सोनिया और राहुल गांधी को ईडी का नोटिस फिर कांग्रेस के आत्मबल को टटोलेगा, तो उदयपुर चिंतन शिविर के बाद राज्यसभा के टिकट का प्रसाद जिस तरह बंटा, उसके बाद पार्टी का मनमुटाव भी तो सामने आया है। बहरहाल हिमाचल ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां परंपरावादी सियासत कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ा देती है और यह भी परिणाममूलक संकेत रहा कि पिछले उपचुनावों में जनता ने उसे अपनी प्राथमिकता का सेहरा पहना दिया था। बावजूद इसके भाजपा ने जिस तरह मोर्चा संभाला है और प्रधानमंत्री के दौरे पार्टी के हर छोर को मशगूल कर रहे हंै, उससे दो छवियां आमने-सामने हैं।
यानी मोदी तो जीत में एकाकार हो रहे हैं और दूसरी ओर अपनी रणनीति के कारण गांधी परिवार असफल व असहाय पेश हो रहा है, लेकिन सवाल यह भी है कि हिमाचल का अपना मूड किस करवट बैठेगा। अतीत बताता है कि यहां के मतदाता ने मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों तक को इसलिए नहीं बख्शा क्योंकि वे उसकी निगाह में उनके प्रदर्शन की खामियां रहीं या अपेक्षाओं के सामने सत्ता का नशा और गुरूर रहा। अब इस राजनीतिक मानसिकता का दोहन कांग्रेस करना चाहती है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा अपने दायरे और वादों के पोस्टर बड़े कर रही है, तो समझना यह होगा कि कांग्रेस आलाकमान कहीं अपनी ही संभावनाओं को उलझन में डाल न दे। हमारा मानना है या जिस तरह के घटनाक्रम से गुजरात की तस्वीर में खोट नज़र आने लगे हैं, कांग्रेस के लिए हिमाचल में सिर-धड़ की बाजी लगाने के सिवा और कोई चारा नहीं। बेशक कुछ आंदोलन खड़े करके हिमाचल कांग्रेस का युवा वर्ग सामने डटा है और नई कार्यकारिणी ने खुद को नए परिप्रेक्ष्य में पेश किया है, फिर भी रणनीतिक युद्ध में भाजपा की फिज़ां को रोकने के लिए दस्तूर बदलने की जरूरत तो निरंतर बनी रहेगी। इतना स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा अपने महिमामंडन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा पेश करेगी, तो पार्टी की वित्तीय व सियासी शक्ति का भी भरपूर प्रयोग होगा।
कांग्रेस के लिए राहत की बात यह कि आम आदमी पार्टी अपने झमेलों में अपनी ताजगी, मजबूती और वैकल्पिक ऊर्जा में कुछ नुकसान झेल रही है और पार्टी का प्रचार सत्ता के खिलाफ जितना माहौल पैदा करेगा, वह प्रदेश के राजनीतिक बदलाव का समर्थन ही करेगा। कांग्रेस के लिए टिकट आवंटन की परीक्षा रहेगी और यह भी कि कुनबे को किस तरह बचाकर, सहेजकर तथा ऊर्जावान बनाकर रख पाती है। सत्ता के भीतर अपनी शिकायतें हैं, सत्ता लाभ के संघर्ष, उपेक्षा की रगड़, मंत्रियों-विधायकों का प्रदर्शन और टिकटार्थियों की चीखोपुकार भी बढ़ रही है, तो इसके बीच कांग्रेस को अपना संयम, विवेक और साथ जीने-मरने की सौगंध खानी है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के विपरीत जा रही परिस्थितियों के बावजूद हिमाचल में बहुत कुछ मिल सकता है, बशर्ते आलाकमान अपने दरबारियों के कारण कोई गलत कदम न उठा ले, बल्कि राज्यसभा जा रहे राजीव शुक्ला के स्थान पर परिवर्तन करते हुए प्रभारी बदल दे।