से भय मुक्त हो गया। विदित हो कि क्रिसमस के अवसर पर गिफ्ट देने का रिवाज है। साधनहीन लोग भी किसी तरह जीवन में बचत और किफायत के साथ इस मौके पर एक-दूसरे को भेंट देते हैं। गौरतलब है कि क्राइस्ट को स्वयं ही लकड़ी का भारी क्रॉस ढोना पड़ा था। उनके जीवन के अंतिम समय में उनके द्वारा झेले गए कष्ट का विवरण देने वाली रचनाओं को 'पैशन प्ले' कहते हैं। एक फिल्मकार ने अपनी फिल्म के दृश्य में प्रभु-यीशु के हाथ पैर में कीलें ठोके जाने के दर्दनाक सीन को इतने यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया था कि सिनेमाघर में दर्शक चीख पड़े थे। कहा जाता है कि इस दृश्य को देखकर कुछ तो बेहोश हो गए थे। अंतत: फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया गया। फिल्म के प्रतिबंधित होने पर फिल्मकार ने कहा कि इस तरह से उसका उद्देश्य पूरा हो गया। सिनेमा के परदे पर प्रस्तुत सीन ने सभी को हिला कर रख दिया तो कल्पना करें कि ईसा मसीह ने हकीकत में कितना दर्द सहा होगा। दर्शक फिल्म देखते समय भली-भांति जानता है कि सिनेमा यकीन दिलाने की कला है। जब यह दर्शक को हिला सकती है, बेहोश कर सकती है तो सोचें कि यथार्थ में क्राइस्ट ने कितना कुछ सहा होगा! दर्शकों को तो दर्द की महज झलक मात्र ही मिली है। विचार करें कि भगत सिंह और साथियों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कितना कुछ सहना पड़ा होगा। जनरल डायर को मात्र तबादला झेलना पड़ा लेकिन क्रांतिवीरों ने तो स्वतंत्रता के लिए दर्द सहा। बहरहाल, ऑस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों में क्रिसमस के अगले दिन सभी नागरिक अपने डाकिए और सेवकों को भेंट देते हैं। यह धन्यवाद देने के लिए किया जाता है कि उन्होंने हर मौसम में हमारे लिए काम किया। वर्ष भर आपने हमारी डाक दी। इसलिए यह दिन बॉक्स डे कहलाता है। जरा विचार करें कि क्या हम अपने डाकिए और अखबार देने वाले व्यक्ति को उनके कार्यों व सेवाओं के लिए कभी उपहार या सिर्फ धन्यवाद ही देते हैं?